“भोजपुरी-अवधी संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति” विषयक वेबिनार हुई
लखनऊ। केन्द्रीय संस्कृति विभाग और अयोध्या शोध संस्थान की ओर से सोमवार को “भोजपुरी-अवधी संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति” का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि राम तो सत्कार से लेकर सौगंध तक में रचे बसे हैं। राम ने अहिंसा का संदेश दिया। इसके साथ ही वाचिक शिक्षा की परंपरा को दोबारा शुरू करने पर भी मनन किया गया।
प्रसिद्ध लोक गायिका प्रो.मालिनी अवस्थी ने बताया कि भागवान राम, माली और हथिनी प्रसंग के माध्यम से बहुत ही सहजता से अहिंसा जैसा महा संदेश दिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने वैश्विक राम की छवि, लोकगीत “सीता बैठी झरोखे” के माध्यम से पेश की। उन्होंने सीता के मन की व्यथा को त्रिनिदाद में प्रचलित लोकगीत “अवध में हम न रहिबे” के माध्मय से बखूबी पेश किया। उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि वाचिक शिक्षा की परंपर को दोबारा अस्तित्व में लाया जाए। इससे नौकरी के लिए हुनर तो नहीं मिलेगा पर सुसंस्कृत होने का लक्ष्य जरूरी पूरा होगा। जो आज अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने दशरथ की रानी और नाउन के प्रसंग के माध्यम से सामाजिक समानता का संदेश भी दिया। उसमें महावर लगाने के प्रसंग के माध्यम से अपासी हास्य-परिहास को पेश किया गया।
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की पूर्व निदेशक डॉ.बिद्याबिंन्दु सिंह ने कहा कि राम तो बतकही और लोक व्यवहार में रचे बसे हैं। उन्होंने कहा कि आज भी लोग सौगंध राम की लेते हैं और सत्कार भी राम-राम कर करते हैं। इस क्रम में वाराणसी काशीकथा पत्रिका के संपादक डॉ.अवधेश दीक्षित ने रामलीलाओं की पंरपराओं के बारे में साक्ष्य प्रस्तुति किये। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भारत अध्ययन केन्द्र के डॉ.अमित कुमार पाण्डेय के संचालन और जगमोहन रावत के तकनीकी मार्गदर्शन में लखनऊ विश्वविदि्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित, वाराणसी स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो.विजय शंकर शुक्ल और वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य प्रो.अवधेश प्रधान ने बताया कि भोजपुरी और अवधी संस्कृति में राम रचे बसे हैं। वेबिनार में अतिथियों का स्वागत अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ.योगेन्द्र प्रताप सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग डॉ.प्रभाकर सिंह ने दिया।
Posted By
Brijendra Bahadur Maurya
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