अवधनामा संवाददाता
जलालपुर (Jalalpur) के मोहल्ला जाफराबाद निवासी दिव्यांग अली अब्बास की जिंदगी बेबसी का दूसरा नाम है कोरोना कर्फ्यू के दौरान नगर जलालपुर की सूनसान राहों पर हाथ व पैर के बल गर्म सड़कों पर घिसटते चलते अली अब्बास पर आम लोगों के अलावा जिम्मेदारों की निगाहें अक्सर पड़ती हैं लेकिन कोई रुक कर उसकी बेबसी व परेशानी सुनने वाला नहीं है ।
दोनों पैर व दोनों हाथ से विकलांग अली अब्बास दूसरों के रहमोकरम पर जिंदगी का पहिया जबरदस्ती खींच रहा है। थके हारे इस बेबस के पास न तो ट्राई साइकिल है और न ही दो सालों से दिव्यांग पेंशन ही मिल रही है। 25 साल के अली अब्बास के सर से मां बाप का साया बहुत पहले उठ गया था इकलौता होने के कारण उसके सर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं । विषम परिस्थितियों में अली अब्बास ने हार नहीं मानी और उसने उम्मीदों के चिराग जलाये रखे। अपनी कोशिश से विकलांग प्रमाणपत्र बनवाया, पेंशन भी मिलने लगी, मगर इधर दो सालों से पेंशन बन्द हो गयी तो उसके पेट पालने का जरिया सिर्फ सरकारी कोटे का राशन ही बचा। अन्य जरूरतों के लिए उसे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। तेज गर्मी से गर्म सड़क हो या ऊबड़ खाबड़ गलियां अपने हाथों व पैरों के सहारे घिसट कर चलने से कई बार अली अब्बास के हाथ पैर रगड़ से जख्मी हो जाते हैं। ऐसी हालात में अली की जिंदगी शासन प्रशासन सहित स्वयं सेवी संस्थाओं के जरिये दिव्यांगों के प्रति सहानुभूति जताने वाले दावे की पोल खोलता नजर आ रहा है। अली ने बताया आज कल चारो तरफ कोरोना महामारी के अलावा दूसरी समस्याओं की तरफ जिम्मेदारों की कोई तवज्जो नहीं है। उसकी पेंशन चालू हो जाये और एक ट्राई साइकिल मिल जाये तो सरकारी अनाज के सहारे जिंदगी का गुजर बसर किसी तरह होता रहेगा।