एक सर्वे के मुताबिक भारत हर 1000 प्रसव पर 6 मृत बच्चों का जन्म हो रहा है। उस पर भी ये मृत्यु दर शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों की तुलना में ज्यादा देखने को मिली। इसके पीछे महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े कई कारण हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान आयरन और चेकअप की कमी के कारण शिशु की मृत्यु दर बढ़ रही है।
2020 में भारत में हर एक हजार प्रसव में से छह प्रसव में ‘मृत बच्चों के जन्म हुए थे, जिसमें शहरी माताओं में ग्रामीण माताओं की तुलना में अधिक दरें देखी गईं। यह दर उत्तरी राज्यों में विशेष रूप से अधिक है।
हालांकि पूरे देश में इस दर को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह राष्ट्रीय सर्वेक्षणों और नागरिक पंजीकरण प्रणाली के डाटा के विश्लेषण से पता चला है। गोरखपुर के आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज और नई दिल्ली के भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के विज्ञानियों के अध्ययन में यह पाया कि मृत जन्म के हाटस्पाट मुख्य रूप से उत्तरी और केंद्रीय भारत में स्थित हैं।
उत्तरी भारत में मृत्यु दर ज्यादा
चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर, और राजस्थान ने उत्तरी भारत में बच्चों के मृत जन्म की सबसे अधिक दरें दर्ज की हैं, जो द लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों में दर्शाया गया है। गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य, जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या संक्रमण, मृत जन्म के जोखिम को बढ़ा सकता है। गर्भवती महिलाओं को पर्याप्त पोषण न मिलना भी एक कारक हो सकता है।
टीम ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के पांचवें दौर और 2020 की नागरिक पंजीकरण प्रणाली की रिपोर्ट से एकत्रित डाटा का विश्लेषण किया, जिसे गृह मंत्रालय द्वारा प्रबंधित किया जाता है और जो भारत में जन्म, मृत्यु और मृत जन्म जैसे महत्वपूर्ण घटनाओं को रिकार्ड करता है। शोध लेखकों ने लिखा कि 2020 में देशव्यापी मृत बच्चों के जन्म दर (एसबीआर) 1,000 कुल जन्मों में 6.548 थी (महिला : 6.54; पुरुषः 6.63)। शहरी माताओं में मृत जन्म दर ग्रामीण माताओं की तुलना में अधिक थी।
एनीमिया है एक बड़ी वजह
मृत बच्चों के जन्म की उच्च दर उन जिलों में भी पाई गई, जहां गर्भवती महिलाएं एनीमिक ( आयरन की कमी) और कम वजन की थीं। ये ऐसे कारक हैं, जो मृत बच्चों के जन्म सहित प्रतिकूल जन्म परिणामों के जोखिम को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में मृत जन्म का खतरा अधिक होता है। जन्म के समय कई जटिलताएं होती हैं जैसे कि प्रसव के दौरान आक्सीजन की कमी या अन्य समस्याएं।
नवजात शिशुओं में संक्रमण भी मृत जन्म का कारण बन सकता है। स्वच्छ मासिक धर्म प्रथाओं और सिजेरियन ( सी – सेक्शन) प्रसव, जिसमें शल्य प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे का जन्म होता है, का मृत जन्म की कम दर से संबंध पाया गया, विशेष रूप से तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में। लेखकों ने कहा कि एनएफएचएस-5 के डाटा के अनुसार, 2019-2020 में दक्षिण भारत में सी- सेक्शन प्रसव की प्रचलन लगभग 45 प्रतिशत थी।
आयरन की गोली और फोलिक एसिड का सेवन करना जरूरी
असम, मेघालय, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से मिले सुबूतों ने दिखाया कि प्रसव से पहले कम से कम चार चेक अप मिलना और गर्भावस्था के दौरान आयरन और फोलिक एसिड का सेवन करना मृत बच्चों के जन्म के जोखिम को महत्वपूर्ण रूप से कम कर सकता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि कुल मिलाकर उन क्षेत्रों में मृत बच्चों के जन्म की उच्च दरें पाई गईं, जहां गर्भवती महिलाएं एनीमिक थीं, अधिक प्रसव सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में हो रहे थे और महिलाओं का धन स्तर कम था। हालांकि, देश के जिलों में लिंग – विशिष्ट मृत जन्म दरों में कोई असमानता नहीं थी, भले ही उच्च मृत जन्म दर पुरुष भ्रूणों में देखी गई, यह जैविक संवेदनशीलता को भी इंगित कर सकती है।