जगदंबिका पाल: राजनीति की विपरीत धारा के कुशल माझी

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जगदंबिका पाल! यूं तो यह मात्र एक सांसद का नाम है, लेकिन इनके राजनीतिक सफर पर गौर करें तो सामने आएगा कि राजनीति की विपरीत धारा को अपनी ओर मोड़ लेने में माहिर राजनीति के खिलाड़ी का नाम है जगदंबिका पाल! इतना ही नहीं लोकसभा के सभी 543 सदस्यों में यदि बतौर जनप्रतिनिधि के रूप में “सांसद”तलाशेंगे तो शायद ही कोई दूसरा जगदंबिका पाल नजर आए।

1950 में बस्ती जिले के एक गांव में पैदा हुए जगदंबिका पाल की शिक्षा एमए एल एल बी है। शिक्षा हेतु ज्यादा तर वक्त लखनऊ में बीता। उस वक्त छात्र राजनीति के रास्ते राजनीति में प्रवेश करने का चलन था। इसी रास्ते जगदंबिका पाल भी राजनीति में कदम बढ़ाए। कांग्रेस इनके राजनीति की पाठशाला रही है। इन्हें स्व.संजय गांधी का बेहद करीबी माना जाता रहा। उस वक्त कांग्रेस में आगे बढ़ना आसान नहीं था,एक से एक टांग खींचने वाले थे। बस्ती तो ऐसे लोगों का गढ़ था। इनके राजनीतिक जीवन में बड़ी मुश्किल यह थी कि इन्हें आगे बढ़ने का आसान रास्ता कभी नहीं मिला। विपरीत परिस्थितियों में ही इन्हें अपनी काबिलियत को साबित करना पड़ा। भाजपा में भी इनकी राह आसान न रही। केवल परिक्रमा वादी राजनीतिज्ञ होते तो अबतक कबका बियाबान में जा चुके होते। बस्ती से लगातार कई बार के एम एल और मंत्री होते रहे जगदंबिका पाल 2004 में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज सीट से सांसद का चुनाव लड़ें। इस चुनाव में करीब पौने दो लाख वोट पाकर वे हार गए लेकिन अगली बार यानी 2009 के लोकसभा चुनाव में अपनी जीत पक्की कर गए। 2004 के चुनाव में सिद्धार्थनगर के कांग्रेस पदाधिकारियों ने भितरघात न किया होता तो यह चुनाव वे जीत गए होते लेकिन हार जाने वाले इस चुनाव से उन्हें बड़ी सीख मिली। उन्होंने पूरे पांच साल तक सिद्धार्थनगर की डुमरियागंज सीट पर ऐसी मेहनत की कि सभी बूथों पर अपनी टीम खड़ी कर दी। इसका परिणाम 2009 में सामने आया और वे कांग्रेस के सांसद हो गए।

2014 के लोकसभा चुनाव आते आते उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया और भाजपा ज्वाइन कर ली। जगदंबिका पाल ने भाजपा उस वक्त ज्वाइन की जब इस संसदीय सीट से भाजपा के एक से एक दावेदार थे। लाख मोदी लहर थी लेकिन यदि उनकी बूथ वार अपनी टीम न होती तो यह राह आसान नहीं था क्योंकि सारे के सारे भाजपाई पाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिए थे। इतना ही नहीं विरोध का आलम यह था कि कई बार के भाजपा विधायक और प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री रहे जय प्रताप सिंह ने अपनी पत्नी को कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़वा दिया था। कहने का मतलब यह है कि राजनीति में मुकाम हासिल करना आसान नहीं है। ऐसा केवल जगदंबिका पाल जैसी राजनीतिक शख्सियत ही कर पाएगा। सबके बस की बात नहीं है। 2024 का लोकसभा चुनाव जगदंबिका पाल के लिए काफी मुश्किल था। सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। स्व.पंडित हरिशंकर तिवारी के बड़े पुत्र भीष्म शंकर तिवारी सपा के टिकट पर मैदान में थे। ब्राह्मण वोटरों के भाजपा से छिटकने का खतरा था। बावजूद इसके जगदंबिका पाल ने इस चुनाव को भी अपने पक्ष में करके एक से एक चुनाव विशेषज्ञों को चौंका दिया। अखिलेश यादव के सर्वे में यह सीट उनके खाते की थी।

राजनीति में चर्चा के केंद्र में बने रहना भी कोई जगदंबिका पाल से सीखें। वक्फ पर बनी जेपीसी का चेयर मैन बनना आसान नहीं था। लेकिन खाटी भाजपाइयों के बीच से यह जिम्मेदारी जगदंबिका पाल को मिली तो यह यूं ही नहीं था। इस जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया और जब यह संसद के दोनों सदनों से पास हुआ तो डुमरियागंज में हुई आतिशबाजी उनकी लोकप्रियता का संदेश दे रहा था। यह मामला यद्यपि कि सुप्रीम कोर्ट में है जहां इस मुद्दे पर चल रही सुनवाई बतौर चेयरमैन जगदंबिका पाल के एक एक तर्क और उदाहरण पर ही केन्द्रित है।

कांग्रेस की राजनीति के शुरुआती दिनों की बात है। जगदंबिका पाल एक दुर्घटना में घायल हो गये थे। संजय गांधी को खबर लगी तो वे लखनउ मेडिकल कालेज में उन्हें देखने आए। संजय गांधी यह देखकर अचंभित हुए थे कि जिस कांग्रेस के सिपाही को वे देखने आए वह घायल अवस्था में भी उनके स्वागत में मेडिकल कालेज परिसर में रक्तदान शिविर का आयोजन किए बैठा है। याद नहीं आता कि पूरे उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा सांसद हो जिसे उसके क्षेत्र में इस छोर से उस छोर तक नाम से कोई जानता हो, चेहरे से पहचानना तो बड़ी बात लेकिन जगदंबिका पाल जरूर ऐसे सांसद हैं जिसे उनके क्षेत्र डुमरियागंज का बच्चा-बच्चा चेहरे से भी और नाम से भी बखूबी पहचानता है। सिद्धार्थनगर से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे दूरस्थ शहरों के लिए रेल गाड़ियों की सुविधा उपलब्ध कराने की वजह से स्थानीय लोग इन्हें “अपना”रेलमंत्री मानते हैं।

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