श्रद्धापूर्वक मनाया स्वामी तुरीयानन्द महाराज का 51वां निर्वाण दिवस

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अवधनामा संवाददाता

सहारनपुर । श्री श्री 1008 स्वामी विवेकानन्द गिरी महाराज ने कहा कि कोई आदर्श धर्म से बड़ा नहीं है। आदर्श एक श्रेष्ठतम अवस्था है, परन्तु वह बदलती रहती है। इसी कारण धर्म भी बदलता रहता है, इसलिए धर्म के अनुरूप हमारे आदर्श होना चाहिए।
श्री श्री 1008 स्वामी विवेकानन्द गिरी महाराज आज यहां मंडी समिति रोड स्थित कृषण नगर में सिद्धपीठ श्रीश्री 1008 स्वामी तुरीयानन्द सत्संग सेवा आश्रम में सतगुरू श्रीश्री 1008 स्वामी तुरीयानन्द महाराज की 51वीं पुण्यतिथि पर आयोजित दो दिवसीय सत्सग में गद्दीनशीन श्री श्री 1008 स्वामी विवेकानन्द गिरी महाराज प्रवचन कर रहे थे। स्वामी तुरीयानन्द ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पं.चूडामणि एवं दीपक अग्निहोत्री द्वारा प्रातः सुंदरकाण्ड का पाठ कराया गया व सत्संग तथा संत प्रवचन हुए। हवन कुण्ड में पंडित द्वारा श्रद्धापूर्वक हवन यज्ञ कराया गया तथा अल्पाहार व नाश्ते के पश्चात संत प्रवचनों में गद्दीनशीन महाराज ने फरमाया कि कोई आदर्श धर्म से बड़ा नहीं है। आर्दश एक श्रेष्ठतम अवस्था है, परन्तु अवस्था बदलती रहती है। इसी कारण धर्म भी बदलता रहता है, इसलिए धर्म के अनुरूप आदर्श होना चाहिए। महाभारत में दुर्याेधन अधर्म का प्रतीक है, दोणाचार्य ने राष्ट्र से ज्यादा, धृतराष्ट्र के उपकारों को ऊपर रखा वो महर्षि भारद्वाज और अप्सरा धृताची के पुत्र थे। वे भी भीष्म व कर्ण की भांति भगवान परशुराम के शिष्य थे। कर्ण भी कुन्ती व सूर्यदेव के पुत्र थे। इसके बारे में एक कथा यह भी है कि कर्ण का जन्म एक वरदान स्वरूप हुुआ था। दुर्वासा ऋषि कुंवारी कुन्ती के लगातार एक वर्ष की सेवा से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जब भी तुम किसी देवता का आहवान करोगी तो तुम सन्तान उत्पन्न कर सकती हो। कुन्ती ने उत्सुकता से जब सूर्यदेव का आहवान किया तो सूर्य समान तेज, कवच व कुण्डल धारण किये हुए कर्ण पैदा हुए। महाभारत में एक अन्य उदाहरण शल्य नरेश का भी है जो धर्म के अनुरूप एक आदर्श है। नकुल, सहदेव के मामा शल्य नरेश जो मद्रराज (जो अब मध्य प्रदेश में है) के राजा थे। वे अपने पुत्रों व एक अक्षोहिणी सेना के साथ, पाण्डवों के बुलावे पर उनकी ओर से युद्ध के लिए चल दिये रास्ता लम्बा था रास्ते में दुर्याेधन ने छल कपट से उनकी सेवा करके उनसे अपने पक्ष में तथा पाण्डवों के विरोध में युद्ध करने का वरदान प्राप्त कर लिया। इस तरह महाभारत में बहुत सारे योद्धा धर्म को जानते हुए भी अपने आदर्शों के कारण उन्होंने अधर्म के पक्ष में युद्ध किया। आज भी स्थिति वही बनी हुई है, बल्कि अपने आदर्शों के कारण समाज व राष्ट्र के भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि धर्म का ज्ञान देने का कर्तव्य आज के समाज में स्त्री से ज्यादा पुरूष का है। इस अवसर पर स्वामी तुरीयानन्द ट्रस्ट के अध्यक्ष ओम प्रकाश अरोड़ा, उपाध्यक्ष महेन्द्र पाल ढल्ल, सचिव प्रवीण वधावन, कोषाध्यक्ष बिहारी लाल धमीजा तथा संयुक्त सचिव सुभाष चन्द मल्होत्रा एवं स्थानीय तथा बाहय संगत ने उपस्थित होकर धर्मलाभ उठाया एवं विशाल भण्डारे का आयोजन हुआ।

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