ललितपुर। कौमी एकता की प्रतीक साहित्यिक संस्था हिंदी उर्दू अदबी के तत्वाधान में चंद्रमलेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में बसंत उत्सव संस्था का वार्षिक उत्सव एवं संस्था के अध्यक्ष रामकृष्ण कुशवाहा एड. के 66 वे जन्मदिन पर बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया गया। यह कार्यक्रम हर भरे लहलहाते खेतों में प्रकृति की सौंदर्य के बीच कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का आयोजन किया गया, जिसमें शायरों ने बसंत ऋतु से ओत प्रोत रचनाएं सुनाकर सभी को मंत्र मुक्त किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि काका ललितपुरी ने की एवं मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा.खेमचंद वर्मा रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए रामकृष्ण कुशवाहा एड. ने बसंत ऋतु के स्वागत में कहा कि तितलियां नाच रही फूलों पर प्रकृति दे रही बधाई है धरती बनी है आज दुल्हन जैसे गगन से हो रही सगाई। वरिष्ठ कवित्री सुमनलता शर्मा चांदनी ने बसंत माहौल का सुहावना करते हुए कहा कि फूले खेत सरसों पीले अमुआ पे मोर है आये। रामस्वरूप नामदेव अनुरागी ने खूबसूरत गीत पढ़ते हुए कहा खेतों में लहराती डालियां मटर गेहूं की लहराती बालियां। प्रशांत श्रीवास्तव ने भक्ति गीत पढ़ते हुए कहा तेरी डमरू मस्ती तुम हो अगर धनी पतियों के पति जगत पति तेरी तू जाने। अशोक क्रांतिकारी ने वकील साहब के जन्मदिन पर सम्मान में शेर पढते हुये कहा कि बुंदेलखंड साहित्य की गंगा जमुना सरस्वती बहाने वाले किशन जी हमारे लिए हम सबके लिए अभी भूत बच्चन हो तुम। सरवर हिंदुस्तानी ने अपनी व्यंग्य भरी शैली में शेर पढते हुये कहा जो उपस्थित जन समुदाय ने खूब सराहा, आपने कहा कि अब शीश महल रश्मि का लीड पर सोने वालों अंधेरी कोठरी में एक दिन तुम्हारा भी सोना होगा। डा.खेमचंद वर्मा ने अपने एहसासों को इस तरह बयां किया, क्या हम सार्थक विचारों को मन में कर पाएंगे या हाल में बैठकर सिर्फ और सिर्फ तालियां बजाएंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे काका ललितपुरी ने हास्य रचना पेश करते हुए कहा पता नहीं जवानी तेरी कहां खो गई बसंत बहार शायद बही सो गई। कार्यक्रम में उपस्थित श्रोताओं में रामप्रकाश शर्मा, मनीराम कुशवाहा, राज कुशवाहा, मनीष कुशवाहा एड., राजाराम खटीक एड., जितेंद्र कुशवाहा, बृजेश श्रीवास्तव, रवि माही, अर्चना गौतम, अंशु, आयुष, मीना, रजनी, दीपिका, रोहित, संजय आदि उपस्थित रहे। अंत में रामकृष्ण कुशवाहा एड. ने उपस्थित सभी अतिथियों का आभार जताया।
जवानी तेरी कहां खो गई बसंत की बहार वही सो गई…
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