भारत में भाषा चिंतन की लम्बी परम्परा हैःडा.उदय प्रताप
प्रयागराज(Prayagraj)। ‘भारतीय भाषा चिंतन विश्व भाषा चिंतन का गोमुख है। मैं जब ऐसा कह रहा हँू तो मेरे स्मृति में व्लूम फील्ड, लायन्स, चाम्स्की, तिपास्की, फिलमोर और तमाम पाश्चात्य चिंतकों का वह कथन है, जिसमें उन्होंने मुक्तकंठ से भारतीय चिंतन का पूरा प्रदेय स्वीकार करते हुए प्रशंसा की है। व्लूम फील्ड ने अपनी पुस्तक (भाषा) में कहा है – पाणिनि मानव मेधा के उच्चतम स्मारक थे। अर्थात् इससे बड़ी मानव मेधा की कल्पना नहीं की जा सकती।
उक्त बातें आज यहां हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में अपराह्न 3ः00 बजे एकेडेमी स्थित गाँधी सभागार में डॉ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत ‘भाषाचिंतन की भारतीय परंपरा और डॉ. उदयनारायण तिवारी’ विषयक एकल व्याख्यान का आयोजन में जबलपुर, मध्य प्रदेश से आये डॉ. त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने डॉ उदयनारायण तिवारी के भाषा अध्यापन के क्षेत्र में योगदान पर प्रकाश पर डालते हुए कहीं।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मां सरस्वती की प्रतिमा एवं डॉ उदयनारायण तिवारी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम के प्रारम्भ में एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने आमंत्रित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिह्न और शॉल देकर किया।
श्री शुक्ल ने कहा कि ऋग्वेद में ‘भाषा’ का एक अद्भुत रूपक मिलता है, जो विश्व भाषा चिंतन का आधार बनता है। ‘चत्वारिश्रृंगाः त्रयोऽस्यपादाः द्वे शीर्षे सप्तहस्तासौ अस्याः त्रिधो वाद्धो वृषभो रोेरवीतिमहो देवो मर्त्यां आविशेषः आदि। इसकी लम्बी व्यवस्था है हमारे भारतीय भाषा चिंतन में मुनित्रय (पाणिनि, कात्यायन, पतंजलि) का भाषा चिंतन आगे चलकर विश्व भाषा चिंतन का आधार बनता है। पाश्चात्य भाषा चिंतन का सबसे आधुनिक चिंतन किस ग्रामर कारक व्याकरण हैं – फिल्मोर का इसमें फिल्मोर ने पाणिनि के कारक प्रकरण को आधार बनाया है और उनका ऋण भी स्वीकार किया है। इसी प्रकार यास्काचार्य का निरुक्त और भर्तृहरि का वाक्यपदीयम भारतीय भाषा चिंतन की कीर्ति के स्मारक हैं। प्रातिशाख्यों और शिक्षा ग्रथों में स्वनविज्ञान (ध्वनि विज्ञान) पर विचार किया है। इन्हीं शिक्षा ग्रंथों के आधार एलेन ने पुस्तक लिखी। जहाँ तक श्रद्धेय गुरुवर डॉ. उदयनारायण तिवारी का प्रश्न है, वे भारत में भाषाविज्ञान के अध्ययन अध्यापन की आधार शिला रखने वालों में से एक थे। उनका भोजपुरी भाषा और साहित्य, अभिनव भाषा विज्ञान, भाषा शास्त्र की रूपरेखा भाषा विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास, हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास’ आदि अमर कृतियाँ हैं। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, डॉ. बाबूराम सक्सेना और डॉ. उदयनारायण तिवारी आधुनिक भाषा चिंतन की त्रयी थे। मैं इनकी स्मृति को प्रणाम करते हुए अपने व्याख्यान (वक्तव्य) को समाप्त करता हँू।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह ने कहा कि भारत में भाषा चिंतन की लम्बी परम्परा है। संस्कृत साहित्य में यह परम्परा गंभीर विमर्श तक पँहुच चुकी है। हिन्दी में भाषा चिंतन की परम्परा बहुत प्राचीन नहीं है पर हिन्दी खड़ी बोली के विकास के साथ वह परम्परा भी बर्द्धमान होती रही है। संस्कृत में सायण इत्यादि आचार्यों ने इस पर वैज्ञानिक चिंतन किया है। उसी तर्ज पर हिन्दी में डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, उदयनारायण तिवारी, पं. विद्यानिवास मिश्र, भोला शंकर व्यास ने हिन्दी भाषा के उद्भव व विकास पर गंभीर अध्ययन किया है। डॉ. उदयनारायण तिवारी अग्रगण्य हैं।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि डॉ उदयनारायण तिवारी का भाषा-विज्ञान के क्षेत्र मे विशेष योगदान था उनकी स्मृति में हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को ‘डॉ उदयनारायण तिवारी स्मृति व्याख्यानमाला’ का आयोजन करती है इसी क्रम में आज व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी का हमेशा से यह प्रयास रहता है कि साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र के विद्वानों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को आम जनमानस तक पहुँचाया जाय। व्याख्यानमाला का संचालन एकेडेमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने किया। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में राम नरेश तिवारी ‘पिण्डीवासा’, डॉ. आद्या प्रसाद सिंह ‘प्रदीप’, डॉ. ओंकार नाथ द्विवेदी, प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, रविनंदन सिंह, वंदना शुक्ला, डॉ. सरोज सिंह, डॉ. रमेश सिंह, विवेेक सत्याशु, रणविजय सिंह, डॉ. पुर्णिमा मालवीय, सहित शोधार्थी आदि उपस्थित रहे।