ऊर्जा मंत्री के निजीकरण के वक्तव्य से बिजली कर्मियों में भारी आक्रोश,किया विरोध प्रदर्शन

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गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा द्वारा आज विधानसभा में बिजली के निजीकरण के पक्ष में दिए गए वक्तव्य से बिजली कर्मियों में भारी आक्रोश व्याप्त हो गया है। संघर्ष समिति ने कहा है कि विकसित भारत के लिए बिजली का निजीकरण नहीं अपितु सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली उद्योग को रखा जाना प्राथमिक आवश्यकता है, क्योंकि निजी क्षेत्र के लिए बिजली एक व्यापार है और सार्वजनिक क्षेत्र के लिए बिजली एक सेवा है। आगरा में टोरेंट पॉवर कंपनी का प्रयोग इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों जितेन्द्र कुमार गुप्त, राघवेन्द्र साहू, जीवेश नन्दन, प्रभुनाथ प्रसाद, संगमलाल मौर्य, अखिलेश गुप्ता, ब्रजेश त्रिपाठी, राकेश चौरसिया, राजकुमार सागर, संदीप श्रीवास्तव, विजय बहादुर सिंह, दयानंद, सतेंद्र मौर्य, विकास राज श्रीवास्तव, पीयूष राज श्रीवास्तव, ओम गुप्ता, करुणेश त्रिपाठी, विनोद श्रीवास्तव, दिलीप कुमार अमरनाथ कुशवाहा एवं प्रवीण सिंह ने कहा कि ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा में स्वयं स्वीकार किया है कि निजी घरानों के साथ बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीद के करार उप्र में बिजली की दुर्दशा का बहुत बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि बहुत महंगी दरों पर निजी घरानों से बिजली खरीदने के कारण पॉवर कारपोरेशन को लगातार घाटा उठाना पड़ रहा है। इसका उत्तरदायित्व सरकार और प्रबंधन का है, कर्मचारियों का नहीं।
उन्होंने कहा कि निजीकरण के बाद भी 25-25 वर्ष के लिए किए गये लॉन्ग टर्म बिजली खरीद करारों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्वाभाविक है कि निजी कम्पनी महंगे बिजली खरीद करारों की भरपाई के लिए बिजली की दरें बढ़ाएगा। निजी क्षेत्र महंगी दरों पर बिजली खरीद कर सस्ते दाम पर उपभोक्ताओं को कभी नहीं देगा। आगरा इसका उदाहरण है।
संघर्ष समिति गोरखपुर के संयोजक पुष्पेन्द्र सिंह ने कहा कि  आगरा में टोरेंट कंपनी के विषय में ऊर्जा मंत्री का दिया गया बयान अर्ध सत्य है। आगरा में टोरेंट पॉवर कंपनी लाइसेंसी नहीं है। यह अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी है। अतः पॉवर कारपोरेशन फ्रेंचाइजी को बिजली देता है और फ्रेंचाइजी उसी दर पर बिजली बेचती है जो लाइसेंसी(पॉवर कारपोरेशन)की विक्रय दर है। ऊर्जा मंत्री को यह भी बताना चाहिए कि पॉवर कारपोरेशन 05.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर टोरेंट पावर कंपनी को 04.36 रुपए प्रति यूनिट पर बेचती है। इससे अकेले वर्ष 2023-24 में ही पॉवर कारपोरेशन को 275 करोड रुपए का घाटा हुआ है। दूसरी ओर 04.36 रुपए प्रति यूनिट पर पावर कारपोरेशन से बिजली लेकर टोरेंट पावर कंपनी ने आगरा में औसत 07.98 रुपए प्रति यूनिट पर बिजली बेंच कर  वर्ष 2023-24 में 800 करोड रुपए का मुनाफा कमाया है।  यदि निजीकरण न हुआ होता तो यह मुनाफा पावर कारपोरेशन को मिलता। इस तरह निजीकरण के इस प्रयोग से पॉवर कारपोरेशन को कुल 1000 करोड़ रुपए का घाटा मात्र एक साल  हुआ है। इस प्रकार विगत 15 वर्षों में आगरा के निजीकरण से पॉवर कॉरपोरेशन को हजारों करोड़ रुपए का घाटा हो चुका है।
