अंतर्राष्ट्रीय अरबी भाषा दिवस: नेपाल में अरबी भाषा – आध्यात्मिक संबंध से राष्ट्रीय पहचान तक

0
12
हर साल 18 दिसंबर को पूरी दुनिया में अरबी भाषा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। यह दिन दुनिया की सबसे पुरानी और समृद्ध भाषाओं में से एक, अरबी भाषा की महत्ता को उजागर करने के लिए समर्पित है। 1973 में संयुक्त राष्ट्र ने अरबी को अपनी आधिकारिक भाषाओं में शामिल किया, जिससे इसे वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली। यह दिन केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि इस भाषा को सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर के रूप में उभारने का अवसर भी है।
*वैश्विक स्तर पर अरबी भाषा का महत्व*  
अरबी भाषा न केवल अरब देशों के लोगों के बीच संवाद का साधन है, बल्कि यह मानवता को प्राचीन ज्ञान और संस्कृतियों से जोड़ने का माध्यम भी है। यह कुरान की भाषा है, जो दुनिया भर के डेढ़ अरब से अधिक मुसलमानों के दिलों में बसती है, और इसे विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्रदान करती है।
*नेपाल में अरबी भाषा: आध्यात्मिकता, पहचान और जन आंदोलन का परिणाम*  
नेपाल, एक गैर-अरब देश होते हुए भी, अरबी भाषा और मुसलमानों के बीच गहरे संबंध का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। नेपाल के मुसलमान अरबी भाषा को धर्म और उपासना की भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। यह भाषा उनकी धार्मिक गतिविधियों जैसे नमाज़, कुरान पाठ, शरीयत शिक्षा और दुआओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
नेपाल में अरबी भाषा को जो सम्मान मिला है, उसमें राष्ट्रीय मदरसा संघ नेपाल का बड़ा योगदान है। इस संगठन के अध्यक्ष डॉ. अब्दुल गनी अल-कूफी और महासचिव मौलाना मशहूद खान नेपाली ने जनगणना के दौरान एक व्यापक आंदोलन चलाया। इस आंदोलन का उद्देश्य अरबी भाषा को नेपाल के मुसलमानों की जीवंत परंपरा के रूप में मान्यता दिलाना और इसे आधिकारिक रूप से दर्ज कराना था। उनकी इस पहल से अरबी भाषा को नेपाल की भाषाओं में शामिल किया गया, भले ही अरबी बोलने वालों की संख्या सीमित थी।
लेकिन हालिया जनगणना में अरबी को विदेशी भाषा मानते हुए इसे सूची से हटा दिया गया, जबकि संस्कृत को स्थान दिया गया है। फिर भी, अरबी को उसका सही स्थान दिलाने के लिए यह आंदोलन जारी रहेगा।
*शिक्षा व्यवस्था और अरबी भाषा का प्रचार-प्रसार*  
नेपाल में अरबी भाषा के प्रचार में इस्लामी मदरसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये मदरसे अरबी व्याकरण, साहित्य और वाक्पटुता के साथ-साथ इस्लामी शिक्षा को भी मूल अरबी स्रोतों से पढ़ाते हैं।
जामिया सिराजुल उलूम अस-सलफिया, झंडानगर नेपाल के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में से एक है, जो अरबी भाषा और इस्लामी ज्ञान की सेवा कर रहा है। 109 साल पहले स्थापित यह संस्था मुसलमानों की शिक्षा और प्रशिक्षण का एक प्रमुख केंद्र रही है। यहां से पढ़े कई विद्वानों ने अरबी और उर्दू में अनुवाद, शोध और लेखन के माध्यम से अमूल्य योगदान दिया है।
*अरबी और स्थानीय भाषाओं के बीच सेतु का कार्य* 
नेपाल के मुसलमान अरबी भाषा की सेवा में अनुवाद कार्य के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। कई इस्लामी ग्रंथों का अरबी से नेपाली में और नेपाली से अरबी में अनुवाद किया गया है। यह प्रयास अरबी भाषा के प्रचार-प्रसार और इस्लामी संस्कृति को नेपाली समाज में प्रस्तुत करने में मददगार है।
*नेपाल में अरबी भाषा: एक जीवंत परंपरा* 
 
नेपाल में अरबी भाषा की उपस्थिति सीमित होने के बावजूद, यह मस्जिदों, मदरसों और धार्मिक आयोजनों में प्रमुखता से देखी जाती है। मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा होने के कारण, अरबी भाषा नेपाली समाज में एक विशेष स्थान रखती है। अरब देशों के दूतावासों के खुलने के बाद, नेपाल में अरबी भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास की संभावनाओं को बल मिलेगा।
*अरबी भाषा के लिए संकल्प*  
अंतर्राष्ट्रीय अरबी भाषा दिवस के अवसर पर, नेपाल के मुसलमान पूरी मुस्लिम उम्मत को बधाई देते हैं और इस भाषा की सेवा और विकास के लिए अपने संकल्प को दोहराते हैं। यह कुरान की भाषा है और इसके संरक्षण और प्रचार के लिए सभी मुसलमानों के सहयोग की आवश्यकता है।
*विकास और प्रयासों का आह्वान*  
अरबी भाषा का यह दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक अवसर है कि हम इस भाषा को सामने आने वाली चुनौतियों पर विचार करें और इसके विकास के लिए कदम उठाएं।
नेपाल में, शैक्षणिक संस्थान, राष्ट्रीय मदरसा संघ और अन्य संगठन यह सुनिश्चित करते हैं कि वे नई पीढ़ी के बीच अरबी भाषा के प्रचार और इसके बौद्धिक व व्यावहारिक उपयोग को बढ़ावा दें।
यह दिवस हमें याद दिलाता है कि अरबी भाषा मानवता की एक महान सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर है। नेपाल और दुनिया के हर हिस्से में यह मुसलमानों के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन का केंद्र है, और इसकी उन्नति और प्रचार हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here