लोक से ज्यादा परलोक

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

इस समय भारत के माहौल में लोक से ज्यादा परलोक का शोर है। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सभी मन्दिर, मस्जिद, आजान, कीर्तन, हनुमान चालिसा में उलझे हुये है। लाउडस्पीकर का मसला हल हुआ पर पुराने मन्दिरों मस्जिदों, इमारतों को लेकर दोनो पक्ष अपने-अपने दावे कर रहे है। पुरानी इमारते, मन्दिर, मस्जिद वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। जिसे देखने के लिये दुनियांभर से पर्यटक आते है। अगर सबकी मांगो को मानकर सर्वे किया जाय, खोदायी करके पता लगाया जाय की नीचे क्या है तो प्रमुख शहरों के कुछ शहरा तो खन्डहरों में तब्दील हो जायेगे। उससे मिलेगा क्या जिस पक्ष के हिस्से में सबूत मिलेगो उसे थोथा अभियान मिलेगा। अगर धार्मिक स्थल हुये तो क्या परलोक सुधर जायेगा। जबकि इस लोक में सब अशान्त और परीशान है नारे और जलूस के जाल में फंसे हुये है। कोर्ट में योभी मुकदमों की भरमार है। कमेटियां और लोग अपील दायर कर सुर्खी बटोरने के लिये पैसा भी खर्च कर रहे है और मेहनत भी कर रहे है। मौजूदा संसार में कई समस्यायें है। अच्छी सेहत, अच्छा पानी और खाना अच्छा निवास, गर्म होती पृथ्वी जैसी कई समस्यायें है। सबसे बड़ी परेशानी बढ़ती महंगाई पैदा कर रहा है। इसे लेकर लोगो का बस इतना सहयोग है कि सरकारों को कोस रहे है। राजनैतिक दल विरोधी दलों की सरकारों और पार्टियों को अक्षम बता सारी समस्याओं की जड़ बता रहे है। कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियां है जिनकी सरकारे रही है। वो भूल जाते है कि उनके समय में भी यही समस्यायें रही है। आम आदमी चाहता है सरकार सबकुछ पका कर दे दे और सरकार उन्हें खिला भी दे। मेहनत और आर्थिक प्रयासों से बचता है। बस सरकारी नौकरी चाहता है। हर चीज की सीमा होती है। संघर्ष से आम आदमी भांगता है, जबकि देश में ही कई उदाहरण है जहां कुछ लोग जीरो से शुरू होकर टाप पर पहुंच गये है। सघंर्ष, मेहनत, सूझबूझ के बल पर। आदमी मन्दिर, मस्जिद में जाकर सब कुछ पा लेने की प्रार्थना करता रहता है।
धर्म के आडम्बरियों ने लोगों के दिमाग को भ्रमित कर दिया है कि जन्नत मे हूरे मिलेगी। हिन्दुओं में बुरे काम के लिये रौरौ नरक मिलेगा अच्छे काम के लिये स्वर्ग में सारे सुख आराम मिलेगा। आदमी इस लोक को भूल कर परलोक सुधारने के लिये मन्दिर, मस्जिद, अजान, लाउडस्पीकर, कीर्तन, हनुमान चालिसा का मुद्दा उठा रहा है। परलोक जिसे नहीं देखा है केवल सुना है उसके पीछे पागल है, जान लेने देने के लिय तैयार रहता है। जिस लोक को देख रहा है, जिस पर उसका वर्तमान जीवन निर्भर है उससे उदासीन है बस सोचता है कही से सम्पत्ति मिल जाये बड़ा आदमी बन जाये। इसमें जो लोग सच्चाई समझते है, इमानदारी और मेहनत से काम करके आगे बढ़ गये है।
इस समय ज्ञानव्यापी का मुद्दा छाया हुआ है, और मथुरा वगैरह के मुद्दे उठने को तैयार है।
धार्मिक स्थलों के बारे में वर्शिय ऐक्ट 1991 है। इसके तहत 15 अगस्त 1947 को जिन धार्मिक स्थलों का स्तीत्व था। उनमें कोई भी फेर बदल नहीं किया जायेगा। अयोध्या मामले में कोर्ट को निर्णाय इसलिये देना पड़ा क्योंकि यह केस 1947 से पहलो का था।
ज्ञानव्यापी सर्वे को लेकर दोनो पक्ष अपने अपने दावे कर रहे है। कोर्ट के निर्णय के बाद भी अपील दायर किया जा रहा है। निगाहे सुप्रीम कोर्ट पर है कि वह क्या फैसला सुनाता है। वैसे 1991 का ऐक्ट संविधान सम्मत है, सेकुलर की अवधारणा से पूरी तरह मेल खाता है। अगर इस लीक से हटकर कोई निर्णय आता है तो डर है देश फिर अशान्ति के भंवर में फंस जायेगा।

 

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