सिद्धार्थनगर। त्यौहार का नाम आते ही मन में घर, परिवार, खुशियाँ और अपनेपन की छवि उभर आती है। चारों ओर दीपों की रोशनी, मिठास भरी आवाजें और अपने लोगों की मुस्कानें देखने का जो सुख है, वह हर इंसान चाहता है। लेकिन हमारे लिए “वर्दी वाले लोगों” के लिए यह सब कुछ थोड़ा अलग होता है। क्योंकि जहाँ लोग छुट्टी लेकर अपने घर जाते हैं, वहीं हम अपनी ड्यूटी को ही घर और मंदिर मान लेते हैं।
उक्त बातें जेल अधीक्षक सचिन वर्मा ने कही। वह शनिवार को अपनों के साथ जिला कारागार में त्योहार मन रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारे लिए वर्दी केवल कपड़ा नहीं, यह कर्तव्य, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है। त्यौहारों के समय हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि जब पूरा देश उत्सव में मग्न हो, तब भी सुरक्षा, शांति और व्यवस्था बनी रहे और इस जिम्मेदारी को निभाने में जो गर्व मिलता है, वह किसी छुट्टी से कम नहीं।
सचिन वर्मा ने कहा कि हमने अपने कारागार परिवार के साथ त्यौहार मनाया। ड्यूटी पर रहते हुए भी दिल में उत्सव है। साथियों के चेहरे पर मुस्कान थी, सबने मिलकर मिठाई बाँटी, एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दीं और यह एहसास किया कि हम सब एक ही परिवार का हिस्सा हैं “कारागार परिवार”। यहाँ हर प्रहरी, हर अधिकारी और हर कर्मचारी सिर्फ अपने कर्तव्य में नहीं, बल्कि एक-दूसरे के सुख-दुख में भी सहभागी है।
वर्दी हमारी पहचान है, जिम्मेदारी हमारी पूजा है, और यह कारागार परिवार हमारी सबसे बड़ी ताकत। त्यौहार का असली अर्थ यही है कि मिलजुलकर खुशियाँ बाँटना, एक-दूसरे के लिए कुछ करना और अपनी जिम्मेदारी को भी पूरे मन से निभाना।





