अरबाईन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद आने वाले चालिसवे दिन मनाया जाता है इस दिन भी ताजिया निकाला कर कर्बला ले जाया जाता है और जहां ताजियो को दफ़नाया कर शहीदो को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है
दुनिया ने इतने ऑसू किसी के गंम मे न बहाय होगे जितना की इमाम हुसैन के गंम में बहाये है और बहाये जा रहे हैं सदियों से ये सिलसिला बदस्तूर जारी है इस्लामी कैलन्डर का पहला महीना मोहर्रम का चांद नजर आने के साथ ही गंमे हुसैन का सिलसिला शुरू हो जाता है जो 68 दिनो तक जारी रहता है
पहले मोहर्रम उसके बाद चेहलूम यानी सफर की बीस तारीख को कर्बला के बहत्तर शहीदो का चेहलूम मनाया जाता है दसवी मोहर्रम के बाद आने वाले चालिसवे दिन चेहल्लुम मनाया जाता है चेहल्लुम को चालीसवां भी कहा जाता है इस दिन भी दस मोहर्रम की तरह ताजियो को अपने अपने क्षेत्रों की कर्बालाओ मे ले जा कर दफनाया जाता है मातमी जुलूस बरामद किये जाते है
गंम हुसैन मे मातमदार नंगी पीट और सर पर जंजीरो मे लगी छुरियो से मातम करके अपने शरीर को लहुलोहान करते हैं तो कही कही दहकते कोयलो पर नंगे पैर चल कर मातम किया जाता है मरसिया व नोहे पढकर मातम किया जाता है इस दिन अधिकतर लोग काले लिबास धारण किये हुए रहते हैं औरते और बच्चे गंम हुसैन मे शामिल रहते हैं ऑसू बहाते है
मातम करते हैं कर्बला मे जो जुल्म हुआ था उस को याद करते है कर्बला के प्यासे शहीदों की याद में सबीले लगायी जाती है जगह जगह नजरों नियाज तकसीम की जाती है कर्बला के मैदान में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों ने इस्लाम ही नहीं बल्कि इंसानियत को अपनी कुर्बानी दे कर बचाया था आज सारी दुनिया में इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाया जाता है