अखंड भारत पर डॉ. मुखर्जी का चिंतन आज भी प्रासंगिक

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अवधनामा संवाददाता

देश की एकता और अखंडता के लिए मुखर्जी ने दे दी थी जान
कुशीनगर। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय राजनीति के ऐसे महान व्यक्तित्व हैं जिन्होंने आजादी के बाद देश की एकता और अखंडता के लिए अपनी जान दे दी। उनकी विचारशक्ति का प्रभाव व्यापक था। भारतीयता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के साथ-साथ अखंड भारत पर उनका चिंतन बेहद प्रासंगिक है।
ये बातें भारतीय जनता पार्टी जिला कार्यालय में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस पर आयोजित जिला संगोष्ठी में पूर्व जिलाध्यक्ष जगदम्बा सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता कहा। उन्होंने कहा कि एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा के नारे के साथ आठ मई, 1953 को बगैर किसी अनुमति के उन्होंने कश्मीर की यात्रा प्रारंभ कर दी। तत्कालीन शेख अब्दुल्ला सरकार ने 11 मई 1953 को डॉ मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया और कैद में ही राष्ट्रवाद और भारतीयता का यह सूर्य 23 जून 1953 को हमेशा के लिए अस्त हो गया। वे अविभाज्य जम्मू-कश्मीर के सपनों को पिरोये हुए ही शहीद हो गये। उनका यह स्वप्न स्वतंत्रता प्राप्ति के 70 वर्ष बाद तब पूरा हुआ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अगस्त 2019 में संसद में संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 35-A को समाप्त करने का बिल पारित कराया। इसके बाद ही जम्मू-कश्मीर भारत का सही मायनों में अभिन्न अंग बना। जिला संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जिलाध्यक्ष प्रेमचन्द मिश्र ने कहा कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा, अलग संविधान, देश के अन्य प्रदेशों के नागरिकों के प्रवेश के लिए परमिट की आवश्यकता जैसी जिन शर्तों और नियमों के साथ जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल किया गया था का डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी प्रारंभ से ही उसके विरोध में थे। उन्होंने इसके लिए जम्मू-कश्मीर जाकर अपना विरोध दर्ज कराया। डॉ. मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर एवं देश की अखंडता के लिए बलिदान देने वाले पहले व्यक्ति के तौर पर जाना गया। इसीलिए देश उनकी पुण्यतिथि को बलिदान दिवस के रूप में मनाता है।
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