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बॉम्बे में टॉप करने के बाद इंग्लैंड में कॉर्नेलिया ने नेशनल इंडियन एसोसिएशन में अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए एक याचिका दायर की थी। इसके बाद कई नामी लोगों ने उनकी शिक्षा के लिए फंड दिए। 1892 में उन्होनें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से वकालत पूरी की। उनकी शिक्षा के दौरान कई बार शिक्षक उनके पेपर देखने से मना कर देते थे और बुरे नंबर से उन्हें पास करा जाता था। साथी उन्हें पसंद नहीं करते थे क्योंकि वो एक महिला को अपने साथ वकालत करते हुए बर्दाश नहीं कर पा रहे थे। 1894 में भारत लौटने के बाद उन्होनें महिला अधिकारों के लिए काम करना शुरु कर दिया था। वकालत के दौरान उन्हें कोर्ट में केस लड़ने नहीं दिया जाता था क्योंकि अंग्रेजराज के दौरान महिलाओं को वकील बनने का अधिकार प्राप्त नहीं था।
कॉर्नेलिया ने इंडियन ऑफिस में महिलाओं को कानूनी सलाहकार के तौर पर रखे जाने के लिए याचिका दायर करी और इसके बाद 1904 में बंगाल के वॉर्डस कोर्ट में लेडी असिस्टेंट के तौर पर उन्हें रखा गया। उन्होनें बंगाल, बिहार, ओड़िसा और असम के लिए काम करना शुरु कर दिया। अपने 20 साल के करियर में उन्होनें 600 महिलाओं और बच्चों के लिए काम किया। इसके लिए उन्होनें किसी से भी अपनी सर्विस के लिए फीस नहीं ली। 1924 में उन्हें काम के लिए पहली बार फीस मिली और उसके बाद महिलाओं के लिए वकालत एक प्रोफेशन की तरह सबके सामने आया। कॉर्नेलिया ने कलकत्ता से अपनी वकालत की शुरु की थी। वकालत से हटकर उन्होनें कई किताबें लिखी थी। इसी में उनकी आत्मकथा- बिटवीन द ट्विलाइट्स भी शामिल है।
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