एस.एन.वर्मा
मो.7084669136
प्रधानमंत्री का कथन बिल्कुल सटीक है कि चुनाव के समय मुफ्त रेवड़ी बाटने से बाज आना चाहिये क्योकि यह विकास को खोखला करती है, देश को आर्थिक बरबादी की ओर ले जाती है। इसे लेकर कोर्ट में इसके विरोध में एक याचिका दायर की गई है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बहुत सटीक मुद्दे उठाये है। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर समिति के गठन का फैसला किया है। समिति के लिये राजनैतिक पर्टियां, नीति आयोग, वित्त आयोग, रिजर्व बैंक से सुझाव भागे है।
टी.एन. शेषन के चुनाव आयुक्त की हैसियत से आने के पहले गरीब तबको को पोलिंग स्टेशन तक कैसे पहुंचा जाये और बिना डर के निष्पक्ष चुनाव कराया जाय समस्या रही है। भारत में चुनाव शुरूआत का समय था, आनेजाने की अपर्याप्त व्यवस्था थी, पोलिंग स्टेशन तक पहंुच पाना बड़ी समस्या थी, बाहुबलिये के आतंक से मतदान मुक्त रहे समस्या थी। टी.एन.शेसन के आने तक एक तो लोग चुनाव में भाग लेकर वोट डालने में प्रशिक्षित हो गये थे। दूसरे आनेजाने की सुविधायें पहले की अपेक्षा सुधार की ओर थी। साक्षरता धीरे-घीरे बढ़ रही थी लोग जागरूक हो रहे थे। पर धनबल, बाहुबल, बढ़त की ओर रहा। अब तो इसी का बोलबाला है, राजनैतिक दल भी ऐसे ही व्यक्त्यिों को तरजीह देते है। ऐसे में लोकलुभावन वादे और मुफ्त उपहारों की बाढ़ आ गयी है। ऐसे समय में इस पर सवाल उठाना बहुत ही मौजू है।
मुख्य न्यायधीश का वकील से सवाल कि मुफ्त उपहार पर बहस के लिये कौन सी पार्टी मौजूद रहेगी। उनका मतलब है मुफ्त उपहार का सभी सांसद और विधायक समर्थन करते हॅू वे विरोध के लिये सदन में मौजूद ही नही रहेगे। सांसदो के व्योहार पर टिप्पणी करते हुये कहा संसद में कबसे गम्भीर बहस गायब है। याद नही आता कभी देश के दिशा देने वाली सार्थक बहस हुई है। सभी देख रहे है बेकार के बातों पर हल्लागुल्ला वेल तक जाके नारेबाजी करना, गतिरोध पैदा करना सांसदों का काम रहे गया है। होहल्ला की वजह से सदन की कार्यवाई स्थगित होती रहते है और सदन के कार्यकाल का समापन आ जाता है। तब सदस्य एक दूसरे की तारीफ करते हुये, शेरोशायरी करते हुये अलविदा कह अगले चुनाव के लिये मुफ्ती उपहार और लोकलुभावन नारो में खो जाते है।
जनहित याचिका का दायर करने वाले वकील की सही बात है कि ऐसे मुफ्त उपहार लोक लुभावन वादे मतदाताओं के ललचाने के लिये होते है जो रिश्वत देने के बराबर होता है, चुनाव की आचार संहिता के खिलाफ है, निष्पक्ष मतदान के अवधारणा को समाप्त करता है। वकील ने सही कहा है कि इससे अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। सरकारी खजाने का घाटा बढ़ता है सार्वजनिक कर्ज बढ़ता है। रोक नही लगी तो आर्थिक बरबादी की ओर ढकेल देगा।
अब सवाल उठता है कुछ कल्याणकारी योजनायें गरीब तबको के लिये, महिलाओं के उत्थान के लिये उपयोगी होते है। जैसे मिड-डे मील, गर्भवती को नकद मदद, वृद्धा अवस्था पेन्शन, लड़कियों को सायंकाल, गरीबो के लिये राशन दिया तो मुफ्त दिया जाता पर इनकी उपयोगिता देखते हुये क्या इसे रेवडी के श्रेणी डाला जा सकता है। नागरिको का उत्थान हर राजनेता का कर्तव्य होता है। सरकार के लिये ये योजनायें अब बोझ बनती जा रही है। जमीनी सच्चाई यह है कि इन योजनाओं पर वास्तविक खर्च कम हो गया है। सरकारी कोशिशों से इन मदों पर लगाम लगाने की तैयारी हो रही है।
कोर्ट ने समिति के गठन रेवडी बाटने के मुद्दे पर विचार करने के लिये बनाने की बात कही है उसमें गैरराजनीतिक रिजर्व बैक, नीति आयोग जैसी वित्तीय संस्थाएं शामिल होगी। पूरी तरह से गैर राजनीतिक लोग क्या राजनीति मुद्दों का हाल बताने में सफल होगे जो प्रभावकारी हो। क्योंकि इनकी मुख्य चिन्ता तो राजनीतिक घाटा और सार्वजनिक कर्ज होगा। एक सवाल उठता है फिर राजनीतिक पार्टियां किन मुद्दो पर वोट मांगेगी। क्षेत्रीय मसले उठाने पर समाजिक विघटन ही बढ़ेगा।
चुनाव आयोग ने पहले तो इस मुद्दे हस्तक्षेप से मनाकर दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट के कहने पर आयोग ने कहा इसे आचार संहिता में शामिल कर दिया जाय। कोर्ट ने व्योहरिक कठिनाई बताई कहा यह खोखली औपचारिकता होगी। ठीक चुनाव के पहले लागू होगी। इससे पहले के समय में पार्टियां वह सब कहने करने को स्वतन्त्र रहेगी और करेगी जिसे रोंकने के लिये तमाम कसरन की जा रही हो। आयोग की बात करे तो अभी तक धनबल और भड़काउ भाषा पर रोक नही लगा पाया है। यह तो जब राजनैतिक पार्टीयां खुद इस तरह की संस्कृति पैदा करें, बाहुबलियो से किनारा कभी करें धनबल का पर कतरे।
आदर्श को आदत बनाने के लिये आदर्श नेता चाहिये जो पार्टी को इसी में ढाले। आखिर गांधी जी, विनोब भावे, जैप्रकाश नरायण, डा. राम मनोहर लोहिया इसी श्रेणी के न तो रहे जो पार्टी को आदर्श के अनुरूप ढालते रहे। इसके लिये पहले निजी स्वार्थ और सिर्फ चुनाव जीतने की लालच से अपने को दूूर रखना पड़ेगा। राजनीति के सेवा मानाना होगा न कि कुर्सी, रूतब, पैसा कमाने का साधन चुनाव आयेगा को और मजबूत बनाना होगा। शेषन जैसा चुनाव आयुक्त बनना होगा।