इलाके में न केवल अपराध कम होते हैं, अपितु पुलिस को जनता का सम्मान व सहयोग भी मिलता है।

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राजधानी लखनऊ DGP ने लिखी चिट्ठी, सबसे पहले थाने सुधारें अपनी कार्यशैलीडीजीपी सुलखान सिंह ने थानों की कार्यशैली सुधारने की जरूरत जताई है। राज्य के पुलिस अफसरों और कर्मचारियों को लिखे पत्र में कहा है कि जब तक थानों की कार्यशैली में सुधार नहीं होगा तब तक आदर्श पुलिसिंग को यथार्थ के धरातल पर नहीं उतारा जा सकता।  सबसे पहले थानों पर आम आदमी के साथ व्यवहार में सुधार लाना होगा। थानों की सफाई व रख-रखाव उच्च कोटि का होना चाहिए। परिसर में कूड़ा-करकट, कन्डम सम्पत्ति, शीघ्र समुचित निस्तारण होना चाहिए । किसी भी विभाग में बगैर टीम भावना के सुधार संभव नहीं है। पुलिस विभाग भी इसका अपवाद नहीं हो सकता। पुलिस मुख्यालय से लेकर थाना कार्यालय तक आपसी समन्वय और बेहतर नियोजन से न केवल पुलिस की कार्य संस्कृति को आमूल-चूल परिवर्तन लाएं, अपितु समाज के अन्तिम किनारे पर खड़े व्यक्ति को उसकी गरिमा और सम्मान की गारंटी दें।  डीजीपी के अनुसार विनम्रता और पीड़ितों के प्रति मानवोचित गरिमा प्रदर्शित किए बिना किसी भी प्रकार की सार्थक पुलिसिंग संभव नहीं है। थाने पर आने वाले हर जरूरतमंद के दुख-दर्द व पीड़ा को धैर्य एवं सहानुभूतिपूर्वक सुनना और पीड़ा के निवारण के लिए प्रयास करना हमारा कर्तव्य है और यहीं से पुलिस की विश्वसनीयता की शुरुआत होती है।  अपने विभाग के अफसरों और कर्मचारियों को हिदायत देते हुए डीजीपी ने लिखा है कि शिकायती प्रार्थना-पत्रों  की जांच  व अपराधों की विवेचना में निष्पक्षता हमारा मूलमंत्र होना चाहिए। अपराधों का पंजीकरण न करना समाज में अलोकप्रिय छवि को उजागर कराता है और इससे जनता के प्रति हमारी विश्वसनीयता में गिरावट आती है। अपराध का शत-प्रतिशत पंजीकरण अपराध निवारण का सबसे बड़ा सू़त्र है। थानेदारों से इलाके में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की सलाह देते हुए उन्होंने लिखा है कि यह अनुभाव से मिला विश्वास है कि यदि इलाके का थाना प्रभारी अपनी निष्पक्षता और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है तो उस इलाके में न केवल अपराध कम होते हैं, अपितु पुलिस को जनता का सम्मान व सहयोग भी मिलता है।

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