अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ला सोयाइटी (विधि संकाय) द्वारा ”लीगल फिलोसफी आफ सर मोहम्मद इक़बाल” विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमें अमेरिका इग्लेण्ड, हंगरी, सऊदी अरब, इण्डोनेशिया, ईरान एवं मारीशस सहित लगभग 15 देशों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
वेबिनार का उद्घाटन करते हुए सहकुलपति प्रोफेसर जहीरूद्दीन ने कहा अल्लामा इक़बाल एक महान कवि, दार्शनिक तथा राजनैतिक भी थे। वह एक उच्च शिक्षित व्यक्ति थे परन्तु उनका विधिक ज्ञान अत्यथिक उच्च था। विश्व को उनके विधिक दर्शन के बारे में जानने की आवश्यक्ता है।
वेबिनार को संबोधित करते हुए प्रोफेसर अब्दुल हक़, प्रोफेसर ऐमेरेटेस, दिल्ली विश्वविद्यालय और अल्लामा इक़बाल विशेषज्ञ ने कहा कि दुनिया के किसी भी देश और कवि को देखा जाए तो अल्लामा इक़बाल जैसा कोई नहीं मिलता। दुनिया में इतना बड़ा दार्शनिक, तीन भाषाओं को जानने वाले शायर और इतना काम करने वाला शायद ही कोई मिलेगा। उन्होंने कहा कि अल्लामा इकबाल के लेखन में कानून का बहुत सी जगह उल्लेख आया है लेकिन दुनिया ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
मुख्य अतिथि, प्रोफेसर हक़ ने कहा कि इक़बाल कि 30 साल की वकालत उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। उन्होंने आगे कहा कि इक़बाल कि शयरी में जगह-जगह इंसाफ, दलील, गवाह, हुकूक आदि का उल्लेख मिलता है। अल्लामा इक़बाल ने 19वीं सदी के शुरू में अनिवार्य शिक्षा की बात कही थी। उन्होंने ला फैकल्टी में इक़बाल चेयर कायम करने की आवश्यक्ता जताई। अमुवि में उनकी याद में बहुत कुछ किया जाना चाहिए।
मुख्य वक्ता, प्रोफेसर सऊद आलम कासमी ने कहा कि अल्लामा इक़बाल सर सैयद व अमुवि से अत्यधिक प्रभावित थे उन्होंने अपने लेखन में सर सैयद के मुस्लिमों को समाज की मुख्य धारा में लाने के अथक परिश्राम की सराहना की है। प्रोफेसर कासमी ने कहा कि इक़बाल का अमुवि से गहरा ताल्लुक रहा है। इक़बाल चाहते थे कि अमुवि में नए कानून के साथ-साथ पुराने कानून को भी पढ़ाए जाए। उन्होंने यह भी बताया कि अल्लामा इक़बाल का सर रास मसूद से भी गहरा सम्बन्ध था।
वेबिनार को संबोधित करते हुए एमबीबीएस की छात्रा, आयशा समदानी ने सर इक़बाल के जीवन के अनछुए पहलुओं के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि अल्लामा इक़बाल के व्यक्तित्व के विकास में उनकी मां का बहुत योगदान था। आयशा समदानी ने विस्तार से उनके विधिक जीवन तथा दूसरे आयामों पर प्रकाश डाला।
अपने अध्यक्षी भाषण में ला सोसाइटी के अध्यक्ष तथा संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर समदानी ने कहा कि अल्लामा इक़बाल को पूरा विश्व जानता है। उनका लिखा हुआ गीत ”सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा” देश ही नहीं पूरे विश्व में गाया जाता है। प्रोफेसर समदानी ने कहा कि आज से लगभग 90 वर्ष पूर्व साल पहले अल्लामा इक़बाल ने मौलिक अधिकार, श्रमिकों के हुकूक, विचारों के अभिव्यक्ति की आज़ादी, देश प्रेम, अनिवार्य शिक्षा आदि विषयों पर दिल खोल कर अपना विचार व्यक्त किया। अल्लामा इक़बाल ने शायरी और दर्शन में जो कारनामा अंजाम दिया है वह किसी दूसरे के बस की बात नहीं। अल्लामा इक़बाल की पूरी शायरी सोशल जस्टिस से भरी पड़ी है। अल्लामा इक़बाल के ऊपर दुनिया की सभी बड़ी भाषाओं में तकरीबन 4500 किताबें लिखी जा चुकि हैं जो अपने आप में एक रिकार्ड है।
स्वागत भाषण प्रोफेसर मोहम्मद अशरफ तथा धन्यवाद प्रस्ताव ला सोसाइटी के सेक्रेट्री अब्दुल्लाह समदानी ने किया। प्रोग्राम का संचालन जवाइंट एडिटर आयशा नासिर अल्वी ने किया। अतिथियों का परिचय निकिता मोटवानी, अफीफ जीलानी तथा महलका अबरार ने किया। रिपोर्ट तैयार करने का कार्य फौज़िया, शैल्जा सिंह, सौम्या अग्रवाल और रज़िया चैहान ने किया। सदफ खान ने तिलावते कुरान पाक की। वेबिनार को कामयाब बनाने में पवन वार्षेय, शुभम कुमार, शोएब अली, हुनैन खालिद आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा।