अवधनामा संवाददाता
गोरखपुर जिला अस्पताल के एसआईसी ने ब्लड देने से किया था इनकार
गोरखपुर (Gorakhpur)। सरकारी तंत्र और सरकारी सुविधाएं आखिर किसके लिए हैं यह सवाल तब और प्रसांगिक हो जाता है जब एक ज़रूरतमन्द असहाय बीमार की डायलिसिस एक यूनिट ब्लड के अभाव में रुक जाती है । मंगलवार की देर शाम जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक ने ब्लड उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया लेकिन कहते हैं कि भगवान जब किसी को जीवन देता है तो उसका माध्यम भी बना देता है। ऐसा ही हुआ और शारिक के पिता को सरदार जसपाल सिंह के प्रयासों की बदौलत गोरखनाथ चिकित्सालय से ब्लड मिल गया।
पड़ोस के जिले से आये और शहर के एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती मरीज के पुत्र को अपने पिता की डायलिसिस के लिए एक यूनिट ब्लड के लिए इधर उधर भागते देखकर सरदार जसपाल सिंह ने मदद का हाथ तब बढ़ाया जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिला चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक ने परिस्थितियों को बिना समझे एक गरीब असहाय को ब्लड बैंक उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया जबकि उनके ब्लड बैंक में ब्लड की भरपूर उपलब्धता थी। जिला अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक द्वारा ब्लड देने से मना कर देना उन तमाम संस्थाओं और विभिन्न दलों द्वारा किये गए रक्तदान पर प्रश्नचिन्ह है जिन्होंने जरूरतमंद और इंसानी ज़िन्दगियों को बचाने की गरज से रक्तदान कार्यक्रम का आयोजन किया था। आखिर वह सब किसके लिए रक्तदान करते हैं वह सारा रक्त कहाँ जाता है।
गोरखपुर ज़िला चिकित्सालय के ब्लड बैंक का रिकार्ड देखें तो पिछले दो माह में लगभग 216 यूनिट ब्लड शहर के प्राइवेट निजी अस्पतालों में गया, 68 यूनिट जननी सुरक्षा योजना के तहत महिला अस्पताल में जबकि 317 यूनिट ब्लड अन्य सरकारी अस्पतालों को दिया गया।
बहरहाल बड़ा सवाल यह है कि निजी अस्पतालों में किस आधार पर ब्लड दिया जाता है ? क्योंकि जब एक आम आदमी सरकारी तंत्र की सुविधाओं से वंचित है तो आखिर उसके हिस्से का लाभ कौन ले रहा है।
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