एस.एन.वर्मा
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अम्बेडकर नहीं है पर आज भी उपयोगी बने हुये है। हर पार्टी उन्हें अपना बनाने पर तुली हुई है। पर हर पार्टी का यही हाल है कि चुनाव के मद्देनजर दलितों और अछूतो को अपने वोट बैंक में मिलाने के लिये तरह-तरह के हथकन्डे अपनाती रही है। यहां तक की बसपा जो दलितों अछूतों की मुख्य पार्टी है जिनके लिय यह पार्टी बनी वे भी वोट बैंक तक ही उनकी उपयोगिता मानते है। जब कभी यूपी में उनकी सरकार रही ऐसा कुछ नहीं किया जिससे उनकी हालत में मौलिक सुधार आये। केवल दूसरी पार्टियों को लान्छित कर उनका उद्धारक बनती रही। समाज की समरसता को बिगड़ने के लिये कभी मारो जूता चार जैसे नारे चलाती रही अब इसे छोड़ दिया। उसके समझ में आ गया की सभी को साथ लेकर चलने से ही बात बनेगी। यहां तक की जिन दलितों और अछूतों को कानून बनाकर तरक्की के लिये सरकारी सहूलियते दी गयी उन्होंने तो अपनी हालत सुधार ली और कुलीनों की श्रेणी आ गये। अपने भाइयों को भुला दिया उनके नाम की सारी सहूलियत हड़पते रहे है। भाजपा ने सूझबूझ के साथ उज्जवला योजना, आवास योजना, मुफ्त राशन योजना चलाई जिससे बसपा का कोर वोटर बैंक भाजपा के पाले में आ गया। भाजपा ने अहम पदों पर उनको बैठाया भी है, महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों सौपी है।
अब अम्बेडकर पर आते हैं जिनकी वजह से उपरोक्त गतिविधियां अस्तित्व में आई औैर चल रही है। हर पार्टी उन्हें अपना बनाने पर तुली है और वैभव के साथ उनसे सम्बन्धित इवेन्ट को मना रही है। भाजपा ने अपने निन्मतम इकाई तक अम्बेडकर की जन्मशती मनाई है। अन्य पार्टियां अपने तरीके से जो बनी बनाई औपचारिकतायें हैं उसके अनुसार मनाया है। सबका एक ही स्वर है अम्बेडकर सबसे ज्यादा हमारे है। बसपा तो अपना जन्मासद्धि अधिकार मानती है। त्यौहार और उत्सव के नीचे सही उत्थान का कार्यक्रम दब गया है। दलित और पिछड़ों के लेकर जाति को लेकर कितनी छोटी-छोटी पार्टियां बन गई हैं। उनको लगता है वे या उनके परिवार के लोग चुनाव जीत गये तो इनका उद्धार हो जायेगा। बड़ी पार्टियों के साथ सौदेबाजी करते है कभी इस पार्टी तो कभी उस पार्टी में कूदते फादते रहते है।
अम्बेडकर सिर्फ दलितो के मसीहा ही नहीं है वह बड़े राष्ट्र निर्माताओं में से एक है जिन्होंने वर्तमान भारत को खड़ा किया है। वह अंग्रेजो के खिलाफ नहीं थे न उनके खिलाफ लड़े फिर भी बिना उनके आधुनिक भारत की कल्पना नही की जा सकती। अम्बेडकर की लड़ाई छूआछूत, जातिवाद को लेकर थी। अम्बेडकर गांधी और कांग्रेस के प्रति आसक्त नहीं थे क्योंकि दोनो व्रिटिशरूल से मुक्ती के लिये लड़ रहे थे। समाज की समरसता, छूआछूत, जातिवाद के खिलाफ नहीं लड़ रहे थे। इसके बावजूद गांधी जी अम्बेडकर की बहुत इज्ज़त करते थे कहते थे उन्हें छूआछूत और जातिवाद को लेकर उग्र होने का अधिकार है।
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों को पढ़ने के बाद अम्बेडकर इस निष्कर्ष पर पहंुचे की सारी सामाजिक बुराई धर्म को लेकर है जिसमें पवित्रता पर जो़र है जो छूआछूत जातिवाद काजड़ है। धर्म की वजह से ही जातिवाद दूर नहीं किया जा सका। उन्होंने इसे लेकर एक भाषण दिया था जो 1935 में एनहीलेशन आफ कास्ट नाम से छपी थी। उसमें उन्होंनें कहा था मैं हिन्दू ज़रूर पैदा हुआ हॅू पर मरूगा गैर हिन्दू होकर। मारने के कुछ दिन पूर्व वह चार लाख लोगो के लेकर बौद्ध हो गये।
वह भारत को एक अच्छी जगह बनाने के लिये प्रयत्नशील रहे। संविधान के ड्राफ्टिग कमेटी के चेयरमैन की हैसियत से जो संविधान उन्होंने दिया वह उनके सपनों का भारत है। उनका मत था कानून ही सामाजिक समरसता और सामाजिक प्रजातन्त्र ला सकता है। उन्होंने स्वतन्त्रता, समता और भाईचारा की दिशा में काम किया। उनका दृढ़ विश्वास था। कि कानून ही सामाजिक परिवर्तन ला सकता है। व्यक्ति की डिगनिटी पर उनका जोर था। अम्बेकर नेताया था कि राजनीति में तो समता रहेगी पर सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में गैर बराबरी। इसे मिटाया नहीं तो जो प्रजातंन्त्र मेहनत से लाया गया है समाप्त हो जायेगा। उन्होंने भाईचारा को लेकर कहा था कि हजारो जातियों मे बटासमाज एक राष्ट्र कैसे हो सकता हैं। जातिवाद को खत्म करना होगा। नेहरू मंत्रीमन्डल असहज कर महसूस कर रहे थे नेहरू का जोर आर्थिक उत्थान पर है समाजिक उत्थान पर नहीं। अधिकार की रक्षा कानून से नहीं होती है समाज के सामजिक और नैतिक अन्तरआत्मा की आवाज से होती है। अम्बेडकर नेताओं प्रति हीरो वर्शिय को नापसन्द करते थे। भक्ति धर्म में मुक्ति दिला सकती हैं पर राजनीतिक में गिरावट लाती है और ताना शाह पैदा करती है। उनका सपना जाति विहीन समतामूलक समाज और वास्तविक प्रजातान्त्रिक प्रणाली और सरकार का रहा है। पर आज कुलीनतन्त्र दिख रहा है जो उनके सपनों के प्रतिकूल है। मूर्ति पर माला चढ़ाना, उनकी तारीफ में कसीदे काढ़ना, पूजा करना एक औपचारिकता बन कर रह जाता है। जरूरत उनकी शिक्षा को व्योहार में उतारने की है। जो समतामूलक समाज, आर्थिक बराबरी और सही प्रजातान्त्रिक सरकार का है जिसमें जातिवाद का अस्तित्व खत्म हो जाये।
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