एस.एन.वर्मा
मो.7084669136
महिलाओ के सशक्तिकरण की बहुत बाते होती है सरकार कुछ स्कीम भी इसके लिये चला रही है। पहले की अपेक्षा महिलाओं में उद्यमिता बढ़ी है, आत्मनिर्भरता बढी है, आर्थिक सम्पन्नता बढी है। इसी दिशा की ओर लखनऊ के बक्शीतालाब के क्षेत्र के एक गांव में कुछ महिलाओं को तैयार किया जा रहा है। यह अनुकरणीय है। इस तरह के प्रयासों का प्रसार तो होना ही चाहिये। साथ ही ऐसे ऐसी महिलाओं का ग्रुप तैयार कर उन्हें उद्यमिता के क्षेत्र में उनके मनपसन्द व्योसाय का प्रशिक्षण दे सरकारी मदद से उनके व्यवसाय को स्थापित करा, मार्केटिंग की व्यवस्था, ब्रान्ड बना कर भी करने में भी सहायता करें। शासन के पास हालाकिं इसके लिये स्कीम भी है, विभाग भी है, कुछ एनजीओ भी इस दिशा में प्रयासरत है।
विभागो की जिम्मेदारी बनती है कि इनिशिटिव लेकर महिलाओं को इसके लिये तैयार कर उद्यमिता में लगाये और आगे की व्यवस्था कराये। इस दिशा में लखनऊ के सीएसआईआर और सीमैप की तारीफ करनी होगी जो आपसी तालमेल के साथ बक्शीतालाब विकास खन्ड के एक गांव की 12 महिलाओं को तैयार कर रहे है जिनके पास किसानी के छोटे-छोटे टुकड़े है। इन्हे किसानी सिखाई जा रही है और स्टार्टअप शुरू करने के लिये भी तैयार किया जा रहा है। सीमैप इन्हें निशुल्क पौधे देगा तकनीकी मदद देगा और गुणवत्ता बनाये रखने की सुविधा भी देगा। सीएसआईआर और सीमैप लगातार महिलाओं को उद्यमित के लिये प्रेरित कर रहा है।
सीमैप इन महिलाओं को लेमनग्रास बिना किसी शुल्क के देगा इसे उगाने का प्रशिक्षण भी दे रहा है। योजना की शुरूआत के लिये सम्बन्धित अधिकारी ब्लाकस्तर पर जाकर महिलाओं को मोटीवेट किया। बताया कि कितने तरह के उत्पाद लेमनग्रास से तैयार किया जा सकते है। महिलाये मोटीवेशन से प्रभावित हुई तो उन्हें सीमैप ले जाया गया। वहां इन महिलाओं को सम्बन्धित अधिकारियों ने इस दिशा में प्रशिक्षित किया। सीमैप ने बताया वह गुणवत्ता बनाये रखने तकनीकी सहायता देने से लेकर, योजना को जमीनी स्तर तक लागू करवाने के लिये इस गु्रप को सहयोग देने में जुटा हुआ है। सीएआईआर और सीमैप के कोआर्डीनेशन का यह आदर्श रूप सभी विभागों को आपस में अपनाना चाहिये। निजी प्रतिस्पर्धा और नाम कराने से बचना चाहिये।
सवाल उठता है लेमनग्रास ही क्यों चुना गया। वैसे लेमनग्रास की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। कई दवाओं में उपयोग मे लाया जाता है। भारत में इसे व्यपारिक स्तर पर पहले से ही उगाया जा रहा है। भारत में इसे व्यपारिक स्तर पर पहले से ही उगाया जा रहा है। इसके प्रचलित नाम है चाइना नीबू, मलाबार घास। इसकी पत्तियों में 75 प्रतिशत सिट्रल मौजूद रहता है। इसी वजह से इसमें नीबू की खुशबू आती है। इसके पत्तियों से पाया जानावाला रस कई प्रकार के व्यवसायिक उद्यमो में प्रयोग होता है। जैसे सैन्दर्य प्रसाधन की चीजें में तेल, इत्र, साबुन वगैरह इसके रस का प्रयोग पेय पदार्थ में भी होता है। यह इतना उपयोगी पौधा है कि इसका कोई भी हिस्सा बेकार नही जाता है। इसके बचे भाग को हरी खाद और कागज बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। सीएसआईआर और सीमैप के अधिकारी इन महिलाओं के मदद के लिये पूरी तरह तैयार है और समय के मुताबिक हर स्तर पर मदद कर रहे है और करेगे। यह स्कीम जिस तत्परता और लगन से कोआडीशिन से चलाई जा रही है। इससे इसका सफल होना तय है। इसकी सफलता अपने आप प्रसारित होगी और लोग खुद इस तरह की स्कीमों में भाग लेने के लिये आगे आयेगे। प्रचार का सबसे बड़ा अस्त्र सफलता ही होता है।
यह प्रोजेक्ट पांच साल का है क्योंकि पाच साल में यह फसल तैयार होती है। यह घास मौसम प्रूफ है यानी मौसम का कोई असर नही होता है। तीन महीने में कटाई होती है इस फसल के उगाने के लिये किसी भी तरह की जमीन उपयोगी होती है।
शुरूआत में सीमैप अपनी मोबाइल वैन देगा जो खेतो में जाकर तैयार फसल का तेल निकलेगा। इसका महिलाओं को पैसा मिलेगा जो सीधे खाते में जमा होगा। इसमें बिचौलियो की कोई भूमिका नही होगी। भ्रष्टाचार के लिये कोई जगह नहीं मिलेगी। धीरे-धीरे फसल बढ़ेगी और महिलाये सीमैप की मदद से तरह-तरह के उत्पाद तैयार करेगी। उत्पादो को सरकारी ब्रान्ड अवनिब्रान्ड के नाम से बेचा जायेगा। अगर इस तरह की दो चार स्कीमे और आ जाय और इसी लगन और निष्ठा के साथ महिला ग्रुपों को तैयार की जाये तो कम से कम लखनऊ के बक्शीतलाब ब्लाक के अन्तगत आने वाले गांवो की महिलाओं में क्रान्ति आ जाये। यह गांव प्रधानमंत्री के राडार पर आ जायेगा जिससे लोग, अधिकारी एनजीओ प्रेरणा लेगे।