अवधनामा संवाददाता
अतरौलिया /आजमगढ़ (Atraulia / Azamgarh)I ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान द्वारा एक दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वैज्ञानिकों द्वारा ग्रामीण समुदाय के दुर्बल वर्ग हेतु सतत कृषि हेतु कृषि अवशेषों का सूक्ष्मजीव आधारित जैव उत्परिवर्तन तकनीक एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन। मऊ जनपद के कुशमौर स्थित राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित एस.सी.एस.पी परियोजना के अंतर्गत दिनांक 28 जुलाई 2021, दिन बुधवार को ग्राम पंचायत भिउरा , ब्लॉक अतरौलिया, जिला आजमगढ़ में ग्रामीण समुदाय के दुर्बल वर्गों के लिए एक दिवसीय इंटरैक्टिव प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में में ग्रामीण पुनर्निर्माण संस्थान ऐन जी ओ के सचिव श्री राजदेव चतुर्वेदी, ग्राम प्रधान रामधारी एवं अन्य ग्रामीणों ने वैज्ञानिकों का स्वागत किया।कार्यक्रम में ब्यूरो के प्रधान वैज्ञानिक डॉ रेनू एवं डॉ पवन कुमार शर्मा , कृषि विज्ञानं केंद्र, कोटवा के वैज्ञानिक डॉ आर के सिंह, डॉ रूद्र प्रताप सिंह , डॉ रणधीर नायक और शैलेंद्र सिंह ने किसानों के साथ स्वस्थ पर्यावरण, फसल, मिटटी हेतु उचित कृषि तकनीकों को अपनाने पर विचार विनयमन किया. ब्यूरो की प्रधान वैज्ञानिक एवं परियोजना प्रभारी डॉ. रेनू ने किसानों को कृषि अवशेषों की त्वरित कम्पोस्टिंग प्रक्रिया एवं कृषि में जैविक एवं उन्नत तौर-तरीकों को अपनाने के लिए जोर दिया. डॉ. रेनू के अनुसार वर्तमान में रासायनिक-फसल उत्पादन पद्धतियों से छुटकारा दिलाने में भूमिका निभाने वाले नए विकल्पों के रूप में किसानों के सामने सूक्ष्मजीवों के जैविक अनुकल्पों के रूप में ट्राईकोडर्मा, स्यूडोमोनास, पी एस बी, बैसीलस, बीवेरिया, एजोटोबैक्टर, राइजोबियम, माइकोराइजा आदि उपलब्ध हैं. इन विकल्पों को खेती में स्थान देने से मिट्टी और फसल दोनों का स्वास्थ्य सुरक्षित रखा जा सकता है। डॉ आर के सिंह हेड कृषि विज्ञान केंद्र कोटवा के अनुसार कृषि रसायनों से उपजी समस्याओं के समूल निराकरण के लिए सूक्ष्मजीव, गुणवत्तायुक्त कम्पोस्ट और पौध-आधारित प्राकृतिक तत्व अनुकल्पों के रूप में किसानों के द्वारा अपनाए जाएँ, यह समय की मांग है। डॉ रूद्र प्रताप सिंह में बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जनपद के किसानों को धीरे धीरे ही सही पर रसायन-आधारित कृषि पद्धतियों से छुटकारा दिलाना है. बदले में सूक्ष्मजीव और अन्य पौध-उत्पादों पर आधारित खेती के उपायों को आत्मसात करके किसान कृत्रिम रसायनों के अधिकाधिक उपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से बच सकते हैं.
डॉ पवन कुमार शर्मा ने महिला किसानों के सामने सूक्ष्मजीव द्वारा बीज, जड़ और मृदा शोधन के प्रयोगों को प्रदर्शित करने के साथ ही खेत में फसलों पर इन जीवों के जलीय अनुकल्पों का छिड़काव भी करके दिखाया. उन्होंने महिलाओं को मशरूम उत्पादन की गैर परंपरागत खेती कर रोजगार के नए साधन के रूप में आय बढ़ा सकते हैं। साथ ही कार्यक्रम में डॉ रणधीर नायक द्वारा त्वरित कम्पोस्टिंग की एक ऐसी टेक्नोलॉजी जो लगभग 60-70 दिनों के भीतर कृषि अवशेषों को कम्पोस्ट में परिवर्तित कर सकती है, का भी प्रदर्शन किया गया. मिट्टी में इन जीवों से संपोषित कम्पोस्ट का प्रयोग भी करके दिखाया गया। प्रायः बीज-उपचार के समय एक बार ही उपयोग किये जाने वाले सूक्ष्मजीव अनुकल्पों को फसल की विभिन्न महत्वपूर्ण अवस्थाओं के दौरान भी प्रयोग किये जाने के विषय में भी व्यापक रूप से प्रदर्शन प्रदान किया गया जिससे इंटरैक्टिव लर्निंग के माध्यम से किसान इन पद्धतियों को आत्मसात कर सकें. शैलेंद्र सिंह में मिट्टी की उर्वरकता बढ़ने पर जोर दिया एवं पशुपालन से जुड़ने के लिए कहा। प्रशिक्षण कार्यक्रम में गाँव के 110 से अधिक महिला किसानों ने भाग लिया. इन महिला किसानों में हाल ही में एक फार्मर प्रोड्यूसर ग्रुप बनाया है। पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम में परियोजना से जुड़े शोधकर्ता आशीष, नागेश, अमित, आस्था तिवारी, रविंदर, हरिओमआदि की विशेष भूमिका रही।
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