मेले में दुकाने लगाने वाले दुकानदारों का महीनों के भरण पोषण का हो जाता है इंतजाम
महोबा। उत्तर भारत के ऐतिहासिक कजली मेले का एक अपना अलग महत्व है। इस मेले को देखने के लिए 800 साल बाद भी लाखों की भीड़ जुटती है। इतना ही नहीं इस ऐतिहासिक कजली मेले को लेकर बुंदेलखंड के लोगों में आज भी विशेष उत्सुकता बनी हुई है। यही वजह है कि ऐतिहासिक ग्रामीण कजली मेले को भले ही तीन दिन शेष रह गए है, लेकिन मेला परिसर में अभी से चहल पहल बढ़ गई है। कारण, रक्षाबंधक के पूर्व यहां बुंदेली बेटियां इस मेले में अपने अपने घर अवश्य आती हैं और मेला स्थल घूमने जाती है, जिससे वहां चहल पहल दिखाई देने लगी है।
मालूम हो कि मशहूर कजली मेला बुंदेलखंड में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, सतना के अलावा कन्नौज, बैरागढ़ सहित अन्य स्थानों पर अपनी छाप बनाए हुए है। यही वजह है कि तमाम जिलों के लोग कजली मेला देखने के लिए आते हैं। यह मेला आल्हा ऊदल की याद में लगाया जाता है। आल्हा ऊदल के शौर्य वीरता और ताकत का कजली मेले में आल्हा गायन के जरिए वर्णन किया जाता है, जिसे सुनने के लिए भी आज भी लोग आते हैं। कजली मेले में बनाए गए आल्ह मंच में एक सप्ताह तक बुंदेली विधाए राई, नृत्य, ढिमरियाई नृत्य, आल्हा गायन आदि को सुनने और देखने का मौका मिलता है। इस साल यह मेला 15 दिन तक चलेगा।
गौरतलब है कि 843 साल से अनवरत् लगते आ रहे कजली मेले को आज तक राष्ट्रीय मेले का दर्जा नहीं मिला है, जिसके चलते सैकड़ों साल पुराने मेले को वह स्वरुप नहीं मिल पा रहा है, जिस मेले का यह हकदार है। कजली मेला देखने के लिए लोग महीनों से तैयारियां करते हैं। कजली मेले की तिथि घोषित होते ही तमाम लोग अपने परिवार के साथ महोबा आ जाते हैं। रक्षाबंधन त्योहार में महिलाआें के आने की वर्षो पुरानी परम्परा आज भी कायम है। कजली मेले में दूर दराज से आने वाले बड़े बड़े दुकानदारों द्वारा अपनी दुकानें लगाई जाती है, जहां पर अच्छी खासी बिक्री होती है। इतना ही नहीं कजली मेले में दुकाने लगाने वाले दुकानदारों के परिवार का महीनों के भरण पोषण का भी बनदोबस्त हो जाता है।
बसों में पोस्टर चिपका कर किया जाता मेले का प्रचार
ऐतिहासिक ग्रामीण कजली मेले का पालिका प्रशासन द्वारा प्रचार प्रसार भी किया जाता है। इतना ही नही बसों व अन्या वाहनों में पम्पलेट और पोस्टर चिपका दिए जाते है। जिसमे कजली मेंले में होने वाले कार्यक्रमों और मेले की शुरूआत और समाप्ती तक की तिथियां लिखी रहती है। किस दिन किस स्तर के कलाकर का कार्यक्रम होगा, यह भी पम्पलेट में दर्शाया जाता है। लोग पोस्टर और पम्पलेट देखकर कजली मेले की तैयारी में जुट जाते है।