युवा शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने रचा कारनामा

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मीरा बाई की शायरी का हुआ उर्दू शायरी में अनुवाद
युवा शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने रचा कारनामा
उत्तर प्रदेश के अदबी क़स्बा जलालपुर से हमेशा अमन व आपसी सौहार्द की खुशबु पूरे मुल्क में फैली है  जहाँ अज़ान और भजन की आवाज़ एक साथ सुनाई देती है तभी तो इसी मिटटी के पद्मश्री अनवर जलालपुरी ने श्रीमद्भागवत गीता का उर्दू में अनुवाद कर के पुरे देश में आपसी सौहार्द का चिराग रौशन किया उन के बाद इस की रौशनी को आगे बढ़ाते हुए युवा शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने मीरा बाई के दोहों को उर्दू शायरी में ढाल कर साझा संस्कृति की अनूठी मिसाल पेश की है अपने इस कारनामे से इन दिनों वो सुर्खियों में हैं । तीन साल की कड़ी मशक्कत के बाद मीरा बाई के 209 पदों को 1494 अशआर के रूप में उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले हाशिम रजा जलालपुरी से साहित्य जगत की काफी उम्मीदें जुड़ गयी है । हाशिम रजा जलालपुरी को सहित्यिक जगत में अनवर जलालपुरी के वारिस के रूप में देखा जा रहा है।
हाशिम रजा जलालपुरी का ताल्लुक पद्मश्री अनवर और यशभारती अवार्डी डॉक्टर नैय्यर की सरजमीन से है 27 अगस्त 1987 को जलालपुर के करीमपुर नगपुर में पैदा हुए हाशिम रज़ा के वालिद जुल्फिकार जलालपुरी खुद एक मशहूर नौहा सलाम और मनकबत के शायर हैं । जितनी कम उम्र में हाशिम रजा जलालपुरी हिन्दुसतान के मुशायरों में शायर और नाजिम के तौर पर मकबूल हुए वहां तक पहुंचने के लिए और लोगो को कई बरस की ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है,  हाशिम रजा जलालपुरी पर  भारत और सरहद पार के कई लेखकों ने लंबे लंबे लेख लिखे हैं ।आज वो किसी तारुर्फ के मोहताज नहीं ।
मीरा बाई दुनिया की सब से बड़ी शायरा
अनवर जलालपुरी को अपना आदर्श मानने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कृष्ण की दीवानी मीरा बाई को दुनिया की सब से बड़ी कवित्री बताते हुए कहा कि साहित्य की दुनिया में मीरा बाई उस मुकाम पर हैं जहाँ कोई पहुँच ही नही सकता मीरा बाई ने अपनी पूरी ज़िन्दगी मोहब्बत का पैगाम आम करने में गुजारी उन के काब्य को उर्दू शायरी में अनुवाद कर के मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । मीरा बाई के 209 पदों का कब्यानुवाद पूरा हो चूका है शीघ्र ही वो उन के चाहने वालो के हाथ में हो गा उम्मीद है कि उन की यह कोशिश गंगा जमुनी तहज़ीब की डोर को और मजबूत करेगी ।
आधुनिक शिक्षा पर भारी साहित्य प्रेम
‘हम से आबाद है ये शेरो सुख़न की महफ़िल।
हम तो मर जायेंगे लफ़्ज़ों से किनारा कर के’ ।
हाशिम रज़ा जलालपुरी का ये शेर उन के साहित्य प्रेम को दर्शाता है हालांकि हाशिम आधुनिक शिक्षा से पूरी तरह लैस हैं और एम् टेक बीटेक जैसी उच्च शिक्षा उन्हों ने प्राप्त की । हाई स्कूल जाफरिया नेशनल इण्टर कालेज से किया तो पूरे जिले में उन का पहला स्थान था । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एम टेक और रोहैलखण्ड यूनिवर्सिटी से बी टेक जैसी उच्च डिग्री प्राप्त इंजिनियर हाशिम रजा जलालपुरी ने बाद में उर्दू साहित्य से एम् ए किया । साहित्य का रंग इंजीनियरिंग पर भारी पड़ा और आज वह साहित्य के फलक पर एक चमकदार सितारा हैं । अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बरेली यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर भी काम करने का उन्हें अनुभव प्राप्त है ।
आबिद हुसैन की कलम से
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