अरशद अहमद
अलीगढ़ (Aligarh)अवधनामा के सरपरस्त वक़ार रिज़वी के लिए दुआये मग़फ़िरत की गई। अलीगढ़ में ग़मगीन माहौल है, दुआ के वक़्त अरशद अहमद, मोहम्मद यासिर ,मोहम्मद शीराज़,मेट्रो वाले, ख़ालिद मुस्तफ़ा,और कई लोग मौजूद रहे।
ख़ालिद मुस्तफ़ा ने कहा की वक़ार रिज़वी साहब के जाने से जो खला हुई है उसको पूरा नहीं किया जा सकता है, ये उर्दू और हिंदी मीडिया के लिए जो खला पैदा हो गई है उसको को कोई भर नहीं सकता,जब भी एएमयू में आते थे सबके साथ बेतल्लुफी से पेश आते थे, इतने बड़े ऑर्गेनाज़ेशन के बावजूद भी सब के साथ हमदर्दी का रवय्या रखते थे।
वही अरशद अहमद ने कहा की वक़ार साहब हमारे भाई ही नहीं एक बेहतरीन इंसान थे, एक बेहतरीन भाई, एक बेहतरीन रहनुमा, एक बेहतरीन सहफ़ियों बड़ा नाम रखते थे। हम सब को छोड़कर,अल्लाह के पास चले गये। वक़ार भाई की शख़्सियत के बारे में कुछ कहना ऐसा होगा जैसे सूरज को दिया दिखाने के बराबर है।
हमने एक बड़ी शख़्सियत को खो दिया है और मैं बहुत छोटा हूं मेरे पास अल्फ़ाज़ ही नहीं जो उनके बारे में और कुछ लिखूँ। अभी तो उनसे सीखने की शुरआत हुई थी, बहुत कुछ सीखना चाहते थे, लेकिन जब वकार भाई का इंतेक़ाल हुआ तो पहली बार मुझे एहसास हुवा कि भाई के इंतेक़ाल से कितना बड़ा सदमा होता है। हम सबके लिए ज़िन्दगी का एक गोशा ऐसा ख़ाली हुआ कि जिसे कोई पूरा नहीं कर सकता।
पत्रकारिता की फिज़ा में बहुत बड़ा स्थान ख़ाली हो गया है ऐसे स्थान को भरना इतना आसान नहीं है। अब बहुत बड़ा सवाल है कि इनके द्वारा लगाया गया एक पेड़ (अवधनामा) जो बहुत बड़ा हो चुका है वो कैसे अपना आगे का सफ़र तय करेगा। लेकिन ये सफ़र थमेगा नहीं इस पेड़ को न झुकने देंगे न गिरने देंगे.
मेरी पूरी टीम ख़ास कर ख़ालिद मुस्तफ़ा की सरपरस्ती में इसको अपने अख़बार को बुलन्दी पर ले जाने के लिए बहुत मेहनत के साथ और लगन के साथ काम करूंगा। अल्लाह से हमारी दुआ है और मेरी टीम की वक़ार भाई को जन्नत में आला से आला मक़ाम अता करे उनके दरजात बुलंद करे.