एस.एन.वर्मा
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फिनलैन्ड और स्विटजरलैन्ड ने औपचारिक रूप से नेटो की सदस्यता के लिये आवेदन भेज दिया है। नेटो अमेरिका के नेतृत्व में शीत युद्ध के समय बना एलायन्स है जो सदस्य देशों की रक्षा रूस के विस्तारवादी नीति से करने के लिये प्रतिबद्ध है। उक्रेन युद्ध ने योरोप और पूरी दुनिया के भू-भौलिक स्थिति में बदलाव ला दिया है। दोनो देशों को सदस्यता मिल जाने से महाद्वीप की सुरक्षा स्थिति में काफी बदलाव आ जायेगा। क्योकि पश्चिमी रूस सीमा के लम्बे रेन्ज पर नेटो की पहंुच हो जायेगी। इसके अलावा बटलान्टिक समुद्र के बीच का द्वीप जो स्वीडन का है गाटलैन्ड नेटो के लिये रणनीतिक सुविधा का स्थान बन जायेगा। जब स्वीडन और फिनलैन्ड नेटो के सदस्य हो जायेगे तो बाल्टिक सागर जो उत्तरीसागर के लिये रूस का गेटवे है पूरी नेटो के पश्चिमी सदस्य देशो से घिर जायेगा। फिनलैन्ड, इटोनिया, लटीवा, पोलैन्ड, लुथानिया, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन जो रूस के लिये सहज नहीं होगा।
स्वीडन और फिनलेन्ड अपने विगत के इतिहास को जो निर्गुट रह कर दोनो ब्लाक से दोस्ती बनाये रखने की थी, सुपर पावर से दूरी बनाकर रहने की थी को भूलते हुये नेटो की सदस्यता के लिये आवेदन किया है।
विश्व युद्ध के बाद फिनलैन्ड रूस के सुरक्षा एलायन्स ट्रीटी आफ फ्रेन्डशिप, कोआपरेशन एन्ड म्युचुअल असिस्टेन्स से दूर रक्खा। अमेरिका के मार्शला प्लान जो योरप के लिये दूसरे विश्वयुद्ध से हुये नुकसाल को भरपाई करने के लिये बनाया गया था उससे भी फिनलैन्ड अपने को दूर रक्खा जबकि मार्शल प्लान से उसके राजधानी को अतिरिक्त सुरक्षा मिलती।
शीतयुद्ध के अन्त के बाद सोवियत रूस के विघटन के बाद फिनलैन्ड नेटो का सदस्य नहीं बना अपनी निर्गुटता बरक़रार रक्खा। यहां तक की योरोपियन यूनियन में वह 1995 में दाखिल हुआ। हालाकि कई बार इसके निर्गुटता पर सवाल भी उठे है जैसे हिटलर के जर्मनी को मदद देने के लिये वियतनाम युद्ध का विरोध करने के लिये। उसी समय स्वीडन अमेरिका के साथ एक गुप्त समझौते में शामिल हुआ था। 1990 में स्वीडन ने अपनी निर्गुटता त्यागते हुये नेटो के साथ उसके मिशन बोसानिया, अफगानिस्तान और लीबिया में साथ हो लिया था। उसी समय 1995 में योरोपीय यूनियन में शामिल हो गया था। 2010 में फिनलैन्ड योरोपियन कामन सेक्योरिटी एन्ड डिफेन्स पालसी का हिस्सा बन गया था।
दोनो देश नाटो में जाने की चर्चा ही कर रहे थे पर रूस द्वारा क्रीमया को जबरदस्ती अपने में मिला लिया जाना दोनो देशो को नाटो की गोद में गिरा दिया। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला जो 24 फरवरी को हुआ था सब कुछ बदल दिया। फेनलेन्ड तुरन्त नाटो में जाने को तैयार हो गया। स्वीडन में चूंकि आम चुनाव होना था इसलिये जनमत द्वारा लोगो का मत जान कर नाटो में जाने का फैसला लिया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने लोगो की धारणा को गलत बताया कि नाटो के विस्तार से क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा, उन्होंने कहा इसके उलट नाटो और ईयू और मजबूत हेागे। पुतिन पर लगाम लगाने का दोनो काम करेगे क्योंकि पुतिन विश्वसनीय नहीं रह गये है। क्रमशः दोनो देश नाटो के 31वें और 32वें सदस्य बन जायेगे। रूस ने पहले तो विरोध किया था फिर कहा उसे कोई ऐतराज नही है बस सीमा पर हथियारों का जमावड़ा नहीं होना चाहिये।
दोनो के सदस्य बनने में अवरोध तुर्की है जो 1952 से नाटो का सदस्य है, नाटो में अमेरिका के बाद उसकी दूसरी सबसे बड़ी सेना है। तुर्की की दलील है कि दोनो मुल्कों ने कुर्दिश गु्रप को सुरक्षित रास्ता दिया था कुर्दिस्तान के लिये।
नाटो की सदस्यता सभी देशों के लिये उपलब्ध है जो कुछ शर्तो का पालन करते है। प्रजातान्त्रिका राजनैतिक सिस्टम मार्केट इकानमी आधारित है। अल्पसंख्यकों के साथ न्यायपूर्ण व्योहार झगड़ा का शान्तिपूर्ण हल के लिये प्रतिबद्धता नाटो के अपरेशन में सैनिक सहयोग की क्षमता सिविल, मिलिट्री और संस्थाओं के सात लोकतान्त्रिक प्रतिबद्धता। नये सदस्य एक मत से स्वीकार किये जाते है। सदस्यता की प्रक्रिया साथ अवस्थाओं से गुजरती है जिसमें चार महीने से एक साल लग सकते है। अगर रूस सदस्यता पूरी होने के पहले दोनो देशों पर हमला करता है तो यूके, डेनमार्क, नारवे ने उनकी मदद से आने के लिये अश्वासन दिया है।