आर्थिक और राजनैतिक दिवालियापन

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

इस समय श्रीलंका आर्थिक दिवालियापन के चपेट में तो है ही साथ ही राजनैतिक दिवालियापन भी दिखा रहा है। पेट्रोल, गैस, महंगाई, खाने के सामनो की किल्लत, विदेशीमुद्रा का खाली खजाना तो है ही, राजनैतिक संस्थाये सब भंग है। न प्रधानमंत्री दिख रहे है न राष्ट्रपति, प्रशासन भी सुन्न है। केवल जनता ही दिख रही है जो विरोध का उच्चतम का उच्चतम स्तर अख्तियार किये हुये है। 9 जुलाई की रात विक्रम सिंधे के निजी आवास को फूक दिया गया। इस घर को विक्रम सिधे उस कालेज के नाम वसीयत कर चुके है जहां वह पढ़े है। इससे उनके प्रति कुछ लोगो को सहनभूति है। पर एक पक्ष ऐसा भी है विक्रम सिंधे से नाराज भी है कि वह प्रधानमंत्री राजपक्षे को बचाने में लगे हैै जबकि आम लोगों की भावना यह है कि राजपक्षे सरकार को जल्द से जल्द जाना चाहिये।
9 जुलाई की घटना की शुरूआत शान्तिपूर्ण थी। देश के अलग-अलग हिस्सो से लोग जैसे-तैसे कोलम्बो के मुख्य प्रदर्शन स्थल पर भारी संख्या में पहुचे। 9 मई को भारी जनक्रोश देख तत्कालीन प्रधानमंत्री महीन्द्रा रापक्षे हट गये। इसके बाद प्रदर्शकारियों की संख्या में गिरावट आने लगी। लोग प्रदर्शन से थकने लगे पर नारा अब भी सुनाई पड़ रहा है गोटा घर जाओ। लोग राष्ट्रपति को हटाने के लिये तुले है। क्योकि सारे दिवालियापन के लिये इन्हे मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है।
इसके बाद घटनाओं ने विनाशकारी मोड़ ले लिया। राष्ट्रपति सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया गया। भीड़ को रोकने के लिये सुरक्षाकर्मियों ने आंसू गैस के गोले छोड़े हवाई फायरिंग की पर भीड़ रूकी नही। आक्रोश में बढ़ते रहे। इमारतों में घुसने के लिये पूरा जोर लगा रहे थे। इतना लोग उद्वेलित थे कि जान गवाने के खतरा भी उठा रहे थे। पीछें की भीड़ उन्हें आगे बढ़ने के लिये ढकेल रही थी।
सुरक्षाकर्मी प्रदर्शनकारियों के दबाव को झेल नही सके हट गये। भीड़ हल्ला मचाते हुये घुस गई। वैभव देख चाकित थे और वीडीओ बना रहे थे सबूत के लिये। लोगो को शासको की विलासिता जो जनता को हर तरह से मरहूम कर एकत्रित की गई थी दिखाने के लिये। कुछ लोगो लाइट हलचते भी दिखाई, राष्ट्रपति के आवास में बने स्वीमिग पूल में नहाने लगे।
इन हालातो पर काबू पाने के लिये जनता को बचाने के लिये श्रीलंका में राजनैतिक स्थिरता कायम करने की सख्त जरूरत है। राजनैतिक स्थिरता बनेगी तो आर्थिक योजना भी बनेगा। और उसका कार्यन्व्यन ठीक गति से बिना भ्रष्टाचार के तीव्रगति से आगे बढ़ाना होगा। आईएमएफ और श्रीलंका की मित्र सरकारे समर्थन को तैयार है पर ऊपर की बातो को पूरा करने की शर्त भी रक्खी है। प्रधानमंत्री विक्रम सिंधे अपने दो महीनो के कार्यकाल में अभी तक कुछ प्रभावी नही कर सके है जिससे अश्वस्त हुआ जा सके। सरकार के अन्दर एक रूपत नही है। आपस में खीचतान चल रही है। भ्रष्टाचार और गलत प्रबन्धन के लगाये गये आरोप जस के तस है। श्रीलंका की विषम परिस्थिति आपसी खीचतान को देख अन्तरराष्ट्रीय सरकारे और संस्थाये कुछ खास दिल चस्पी नही दिखा रही है।
नतीजा यह है कि महंगाई बढ़ती जा रही है, तेल, ईधन, गैस, दवाये, खाद्यान्न यहां तक की दवाये भी भारी कमी से जूझ रही है। विदेशी मुद्रा प्रायः समाप्त है। अभी भी राष्ट्रपति आवास, राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री का आफिस सब प्रदर्शनकारियों के कब्जां में है। ऐसे में राजनैतिक परिवर्तन को लेकर अश्वस्त नही हुआ जा सकता। स्पीकर ने कहा है राष्ट्रपति 13 जुलाई को इस्तीफा देगे। प्रधानमंत्री ने इस्तीफे की सशर्त पेशकश की है। लोगों को शक है कि ये इस्तीफा देगे। इस बीच राष्ट्रपति का अतापता नही है। यह भी पता चला है राष्ट्रपति भवन में कोई गुप्त टनल है। लोगों का कयास है वो बाहर जा चुके होगे। श्रीलंका को छोड़ कर उनके कार्यालय ने बताया है देश में आये किल्लत को दूर करने के लिये वे योजनायें बनानें में लगे हुये है। सिविल सोसायटी ग्रुप का प्रस्ताव है सीमित कैबीनेट वाली एक सर्वदलीय अन्तरिम में सरकार बनाई जाय जो जल्द से जल्द जरूरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याये से निपटने के लिये राह बनाये। सरकार पर लोगो का विश्वास बहाल करने के लिये जल्द से जल्द चुनाव कराये।
श्रीलंका को अगर इस दिवालियेपन से मुक्त होना है तो देश के सभी हिस्सो में लोगो को ऐसी सरकार मिलनी चाहिये। जिस पर सभी का भरोसा हो। राष्ट्रस्तर और प्रान्तस्तर के चुनाव भी जरूरी है साथ ही तमिल नेशनल एलायन्स को भी साथ लेना होगा। सरकार बन जाये नीतियां बन जाये पर इनके कार्यान्वयन के लिये संसाधनो की समस्या फैलाये खड़ी है।
श्रीलंका के राजनीतिज्ञो के कूटनीति का अग्नीपरीक्षा का काल है मित्र देशों, अन्तरराष्ट्रीय मुद्रासंस्था से उसे मदद हासिल करनी होगी। अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं और सरकारो को भी मानवीय दृष्टि आगे आना होगा। श्रीलंका को ऐसे देशों के मदद से सावधान रहना पड़ेगा जो मदद के नाम पर अनावश्यक शर्तो से न बांध दे जो एक नया भंवर पैदा कर दे।

 

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