अवधनामा संवाददाता
प्रयागराज : माहे मोहर्रम की दसवीं (यौमे आशूरा) को हर शख्स सियाह लिबास और नंगे पैर और लबों पर सदा ए या हुसैन के साथ बख्शी बाज़ार इमामबाड़ा नाज़िर हुसैन से 1928 मे क़ायम किए गए तुरबत के जुलूस मे शामिल होकर नौहा और मातम करते हुए चकिया करबला क़ब्रिस्तान तक गया।नूरुलएन आब्दी ,ज़ुलक़रनैन आब्दी ,ज़ुन्नुनरैन आब्दी ,तय्याबैन आब्दी ,फराज़ आब्दी की क़यादत मे बख्शी बाज़ार के इमामबाड़ा नाज़िर हुसैन से 95 वर्ष पूर्व शुरु किया गया तुरबत का जुलूस दसवीं मोहर्रम को प्रातः सात बजे निकाला गया।जुलूस में आगे आगे ज़ैग़म अब्बास मर्सिया पढ़ते हुए दायरा शाह अजमल ,सेवंई मण्डी इमामबाड़ा से रानीमण्डी बच्चा जी धरमशाला इमामबाड़ा मीर हुसैनी तक लेकर गए।इमामबाड़े मे ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने शहादत इमाम हुसैन का मार्मिक अन्दाज़ में वर्णन किया तो अक़ीदतमन्दों की आँखें छल छला आईं।अन्जुमन आबिदया के नौहाख्वान मिर्ज़ा काज़िम अली विज़ारत व तौसीफ नौहों और मातम की सदाओं के साथ तुरबत जुलूस को बच्चा जी धरमशाला चड्ढ़ा रोड कोतवाली नखास कोहना खुलदाबाद हिम्मतगंज होते हुए चकिया करबला तक लेकर गए।करबला मे इमाम हुसैन के रौज़े पर तुरबत रख कर सर व छाती पीट कर मातम किया गया और लगभग दो सौ इमामबाड़ों मे तबर्रुक़ात पर चढ़ाए गए फूलों और ताज़िये को करबला मे बनाए गए गंजे शहीदाँ मे नम आँखों से सुपुर्देखाक किया गया।वहीं दूसरा जुलूस रानीमण्डी चकय्या नीम इमामबाड़ा मिर्ज़ा नक़ी बेग से अन्जुमन हैदरिया रगनीमण्डी की ओर से बशीर हुसैन की क़यादत मे निकाला गया।जिसमे अन्जुमन के नौहाख्वान हसन रिज़वी व साथियों ने नौहा और मातम किया।अलम व ज़ुलजनाह की शबीह भी साथ साथ रही।रास्ते भर अक़ीदतमन्दों ने दुलदुल व अलम का बोसा लेने के साथ फूल माला चढ़ा कर मन्नत व मुरादें मांगी।जुलूस अपने परमपरागत मार्ग से होते हुए चकिया करबला मे समाप्त हुआ।करबला मे खुले आसमान के नीचे बड़ी संख्या मे अक़ीदतमन्दों ने रोज़े आशूरा का आमाल मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर साहब क़िबला की क़यादत मे अन्जाम दिया।एक दूसरे का हाँथ पकड़ा कर लोगों ने अपने क़दमों को सात बार आगे पीछे चलकर इमाम हुसैन के उस अमल को याद किया जो उनहोने हज़रत अली असग़र की शहादत होने पर किया था। अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सैय्यद मोहम्मद अस्करी के मुताबिक़ दरियाबाद के इमामबाड़ा जद्दन मीर साहब ,इमामबाड़ा अरब अली खाँ ,इमामबाड़ा सलवात अली खाँ ,इमामबाड़ा मलिक साहब ,इमामबाड़ा ज़ैदी, इमामबाड़ा हुसैन अली खाँ ,इमामबाड़ा गुलज़ार अली खाँ से दसवीं मोहर्रम पर इमामबाड़ो पर चढ़ाए गए फूलों व ताज़िये को दरियाबाद क़ब्रिस्तान मे अश्कों का नज़राना पेश करते हुए सुपुर्द ए लहद किया।कई मातमी अन्जुमनो की ओर से जुलूस भी निकाला गया।अलम ताबूत ज़ुलजनाह भी साथ साथ रहे।इसी प्रकार बड़ा ताज़िया ,बुड्ढ़ा ताज़िया अलम मेंहदी ताज़िया झूला आदि के फूलों को सुन्नी समुदाय के लोगों ने अपने अपने ताज़ियादारों के साथ या अली या हुसैन की सदा बुलन्द करते हुए सुपुर्देखाक किया।
चौक से करबला तक दर्जनो स्थानो पर लगी ठण्डे शरबत व पानी की सबील
करबला मे तीन दिन के भूखे प्यासे खानदाने रेसालत की शहादत दसवीं मोहर्रम को तमाम स्वयं सेवी संस्थाओं तन्ज़ीमों व अन्जुमनों की ओर चौक कोतवाली से चकिया करबला तक तक़रीबन दो दर्जन स्थानो पर अक़ीदतमन्दों के लिए ठण्डे शरबत ठण्डे पानी बिस्किट और तमाम तरहा की चीज़े तक़सीम की गईं।बड़ी संख्या मे अक़ीदतमन्दों ने नज़्रे मौला के नाम पर शरबत पिया।
दिन भर के फाक़े के बाद शाम को सतनजे और शरबत से तोड़ा गया फाक़ा
करबला मे नवासा ए रसूल की शहादत के वाक़ये को चौदह सौ बरस बीतने के बाद भी आज तक ग़मे हुसैन उसी प्रकार मनाया जा रहा है जैसे पहले मनाया जाता था और सभी रस्मो रिवाज भी उसी प्रकार बदसूतूर जारी हैं।आशूरा यानि दसवीं मोहर्रम पर शिया समुदाय दिन भर जहाँ फाक़ा रह कर गुज़ारता है और शाम को सात प्रकार के भुने दाने (सतनजा)और शरबत पर शोहदाए करबला और असीराने करबला की नज़्र दिलाकर उसी सतनजे और शरबत से फाक़ा तोड़ता है।सुन्नी मुसलमान दसवीं पर रोज़ा रखते है और मग़रिब की अज़ान के साथ रोज़ा खोलते हैं।