न्यूयॉर्क बैंक स्टेटमेंट मिलाना, खर्च की रिपोर्ट जांचना, टैक्स फॉर्म का निरीक्षण, अकाउंटिंग के सुस्ती भरे लेकिन महत्वपूर्ण काम अमेरिका (America) में तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमल) पर आधारित एप हथियाने लगे हैं।
ज्यादा जटिल काम करवाने हैं तो उसके एप के लिए पैसा खर्च करना होगा लेकिन ज्यादा नहीं। यह ऑटोमेशन का दौर है जिसे रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन यानी आरपीए कहा जा रहा है। इसके आने से सुरक्षित समझी जा रही व्हाइट कॉलर नौकरी खतरे में दिखाई देने लगी है।
चिंता बढ़ गई है, क्योंकि यह नए उपकरण सामान्य काम नहीं कर रहे हैं बल्कि बौद्धिक समझ से जुड़े कामों में भी इनका उपयोग हो रहा है। कंपनियां इन्हें अपना सबसे प्रोडक्टिव कर्मचारी करार देने लगी हैं तो कई उनके काम का दायरा लगातार बढ़ा रही हैं।
2020 में डेलॉयट संस्था के अध्ययन के अनुसार, 10 में से 8 कॉरपोरेट्स आरपीए अपना चुके हैं। बाकी में से 75 प्रतिशत अगले तीन साल में इसे अपना लेंगे। इनमें से 2.57 लाख करोड़ की यूआईपाथ से लेकर ब्लूप्रिज्म और माइक्रोसॉफ्ट तक शामिल हैं।
ऑक्सिस फार्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रॉल वेगा के अनुसार, ऑटोमेशन को राजनीतिक स्वीकार्यता मिल चुकी है। वित्तीय कार्य इसके हवाले हो रहे हैं यह अमेरिकी (American) नौकरियां भारत (India) में बंगलूरू (Bangalore) या हांगकांग (Hong Kong ) में शेनझेन भेजने से ज्यादा खतरनाक है। इस बारे में कोई सोच नहीं रहा क्योंकि पहले ही दसियों लाख लोगों की नौकरियां छूटने का शोर काफी है।
फॉरेस्टर रिसर्च संस्था से जुड़े क्रेग ले क्लेयर के अनुसार आरपीए के जरिए कंपनियां केवल सवा 7 लाख में ऐसे रोबोटिक प्रोग्राम बना सकती हैं जो तीन से चार कर्मचारियों का काम करते हैं। यानी खर्च में 30 से 40 गुना बचत। तर्क है कि इससे काम आसान हुआ है लेकिन जानकारों के अनुसार, काम केवल कर्मचारियों को नौकरी से निकालने का आसान हुआ है। कंपनियां खर्च घटाने व कोविड-19 के बहाने भी ऑटोमेशन को बढ़ावा दे रही हैं।
अमेरिकी ((American) ) इंश्योरेंस कंपनी की तकनीकी प्रबंधन हॉली यूहल के अनुसार, उनकी फर्म ने 1.73 लाख मानव श्रम घंटों का काम ऑटोमेशन से करवाया, किसी को नौकरी से नहीं निकाला। काम को बेहतर करने की मंशा से ऑटोमेशन उपयोग करें तो फायदा होगा। स्टैनफोर्ड सहित कई संस्थानों के अध्ययन बताते हैं कि एआई व एमएल के साथ हो रहे कामों के लिए कर्मचारियों को बेहतर वेतन मिल रहे हैं। इसके लिए विशेषज्ञों की जरूरत होगी, न केवल कॉलेज डिग्री की।