अवधनामा संवाददाता
भाटपार रानी,देवरिया(Bhatpar Rani, Deoria)। इस्लामी साल का आखिरी महीना जिलहिज्जा की दसवीं तारीख को मनाया जाने वाला ईदुलजुहा यानी बकरईद का पर्व खुदा के नेक बन्दों व आशिकों के लिए इम्तिहान का दिन है।इसी दिन खुदा ने अपने पैगम्बर हजरत इब्राहिम से उनके इकलौता अजीज बेटा की कुर्बानी मांगकर उनके आशिक-ए-खुदा होने का इम्तिहान लिया था।इसी रस्म को अदा करते हुए मुस्लिम समाज के लोग इस दिन खुदा की राह में बकरे की कुर्बानी पेश करते हैं।इस मौके पर दुनिया भर के मुसलमान सऊदी अरब के पाक शहर मक्का शरीफ पहुंचकर काबे का तवाफ़ व हज का अरकान अदा करते हैं।इस दौरान हाजी लोग मीना के मैदान में शैतान को कंकड़ मारते हुए शफा-मरवा पहाड़ी का फेरी लगा मैदाने अराफ़ात से गुजरते हैं।देवरिया जिले के भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के भोपतपुरा गांव निवासी इस्लामी विद्वान मौलाना महमूद आलम कादरी ने बकरईद पर्व पर रौशनी डालते हुए बताया कि जब शहाब-ए-कराम ने पैगम्बर मुहम्मद सल्ल० से पूछा कि या रसूलुल्लाह!ये कुर्बानियां क्या हैं,तो उन्होंने फरमाया कि ये तुम्हारे बाप हजरत इब्राहिम की सुन्नत है।हर मालिके निसाब (सम्पन्न व्यक्ति) पर हर साल कुर्बानी करना वाजिब है।खुदा ने समय-समय पर तकरीबन एक लाख चौबीस हजार पैगम्बरों को दुनिया में भेजकर उनके जरिए अपने पैगाम को लोगों तक पहुंचाया।इसी कड़ी में आज से तकरीबन चार हजार वर्ष पहले खुदा ने हजरत इब्राहिम को इराक के बाबुल शहर में अपना पैगम्बर बनाकर पैदा किया।उस समय वहां का जालिम बादशाह नमरूद अपने घमंड में इतना चूर था कि वह अपने आप को खुदा कहकर लोगों से अपनी इबादत करने के लिए कहता था।जब पैगम्बर इब्राहिम ने उसका विरोध करते हुए सिर्फ एक खुदा को मानने की नसीहत देंना शुरू किया, तो बादशाह नमरूद ने तीस गज लम्बी व बीस गज चौड़ी चहारदीवारी के अंदर एक अग्निकुंड बनवाकर उसमें इब्राहिम को डलवा दिया।उस आग की तपिश से जहां पूरा शहर जल उठा,वहीं इब्राहिम के जिस्म पर उसका कोई असर नहीं हुआ।हदीश शरीफ में आया है कि पैगम्बर इब्राहिम को बुढ़ापे में एक इकलौता बेटा पैदा हुआ,जिनका नाम इस्माइल था।जब इस्माइल तेरह साल के थे,तो खुदा ने अपने पैगम्बर हजरत इब्राहीम का इम्तिहान लेने के लिए माहे जिलहिज्जा की आठवीं रात को ख्वाब में उन्हें कुर्बानी करने का हुक्म दिया।पैगम्बर इब्राहिम ने अगले सुबह 100 ऊंट कुर्बान कर दिया।फिर नौवीं तारीख की रात में यही ख्वाब दुहराया गया।अगले सुबह इब्राहिम ने 100 ऊंट और कुर्बान कर दिए।फिर दसवीं तारीख की रात उन्हें ख्वाब में अपने अजीज बेटा इस्माइल की कुर्बानी का हुक्म हुआ।यह सुन पैगम्बर इब्राहिम ने अपनी बीबी हाजरा से मशविरा कर अपने नूरे नजर तेरह वर्षीय बेटा इस्माइल को मक्का स्थित मिना के मैदान में कुर्बानी के लिए ले गए।इसी बीच शैतान उन्हें बहकाने लगा,जिस पर बाप-बेटा ने पत्थर मारा था।आज भी हाजी लोग उसी रश्म को अदा करते हुए शैतान को पत्थर मारते हैं।बताया जाता है कि जब हजरत इब्राहिम अपने आंखों पर पट्टी बांधकर अपने दिल अजीज बेटा इस्माइल के गर्दन पर छुरी चला रहे थे, तो वह छुरी काट नहीं रही थी।जबकि छुरी की धार इतनी तेज थी कि वह पत्थर भी काट सकती थी।इसी बीच खुदा के हुक्म से जिब्रील नामक फरिश्ता ने जन्नत से एक दुम्बा जानवर लाकर इस्माइल के जगह पर लिटा दिया।अब गला कटने पर जानवर की आवाज आई।जब पैगम्बर इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाया तो देखा कि उनका बेटा इस्माइल बगल में खड़े थे।खुदा ने कहा कि इब्राहिम!तुम अपने इम्तिहान में पास हो गए।इसी रिवायत के मुताबिक कुर्बानी का यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है।
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