- आमाल की क़ुबूलियत का दारोमदार क़ुबूलियत ए नमाज़ पर है और नमाज़ की क़ुबूलियत आले मोहम्मद की मोहब्बत से है
बाराबंकी। आमाल की क़ुबूलियत का दारोमदार क़ुबूलियत ए नमाज़ पर है और नमाज़ की क़ुबूलियत आले मोहम्मद की मोहब्बत से है ।अगर इश्के अली नहीं तो जन्नत की बू भी मुमकिन नहीं । यह बात कर्बला सिविल लाइन में मजलिस को ख़िताब करते हुए ज़ाकिर ए अहलेबैत आली जनाब अहमद रज़ा ने कही । उन्होंने यह भी कहा कि अब्दियत की मेराज को मोहम्मद व आले मोहम्मद कहते हैं । इंसान जाहिल पैदा होता है ,मोहम्मद व आले मोहम्मद इल्म लेकर पैदा होते हैं । जो ज़मीनों ज़मान का मोहताज नहीं होता उसे अली अ कहते है ।आखिर में शहीदाने करबला व असीराने करबला के मसायब पेश किए जिसे सुनकर मोमनीन रोने लगे ।मजलिस से पहले डॉक्टर रज़ा मौरानवी ने पढा- न दौलत काम आयेगी न सजरा काम आयेगा , बरोज़े हश्र आयेगा तो तक़वा काम आयेगा। आरिज जरगांवी ने पढ़ा – मारेफ़त दिल में सजाए हुए हम रखते हैं, या अली कहते हुए घर से कदम रखते है। महदी नक़वी ने पढ़ा – अज़ा ए सरवर में मेरी आंखों से जो भी आंसू रवा हुए हैं , बशर्ते गौहर हुदूदे रूमाले ज़हरा में जमा हुए है । हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा – आमाल को सुधार लो ग़ैबत में हैं इमाम । तुम ये न कहना बाद में मौक़ा मिला नहीं ।इसके अलावा सावेज व आसिम नक़वी ने भी नजरानए अक़ीदत पेश किया ।मजलिस का आग़ाज तिलावत ए कलाम ए पाक से हुआ। आखिर में ज़िया रिज़वी व उनके साथियों ने नौहाखानी व सीनाज़नी की।बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।
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