यूपी के यादव कुनबा का बिखराव

0
163

 

एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

कभी यूपी क्या देश की सबसे ताकतवर समझे जानी वाली यादव कुनबा बिखरता चला जा रहा है। 2012 में जब समाजवादी पार्टी सिरतोड़ बहुमत के साथ यूपी में आई तो परिवारिक अनुशासन के लीक पर शिवपाल मुख्यमंत्री के दावेदार थे। मुलायम और शिवपाल सिंह का भाईचारा आदर्श था, परिवार में बड़े छोटे के बीच लिहाज की भारतीय परम्परा रही। पर जब मुलायम सिंह ने पुत्र मोह में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया तब यही से मुलायम सिंह के कुनबे में दरकन शुरू हो गई और आपसी सामंजस्य बिगड़ता गया। आज स्थिति बेकाबू दिख रही है।
जिस विधायक दल की बैठक में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री घोषित किया जाना था शिवपाल उस बैठक में शामिल होने नहीं जा रहे थे। पर मुलायम सिंह के दबाव में शामिल हो गये। चाचा भतीजे की दूरी तबसे लगातार बढ़ती ही जा रही है। कहते है मुलायम सिंह की सारी शख्यित और पार्टी की मजबूती शिवपाल सिंह की वजह से है। शिवपाल सिंह की पार्टी पर पकड़ मजबूत थी। अदना से अदना कार्यकर्ता की समस्या के निराकरण लिये के तत्काल सम्बन्धित अधिकारी फोन कर देते थे। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में उनकी लोेकप्रियता बहुत अधिक थी।
जब अखिलेश मुख्यमंत्री बन गये जिनके नाम को चाचा शिवपाल ने मुलायम सिंह के दबाव में प्रस्तावित किया। उसके बाद कहते है शिवपाल ने अखिलेश के खिलाफ कदम उठाते रहे यहां तक की मुलायम सिंह पर दबाव डालकर प्रेस कान्फ्रेन्स करवायी और अखिलेश की पार्टी से छह साल के लिये निष्कासित करने के ऐलान करवा दिया। इस बात को अखिलेश भुला नहीं सके और दिनों ब दिन खटपट उठापटक कभी खुल कर कभी छुपे तौर पर चल रही है।
हाल के विधानसभा चुनाव ने जब अखिलेश शिवपाल को अपने पार्टी का चुनाव चिन्ह देकर चुनाव लड़वाया तो लगा यादव परिवार एकजुट हो रहा है। लेकिन चुनाव नतीजे के बाद जब अखिलेश ने पार्टी विधायकों की बैठक की तो उसमें शिवपाल को न ही बुलाया कहा चाचा का दल सहयोगी संगठन है। जब सहयोगी संगठन की बैठक होगी तब उन्हें बुलायेगे। लेकिन जिस दिन सहयोगी संगठन की बैठक आयोजित हुई शिवपाल बैठक में नहीं पहुंचे। कहते है बैठक की सूचना शिवपाल को देर से दी गयी। शिवपाल को निश्चय ही बुरा लगा होगा और अपमानित महसूस किये होगे। पता नहीं किस सोच से प्रेरित हो सीएम योगी से मिलने चले गये। जब अखिलेश को उनके पार्टी के कार्यकर्ता ने फोन करके बताया तो तो अखिलेश ने कहा उन्हें वहां तो जाना ही था। इसके अलावा अखिलेश कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। पर शिवपाल दिमागी तौर पर खोये से लगते है। ऐसा आभास होता है अपने लिये सही भूमिका के तलाश में है और इसी के बारे में सोच रहे है। उनको लेकर कई चर्चायें भी चल रही है। योगी मुलाकात के बाद वह भाजपा में जाते है या नहीं अभी यह भविष्य के गर्भ में है।
सवाल है देश में इस समय घुरविरोधी पार्टियां एक हो रही है। फिर अखिलेश अपने चाचा को साथ क्यों नहीं रखना चाहते। अखिलेश की अपनी धारणा है कि चाचा को साथ रखने में फायदा कम नुकसान जादा है। पिछले लोकसभा और वर्तमान विधानसभा चुनाव में यह देखने को मिला कि जो यादव-मुस्लिम वोट बैंक मुलायम सिंह की सियासी पूजी रही है उसने अखिलेश यादव को अपना नेता मान लिया है। इसलिये अखिलेश को अब शिवपाल की कोई जरूरत नहीं लगती है। इस समय पार्टी पर अखिलेश को पूरा नियन्त्रण है। चाचा को साथ लेगे तो वे अपना पावर बेस बनाना शुरू कर देगे। अखिलेश पार्टी नियन्त्रण में कोई बंटवारा नहीं चाहते। इस लिये चाचा को कोई तरजीह नहीं दे रहे है। चाचा में योग्यता तो है ही पार्टी में रहने पर स्वाभाविक तौर पर उनका पावर बेस बनने लगेगा। तो यादव परिवार की एक होने की सम्भावना नहीं है।
शिवपाल के बारे में कई चर्चा मेेें है। वह भाजपा में जा सकते है, वह राजसभा में जा सकते है। वह उप राष्ट्रपति भी बन सकते है। राजनीति गलियारे में आफवाहे, उठापटक तो चलती ही रहती है। तो चती ही रहती है। महाभारत में प्रकरण है कि यादव कुुल आपस में लड़कर ही नष्ट हुआ था। पर यूपी के लिये खुदाइन यादवों को बचाये रक्खे।

 

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here