- जो अक़्ली लेहाज़ से खुदा को नहीं समझ्ते वही उसके मुक़ाबिल आने की गुस्ताखी करते हैं: मौलाना गुलरेज़
बाराबंकी । (Barabanki) रमजान रहमतों व बरकतों का महीना है। इस माह में हर मोमिन अल्लाह का मेहमान है। जो इस माह में अल्लाह को ज़्यादा से ज़्यादा याद करेगा वो कामयाबी पायेगा। हर शै को मौत का मज़ा चखना है ।जब भी सुबह उठो शुक्रे खुदा करो कि अल्लाह ने हमें अपनी इबादत के लिये एक मौक़ा और अता किया। वोह इन्सान बद नसीब है जो इस माह में भी खुदा से दूर रहा । यह बात मजलिस ए सय्युम बराये ईसाले सवाब मरहूम सै0 अकबर मेहदी ष्जहीरष् इब्ने जफ़र मेहदी को खिताब करते हुये आली जनाब मौलाना सै0 गुलाम मेहदी ष्गुलरेज़ साहब ने मौलाना गुलाम अस्करी हाल में कही । मौलाना ने आगे कहा जो अक़्ली लेहाज़ से खुदा को नहीं समझ्ते वही उसके मुक़ाबिल आने की गुस्ताखी करते हैं ।अक़्ली लेहाज़ से इस्लाम को समझे बगैर खुदा समझ में नहीं आ सकता।जब तक खुदा समझ में नही आता हर अमल बेकार है ।आखिर में कर्बला वालों के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी रोने लगे। मजलिस से पहले अजमल किन्तूरी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा. न खौफ़े मर्ग न जीना मोहाल होता हैएयही तो इश्क़े अली का कमाल होता है। मिला है उल्फते हैदर का ये सिला हमको ए बनामे मौत फक़त इन्तेक़ाल होता है। हाजी सरवर अली कर्बलाई ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा.चाहते हो हर तरफ़ गर अम्न ही आए नज़र ए काम लीजे सब्र से गुस्से को भाई रोकिये । चाहते हैं गर इमाम ए दो जहाँ की कुरबतें ए बुग़्ज़ कीना और हसद जैसी बुराई रोकिये । नजफ़ी ने पढ़ा . आज भी जैनब की आती है सदा भाई हुसैनएतेरा चेहरा आज तक मैं भूल ना पाई हुसैन। लकी व अरबाब ने भी नज़रानए अक़ीदत पेश किया। सेनेटाइज़र व मास्क के साथ साथ सोशल डिस्टेन्सिन्ग का पालन करते हुए तिलावते कलामे इलाही से मजलिस का आगाज़ हुआ । बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।