Wednesday, March 19, 2025
spot_img
HomeNational'बीमा कंपनियों को दावे की राशि दावेदार के खाते में भेजने का...

‘बीमा कंपनियों को दावे की राशि दावेदार के खाते में भेजने का निर्देश दें’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया ये आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अदालतों और न्यायाधिकरणों से कहा कि वे बीमा कंपनियों को निर्देश दें कि वे अनावश्यक देरी से बचने के लिए दावे की राशि सीधे दावेदारों के बैंक खातों में स्थानांतरित करें। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा मामले में यह निर्देश दिए। पीठ ने मोटर दुर्घटना मामलों की बढ़ती संख्या का भी उल्लेख किया।

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अदालतों और न्यायाधिकरणों से कहा कि वे बीमा कंपनियों को निर्देश दें कि वे अनावश्यक देरी से बचने के लिए दावे की राशि सीधे दावेदारों के बैंक खातों में स्थानांतरित करें। जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा मामले में यह निर्देश दिए।

मुआवजे पर कोई विवाद नहीं

इसमें कहा गया है कि जहां मुआवजे पर कोई विवाद नहीं है, वहां बीमा कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया यह है कि वे इसे न्यायाधिकरण के समक्ष जमा करा देते हैं। उस प्रक्रिया का पालन करने के बजाय न्यायाधिकरण को सूचित करते हुए हमेशा दावेदार के बैंक खाते में राशि हस्तांतरित करने का निर्देश जारी किया जा सकता है।

एक बार जब राशि न्यायाधिकरण के समक्ष जमा हो जाती है, तो दावेदार को वापसी के लिए आवेदन करना पड़ता है। आम तौर पर दावेदारों को अपना पैसा 15-20 दिनों से पहले नहीं मिलता।

मामले पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने न्यायाधिकरणों के समक्ष लंबित दावों की मांग करने वाले मोटर दुर्घटना मामलों की बढ़ती संख्या का भी उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि 2022-23 के अंत तक न्यायाधिकरणों के समक्ष पूरे देश में 10,46,163 दावा मामले लंबित थे। 2019-20 के अंत तक यह संख्या 9,09,166 से बढ़ गई। तीन वर्षों के भीतर 1,36,997 मामलों की वृद्धि हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने 1986 में नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में सजा बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 1986 में एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा एक व्यक्ति को दी गई सजा को बरकरार रखा तथा पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के जीवन के भयावह अध्याय के समापन के लिए चार दशक के लंबे इंतजार पर अफसोस जताया।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने राजस्थान राज्य द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया तथा हाई कोर्ट के जुलाई 2013 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें व्यक्ति को बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से निपटने के हाई कोर्ट के तरीके पर आश्चर्य व्यक्त किया और अपने फैसले में पीड़िता का नाम आने पर नाराजगी जताई।

21 वर्षीय व्यक्ति को दोषी ठहराया और सात साल की जेल की सजा सुनाई

नवंबर 1987 में एक ट्रायल कोर्ट ने तत्कालीन 21 वर्षीय व्यक्ति को दोषी ठहराया और सात साल की जेल की सजा सुनाई। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के पीछे मुख्य तर्क नाबालिग पीड़िता सहित अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान थे।

पीठ ने कहा कि यह सच है कि पीड़िता ने अपने खिलाफ अपराध के बारे में कुछ भी नहीं बताया है। घटना के बारे में पूछे जाने पर ट्रायल कोर्ट के जज ने दर्ज किया कि पीड़िता चुप थी और आगे पूछे जाने पर उसने केवल आंसू बहाए और इससे ज्यादा कुछ नहीं।

यह चुप्पी प्रतिवादी के लाभ के लिए नहीं हो सकती- कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि हमारे विचार में इसे प्रतिवादी के पक्ष में एक कारक के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। पीड़िता के आंसुओं को उनके महत्व के अनुसार समझना होगा। यह चुप्पी प्रतिवादी के लाभ के लिए नहीं हो सकती है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular