लखनऊ। उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण को लेकर आपत्तियां दर्ज कराने की अवधि सोमवार को पांच बजे पूरी हो जाने के बाद बुधवार (Wednesday) से निस्तारण कार्य शुरू हो जाएगा। जिलों में दर्ज करायी गई आपत्तियों में ग्राम प्रधान पद के आरक्षण से संबंधित अधिक है। जिलों और ब्लाकों में सूचियों का अंतिम प्रकाशन 13-14 मार्च को होगा। 15 मार्च तक आरक्षण प्रक्रिया पूरी होगी। निर्वाचन कार्यक्रम मार्च के अंतिम सप्ताह में जारी होने से साथ ही आदर्श आचार संहिता लागू होने की उम्मीद है।
अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार सिंह ने बताया कि नौ मार्च को जिलों में आपत्तियां एकत्रित करने का कार्य शुरू किया जाएगा। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति आपत्तियों का निस्तारण करेगी। समिति में मुख्य विकास अधिकारी, अपर मुख्य अधिकारी जिला पंचायत और जिला पंचायत राज अधिकारी सदस्य है।
बता दें कि प्रदेश में 75 जिलों में कुल 58,194 ग्राम पंचायतों में प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य 7,31,813 निर्वाचित होंगे। 826 विकास खंडों में क्षेत्र पंचायत व 75 जिला पंचायत अध्यक्षों के अलावा कुल 8,10,719 ग्राम, क्षेत्र व जिलों में वार्ड सदस्य पदों के लिए चुनाव होंगे। प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए अनुसूचित जाति संवर्ग में छह महिला समेत कुल 16 सीटें आरक्षित की गई हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग में सात महिला समेत कुल 20 सीटें आरक्षित की गई हैं, जबकि महिलाओं के लिए 12 सीटों के अलावा 27 अन्य सीटें अनारक्षित की गई हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए सभी वर्गों की मिलाकर महिलाओं के लिए कुल 25 सीटें आरक्षित की गई हैं।
उत्तर प्रदेश ग्राम प्रधान संगठन के पदाधिकारियों ने अपर मुख्य सचिव पंचायतीराज मनोज कुमार सिंह (Manoj Kumar Singh ) से मिलकर ग्राम पंचायतों में बकाया भुगतान न होने से बने हालात पर चिंता जाहिर की। अध्यक्ष कौशल किशोर पांडेय (Kishore Pandey ) के नेतृत्व में सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया कि ग्राम पंचायतों के कार्यकाल का अवसान होने के दो माह बीतने के बाद निर्माण कार्यों का भुगतान नहीं हो सका है। सहायक विकास अधिकारियों को बतौर प्रशासक कार्यभार सौंपा जा चुका है। शासन द्वारा ग्राम पंचायतों को करीब एक करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गयी थी। प्रत्येक सामुदायिक शौचालय के निर्माण को 4.5 से लेकर दस लाख रुपये की धनराशि अनुमन्य की गयी थी। ऐसे में ग्राम प्रधानों द्वारा शौचालयों को निर्माण कराया गया। निर्माण कार्यों की लागत आवंटित धनराशि से अधिक हो गयी, जिस कारण गांवों में भुगतान संकट जैसे हालात है।