जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार कम हो रहे भूजल स्तर

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Due to climate change, the ground water level is continuously decreasing.

अवधनामा संवाददाता

सामुदायिक रेडियो स्टेशन पर हुई संगोष्ठी
ललितपुर। (Lalitpur)  सामुदायिक रेडियो स्टेशन ललित लोकवाणी में जलवायु परिवर्तन पर संगोष्ठी का आयोजन कृषि वैज्ञानिक प्रो.संजय पांडे, आचार्य नरेन्द्रदेव कृषि विश्व विद्यालय फैजावाद के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता साईं ज्योति संस्था के सचिव अजय श्रीवास्तव ने की। कार्यक्रम में चर्चा का विषय जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार कम हो रहा भूगर्भ जल स्तर रहा। वक्ताओं ने भूमिगत जल की कमी पर चिंता व्यक्त की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.संजय पांडे ने कहा कि दुनिया ने अपनी जरूरतों की पूर्ति हेतु प्रकृति से छेड़छाड़ की तो समय के साथ जलवायु में परिवर्तन आया, प्राकृतिक व्यवस्था में बदलाव होने लगा, एक तरफ तो भू-जल का अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अन्धोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों व पहाड़ों की हरियाली आदि में कमी आन भी भूजल में कमी का एक प्रमुख कारण है। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह से मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति के लिए निरंतर व अनवरत भूगर्भ जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल दर साल भूगर्भ जल का स्तर गिरता ही जा रहा है। उन्होंने तुलना करते हुए बताया कि पिछले एक दशक के भीतर भूगर्भ जल स्तर में आई गिरावट को अगर इस आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक अपने आस पास के क्षेत्रो में जहां 20 फीट की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहां अब पानी के लिए 40 से 50 फीट तक की खुदाई करनी पड़ती है। इससे साफ है कि बीते दस वर्षों में अपने क्षेत्र में भूगर्भ जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी जल स्तर का घटना जारी है। उन्होंने बताया कि देश में भूजल संसाधनों का आकलन अंतिम बार 2011 में किया गया था। जबकि यह आकलन नियमित आधार पर, दो साल में एक बार किया जाना चाहिए। इससे जल संसाधन के संरक्षण, विकास और प्रबंधन की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा और अति दोहन, ह्रास और प्रदूषण जैसी समस्याओं का हल करने में मदद मिलेगी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत भूजल संरक्षण से संबंधित कार्यों के अनुकूल परिणाम हासिल करने हेतु उपाय किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक विशेष निकाय के जरिए जल संसाधन, कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करना सहायक होगा। सभी जलाशयों (तालाबों सहित) की इनवेंटरी बनाई जानी चाहिए जो एक निश्चित समयावधि में पूरी कर ली जाए उनके रख रखाव और बहाली के लिए विशेष कार्यक्रमों को लागू किया जाना चाहिए। सिंचाई और पेयजल के लिए भूजल के अत्यधिक उपयोग पर रोक लगाई जाय सभी ट्यूब वेलों पर पानी के मीटर लगाना अनिवार्य किया जाना चाहिए। इससे किसानों को दी जाने वाली सबसिडी में भी कटौती होगी। साई ज्योति संस्था के सचिव अजय श्रीवास्तव ने कहा कि पानी का स्तर बराबर बने रहने अथवा ऊपर उठने की तो नौबत आ ही नहीं रही है, साल-दर-साल यह गिरता ही जा रहा है। किसानों को फसल की जरूरत के मुताबिक नहरों से पानी नहीं मिलता। ऐसे में बड़े किसान ट्यूबवेल से और छोटे किसान पम्पिंग सेट से पानी दुह रहे हैं। आज अपने गाँवों के सैकड़ों हैण्डपम्पों से पानी निकल ही नहीं रहा है तो कई में पानी निकल ही नही रहा है। उन्होंने कहा नदियां सूखती जा रही हैं और मानव आबादी को बसाने के लिए जंगलों का काटा जा रहा है। इससे, हम सब के सामने जल संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि एक बूंद पानी भी अनावश्यक व्यर्थ न हो, उसका सदुपयोग किया जाए। बड़ी बिल्डिंगों में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दिया जाए। तालाबों की खुदाई तथा पुराने तालाबों को सुदृढ़ीकरण कर उसमें वर्षा के जल को रोकने की व्यवस्था की जाए। उन्होंने कहा कि प्रधान व समुदाय के लोगो को तालाबों में वर्षा जल को रोकने के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाए 7इसके साथ ही, जल संरक्षण बरसात के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने के लिए बारिश से पहले गांवों में छोटे-छोटे डैम और बांध बना कर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने ने कहा कि शहर में जितने भी तालाब और डैम हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और में वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी भूजल संकट का मुकाबला किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुंआ रहेगा तो उसमें बरसात का पानी जायेगा। तब धरती का पानी और बरसात का पानी मेल खाएगा। रेडियो स्टेशन ललित लोकवाणी के स्टेशन प्रबंधक पंकज तिवारी ने कहा कि एक चुनौती यह है कि किसानों की जरूरतों और भूजल के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। इस संबंध में राष्ट्रीय जल नीति, 2012 में यह सुझाव दिया गया है कि भूजल निकासी के लिए बिजली के प्रयोग को विनियमित करके भूजल के अत्यधिक दोहन को कम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कृषि के लिए अलग बिजली के फीडर लगाकर भूजल की पंपिंग से समस्या का समाधान हो सकता है। उन्होंने खरीफ फसलों के लिए मूल्य नीति आयोग (2015-16) ने कृषि में पानी की राशनिंग का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि पानी एवं बिजली के प्रति हेक्टेयर उपयोग की अधिकतम सीमा निर्धारित की जाये। 22इसके अतिरिक्त अगर किसान निर्धारित की गई अधिकतम मात्रा से कम पानी और बिजली उपयोग करते हैं तो उन्हें उनकी घरेलू लागत की दर पर पानी/बिजली की अप्रयुक्त इकाई के बराबर नकद पुरस्कार प्रदान किया जाना चाहिए। इससे किसान पानी की प्रति बूंद पर अधिक फसल पाने के लिए ड्रिप इरिगेशन और दूसरी ऑन फार्म जल प्रबंधन तकनीकों को अपनाने को प्रेरित होंगे। सामुदायिक रेडियो में चल रहे प्रोग्राम शुभकल से जुड़कर कृषि विशेषज्ञ डा.मारूफ अहमद बताते है कि अब हमारे किसान भाइयो को भी सिचाई की पद्धति में परिवर्तन करना होगा, जैसे हमारे रेडियो संवाददाता काशीराम ने शुभकल कार्यक्रम के तहत जलवायु परिवर्तन को देखते हुवे जाखलौन गांव के रहने वाले नवनीत शर्मा जी से बात की तो उन्होने बताया की हम आपके शुभ कार्यक्रम से भी जुड़े रहे है और सुना भी है और फिर हमने पानी की एक बूंद की कीमत समझ अपना रहे है स्प्रिंकलर,टपक पद्धति, सामुदायिक रेडियो में चल रहे प्रोग्राम शुभकल को सुनकर आस पास के जलाशयों में नावार्ड के सहयोग चेक डैम और खेत तालाब बनवाये, जिससे पानी हमे हर साल खेती के लिए मिल रहा है। साथ ही सामुदायिक रेडियो ललितलोकवाणी शुभकल कार्यक्रमो के माध्यम से, किसानो को कृषि के बेहतर आयामों से अवगत करने के लिए काम कर रहा है,कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि भूजल के गिरते स्तर को रोकने के लिए सरकार व समाज को अपने-अपने स्तर पर बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।
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