संघर्ष समिति गोरखपुर के संरक्षक इस्माइल खान ने कहा कि ऊर्जा मंत्री के बयान से और स्पष्ट हो गया है कि निजीकरण से बिजली कर्मियों की बड़े पैमाने पर छटनी होने जा रही है । ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा में कहा है कि आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर कंपनी को देने के बाद वहां काम कर रहे कर्मचारियों को अन्य ऊर्जा निगमों में भेज दिया गया था। उल्लेखनीय है कि आगरा में बहुत कम कर्मचारी थे जिनका अन्य ऊर्जा निगमों में समायोजन किया जा सका था। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 26500 नियमित कर्मचारी और लगभग  50 हजार संविदा कर्मी कार्यरत हैं। इतनी बड़ी संख्या में बिजली कर्मचारियों और संविदा कर्मियों को अन्य ऊर्जा निगमों में समायोजित करना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में बहुत बड़े पैमाने पर बिजली कर्मियों की छटनी होगी। उन्होंने कहा कि निजीकरण किए जाने के पहले ही संविदा कर्मियों को निकाला जा रहा है, फिर निजीकरण के बाद तो उनकी नौकरी जाना निश्चित ही है। इस मामले में ऊर्जा मंत्री का वक्तव्य कि कर्मचारियों की कोई छटनी नहीं होगी, पूरी तरह भ्रामक है।
संघर्ष समिति ने कहा कि बिजली की प्रति यूनिट खपत का बिजली के निजीकरण से कोई संबंध नहीं है। बिजली की प्रति यूनिट खपत राज्य की खुशहाली पर निर्भर करती है। संघर्ष समिति ने कहा कि ऊर्जा मंत्री ने प्रति यूनिट बिजली की खपत के मामले में जिन अग्रणी प्रांतों पंजाब (2350 यूनिट प्रति व्यक्ति), महाराष्ट्र(1588 यूनिट प्रति व्यक्ति), उत्तराखंड (1520 यूनिट प्रति व्यक्ति), राजस्थान(1345 यूनिट प्रति व्यक्ति),मध्य प्रदेश (1232 यूनिट प्रति व्यक्ति) का उल्लेख किया है उन सभी प्रान्तों में बिजली सार्वजनिक क्षेत्र में ही है। अतः इस आधार पर उप्र में बिजली के निजीकरण का तर्क पूरी तरह गलत है।
जहां तक 24 घंटे बिजली देने का प्रश्न है, महामहिम राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में स्वयं कहा है कि प्रदेश में ।बिजली की व्यवस्था में लगातार सुधार हो रहा है। जनपदों में 24 घंटे, तहसील स्तर पर 22 घंटे 35 मिनट और गांव में 20 घंटे 34 मिनट निर्बाध बिजली की आपूर्ति की जा रही है । अतः ऊर्जा मंत्री का यह वक्तव्य कि 24 घंटे बिजली देने के लिए निजीकरण किया जा रहा है पूरी तरह गलत है। संघर्ष समिति ने कहा कि विकसित भारत के लिए निजीकरण नहीं अपितु सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली आवश्यक है। विकसित भारत की दिशा में महती भूमिका निभाने वाले गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा जैसे सम्पन्न प्रांतों में भी बिजली सार्वजनिक क्षेत्र में ही है।
संघर्ष समिति के आह्वान पर आज लगातार 84 वें दिन प्रदेश के सभी जनपदों और परियोजना मुख्यालय पर बिजली कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन जारी रखा। संघर्ष समिति ने कहा है कि किसी भी स्थिति में निजीकरण स्वीकार्य नहीं है और निजीकरण के विरोध में तब तक आन्दोलन जारी रहेगा जब तक निजीकरण करने का निर्णय वापस नहीं लिया जाता।
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