राठ क्षेत्र में प्रशासन, पुलिस और वन विभाग के संरक्षण में अवैध वृक्ष कटान का सिलसिला तेजी से जारी है। क्षेत्र के कई हिस्सों में कीमती पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, जिससे पर्यावरण संतुलन पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों द्वारा बार-बार शिकायतें करने और समाचार पत्रों में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि क्षेत्र के मुख्य मार्गों के किनारे और गांवों में लकड़ी का अवैध भंडारण धड़ल्ले से चल रहा है। रात-दिन ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के माध्यम से लकड़ियां एकत्रित कर ट्रकों के ज़रिए ऊंचे दामों पर अलीगढ़ समेत अन्य शहरों को भेजी जा रही हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार इस पूरे अवैध तंत्र में लकड़ी माफियाओं, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और वन विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत सामने आ रही है। हैरानी की बात यह है कि विभिन्न राजनैतिक दलों के नेता भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं।
गत वर्ष पूर्व सांसद व भाजपा नेता गंगाचरण राजपूत ने इस अवैध कटान को लेकर सख्त रुख अपनाया था, जिसके चलते कुछ समय के लिए गतिविधियाँ बंद भी हुई थीं, लेकिन इस बार वे अब तक मौन हैं।
जानकारों का मानना है कि बुंदेलखंड जैसे जलवायु-संवेदनशील क्षेत्र में वृक्षों की इस तरह की कटाई से आने वाले समय में गंभीर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो सकता है। नमी की कमी, भूक्षरण, और खेती योग्य भूमि का बंजर होना तय है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे अब माफियाओं की पसंदीदा राह बन चुका है क्योंकि इस मार्ग पर निगरानी नाममात्र की है।
वन विभाग की तरफ से अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि काटी जा रही लकड़ी “जलाऊ लकड़ी” की श्रेणी में आती है, जिसे शासन की अनुमति प्राप्त है। लेकिन कटे हुए सागौन, शीशम और नीम जैसे बहुमूल्य वृक्षों के अवशेष इस दावे की सच्चाई पर सवाल खड़े करते हैं।
राठ की गल्ला मंडी परिषद के पीछे अब भी सागौन के कटे हुए तनों के निशान साफ देखे जा सकते हैं, जो इस पूरे खेल की पोल खोलते हैं।
यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो इसका खामियाजा आने वाली पीढ़ियों और किसानों को भुगतना पड़ेगा।
नेताओं और सामाजिक संगठनों की चुप्पी इस गंभीर मुद्दे पर उनके संवेदनहीन रवैये को दर्शाती है।