अवधनामा संवाददाता
– मार्च 2019 से अब तक 90 क्लबफुट से पीड़ित बच्चों का हुआ निशुल्क उपचार
– जिला अस्पताल में मिल रहा क्लबफुट के बच्चों को उपचार
– आरबीएसके व मिरेकल फीट के सहयोग से चल रहा क्लीनिक
बांदा। जसुपरा ब्लाक के सबादा गांव में मनरेगा और भवन निर्माण का काम करके अपना परिवार पाल रहे मेराज अहमद बताते हैं कि पिछले साल उनको बेटी हुई जिसके दोनों पंजे मुड़े हुए थे। यह देखकर मैं और मेरी पत्नी बहुत दुखी हुए। बड़े शहर जाकर पुत्री का इलाज करवाने की उसकी हैसियत नहीं थी। बेटी के जन्म के कुछ दिन बाद घर आयी आशा कार्यकत्री ने बताया कि उसकी बेटी के पैरों का इलाज जिला अस्पताल में हो सकता है। वह बताते है कि जिला अस्पताल में जांच के बाद डाक्टर ने बेटी के बिल्कुल ठीक हो जाने की बात कही तो लगा कि अल्लाह ने फरिश्ता भेजकर उनकी मदद की है। बेटी को मिले निशुल्क उपचार से वह अब बिल्कुल ठीक और स्वस्थ्य है। इसी तरह तिंदवारी के मुंगूस गांव की रहनेवाली अरुणा देवी बताती हैं कि इस साल 24 मार्च को उन्होंने एक पुत्री को जन्म दिया। उसके दोनों पैर मुड़े हुए देखकर परिजन परेशान हो गए। गरीबी में बेटी का इलाज करवाना भी बेहद मुश्किल था। लेकिन स्वास्थ्य केंद्र में ही डाक्टर ने उसे जिला अस्पताल में इलाज की सलाह दी। उसे वहां से जिला अस्पताल भेज दिया गया। 30 मार्च को उसकी नवजात बेटी राज कुमारी के पैरों में प्लास्टर चढ़ाया गया। समय-समय पर वह डाक्टर को दिखाती रही। अब उसकी बेटी के दोनों पैर सीधे हो गए हैं।
जन्मजात टेढ़े-मेढ़े पैर वाले बच्चों के उपचार के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) और मिरेकल फीट संस्था मिलकर कार्य कर रहे हैं। डीईआईसी मैनेजर वीरेंद्र प्रताप बताते हैं कि आरबीएसके की टीम आंगनबाड़ी केंद्रों व स्कूलों में जाकर बच्चों की स्क्रीनिंग करती हैं। बच्चों को चिन्हित कर जिला अस्पताल में इलाज के लिए भेजती है। इसके लिए सभी ब्लाकों में टीम लगी हुयी हैं। डीईआईसी मैनेजर बताते हैं कि जिला अस्पताल में आरबीएसके और मिरेकल फीट संस्था के सहयोग से एक क्लिनिक चलाया जा रहा है, जहां पर डाक्टरों की टीम के द्वारा मार्च 2019 से अब तक 90 ऐसे बच्चों का सफल इलाज किया जा चुका है, जिनके पैर जन्मजात मुड़े हुए थे।
मिरेकल फीट संस्था के जिला समन्वयक आशीष मिश्रा बताते हैं कि क्लब फुट से ग्रसित शून्य से छह माह तक के बच्चों का इलाज पोंसेटि विधि द्वारा आसानी से सफलता पूर्वक हो जाता है।इस विकृति से मुक्ति के लिए सही समय पर इलाज शुरू करना जरूरी होता है।
जल्द से जल्द इलाज शुरू करना बेहतर
बांदा। जिला अस्पताल के आर्थाेपैथिक सर्जन डा. विकास दीप बिल्हाटिया बताते हैं कि पैदा होने के बाद जितनी जल्दी इलाज शुरू किया जाए उतना अच्छा रहता है। बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ इलाज की जटिलताएं बढ़ती जाती हैं। सही समय पर इलाज शुरू करने से बच्चे को विकलांगता से बचाया जा सकता है। अमूमन जन्म के एक सप्ताह बाद बच्चे का इलाज शुरू किया जा सकता है। बच्चों का इलाज पोंसेटि विधि द्वारा किया जाता है जिसमें रोग की गम्भीरता के हिसाब से कुछ (4-6) प्लास्टर लगाने के बाद एक छोटा सा ऑपरेशन किया जाता है। इसके बाद पैर पूरी तरह ठीक हो जाता है। रोग दोबारा ना हो इससे बचाने के लिए कुछ समय तक बच्चों को विशेष प्रकार के जूते पहनने होते हैं जो मिरेकल फीट संस्था द्वारा निशुल्क उप्लब्ध कराए जाते हैं।