एस.एन.वर्मा
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लोकसभा की रामपुर और आजमगढ़ सीट के लिये हुये उप चुनाव में समाजवादी पार्टी का तिलस्म ढह गया। समाजवादी पार्टी की दोनो सीटे परम्परागत मानी जाती रही है। रामपुर सीट तो आजम का पर्याय माना जाता रहा है। जेल से रिहा होकर आजम जब आये तो उनके लिये उमड़ी भीड़ को देखकर यह तय लग रहा था कि आजम की जीत पक्की है। आजमगढ़ में यादवो का बाहुल्य देखते हुये और समाजवादी पार्टी की पकड़ को देखते हुये यहां भी समाजवादी पार्टी की जीत पक्की लग रही थी। समाजवादी पार्टी अपने अन्तरविरोधो में इस तरह उलझी रही कि जनता का मूड मापने की उसे फुर्सत ही नही थी। उम्मीदवारों को लेकर आगा पीछा करती रही। पहले अपनी पत्नियों को उतारने के लिये तैयार थे। फिर अन्दरूनी सर्वे कराया तो नतीजे विपरीत आये फिर अपनी पत्नियों की जगह दूसरे लोगों को काफी इधर-उधर करने के बाद उतारा। अखिलेश यादव को अपनी जीत का इतना भरोसा था और आजम के करिश्मे पर इतना विश्वास था कि वह किसी भी जगह एक दिन भी प्रचार के लिये नहीं गये। बैठे बैठे बयान जारी करते रहे।
भाजपा की गतिशीलता समय के साथ चलने और जरूरतों को मापते हुये अपने रणनीति में बदलावा करते रहने की वजह से लोकसभा की तीन सीटो और विधानसभा की सात सीटों पर हुये चुनाव में पानी दस सीटो के लिये चुनाव में पांच सीटो पर जीत हासिल कर 2024 के आम चुनाव के नीतीजों की ओर इशारा कर दिया है। उसका मनोबल बढ़ गया है।
रामपुर की सीट आजम खां ने छोडी थी और आजमगढ़ की सीट अखिलेश यादव ने छोडी थी। दोनो सीटो पर भाजपा की जीत से राजनैतिक परिवेश में भाजपा के पक्ष में भारी सन्देश जायेगा। आजमगढ़ में मायावती अपना उम्मीदवार उतार कर दलित और मुिस्लम मतदाता वोटरो का बटवारा करकर भाजपा को परोक्ष मदद पहुचायी है। रामपुर में मायावती ने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा नतीजा दलित और मुस्लिम वोटो का बटवारा नहीं हुआ जिसका फायदा भाजपा को मिला। त्रीपुरा में चार विधान सभा सीटो पर चुनाव हुआ भाजपा ने तीन पर कब्जा किया।
भाजपा बदलते समय के अनुसार अपने पुराने स्थापनाओं से चिपकी नही रही समय के अनुसार राजनीति माडल में बदलावा और सुधार करते हुये आगे बढ़ती रही है। जबकि समाजवादी पार्टी अपने अन्तरविरोधो में खोई हुई, देर से निर्णाय लेने और उम्मीदवारों में रह रहकर बदलाव करने के भंवर में गोते लगाती रही। जो निर्णय भी लिये वे परिपक्व नही थे। जिसने भाजपा को फायदा पहुचाया और सपा को नुकसान। आजमगढ़ में हाल में हुये विधानसभा चुनाव में भाजपा खाता भी नही खोल पायी थी लोकसभा उपचुनाव में अपना परचम शान से लहरा दिया सपा की परम्परागत सीट रही है।
भाजपा सीटो के क्षेत्र को देखते हुये नये नये समीकरण तैयार करती रही है जहां उसकी जीत सन्दिग्ध मानी जाती रही है। इसके उलट सपा एमवाई समीकरण को लेकर बैठी रही। भाजपा नये नये मतदाआं को अपने ओर मोड़ने के लिये तरह तरह के समीकरण बना तजरवा करती रहती है। जिससे नये मतदाता उससे जुड़ते रहते है। सपा अति उत्साह में भरकर कमी ब्राहृमण कार्ड खेलती है तो कभी धार्मिक आस्था का कार्ड खेलती है। कभी अति पिछड़ा कार्ड खेलती है। पर जल्द ही ऊब कर अपने एमवाई पर आ जाती है। भाजपा काफी बड़ा विज़न लेकर चलती है। मुसलमानों के बीच अपनी पैठ बना आपसी वैमनस्यता कम करने का प्रयास करती रहती है। यादवों में भी अपनी पैठ का विस्तार किया है और लगी हुई है। ऐसा नहीं की चुनाव खत्म हुआ तो सब खत्म फिर चुनाव आयेगा तो फिर शुरू किया जायेगा। सपा चुनाव आने पर गतिशील होती है नही तो सरकार की सतही आलोचना से अखबारो जगह पाने के लिये लगी दिखती है। भाजपा गरीब कल्याणकारी योजनाओं के साथ हिन्दुत्व गैर यादव गैर जाटव समीकरण पर काम करती रहती है। निरन्तरता का उसे फायदा भी मिल रहा है।
सपा की कार्यशैली पर कई सवाल उठते है। चूकि प्रदेश की मुख्य विरोधी पार्टी है इसलिये उसकी ओर सबका ध्यान जाता है। सपा ने राज्यसभा के लिये तीन उम्मीदवार खड़े किये। कोई आजम की करीबी था तो कोई रामगोपाल का बाहरी कपिल सिब्बल को लिया। सपा के दिमाग में भविष्य का समायोजन धूम रहा था। भाजपा सामाजिक समीकरणों को मजबूती देने वाले चेहरे चुने। जिसका लाभ उसे बराबर मिल रहा है। सपा को हिन्दुओं का विरोध कर मुसलमानों को खुश करने की नीति छोड़ कर दोनों में भाइचारा पैदा करने की नीति पर चलना होगा। वह ब्राहृमण की बात फौरी तौर पर करती है पर ज्ञानव्यापी जैसे मुद्दे आते है तो फिर पुराने स्टैन्ड पर लौट आते है।
जिस तरह भाजपा ने सपा का तिलस्म तोड़ा है उससे उसका मनोबल बढा है। आम चुनाव आते आते कई तिलस्म टूटने की सम्भवना बनती है। विपक्ष अगर जागेगा नही एक नहीं होगा तो भाजपा की खेती लहलहाती रहेगी और आगे बढ़ती चली जायेगी। 2024 का बिगुल बज रहा है।