संत गाडगे ने जन-जन तक अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा के द्वार खोले
ललितपुर। राष्ट्र संत गाडगे बाबा के परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि स्वयं अशिक्षित होते हुए बाबा गाडगे ने जन-जन तक अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा के द्वार खोले। आजादी संग्राम के महानायक गाँधीजी का संघर्ष सिर्फ राजनीतिक आजादी तक ही सीमित नहीं था, बल्कि अन्यायमुक्त धरती पर मनुष्योचित जीवन जल्द से जल्द लाने के लिए था। गांधीजी के इस महायज्ञ में, अपनी आहुति में स्वच्छता और शिक्षा के प्रसार करने में संत गाडगेजी का योगदान याद करने लायक है। जनसंघर्ष के विजयी अंत के लिए वे जनता को प्रबुद्ध बनाने हेतु अचूक ब्रह्मास्त्र मानते थे। इसीलिए निर्धनों के लिए भी उन्होंने उच्च शिक्षा तक पहुंचने के द्वार खोले। वह साफ-साफ कहते थे कहते थे कि पैसा नहीं है तो खाने की थाली तोड़ दो। हाथ पर रोटी चटनी रखकर खाओ। कम कीमत का कपड़ा पहनो। पढऩे जरूर जाओ। वे मानते थे जात पांत दिखाई देने वाली कोई भौतिक वस्तु नहीं है, जिसे हटाया या बदला न जा सके। यह मात्र अवैज्ञानिक निहित स्वार्थपूर्ण धारणा है। एक ऐसा अंधेरा है जो उजाले की अनुपस्थिति में काल्पनिक होते हुए भी, अंधविश्वास की वजह से अभी तक कायम है। जिसकी वजह से वे कहते थे, जात-पांत के खोल को तोड़ो और मनुष्य की आत्मा में बैठे परमात्मा के दर्शन करो। एक-एक मनुष्य की डबडबाई आँखों के आँसू पोंछने में लग जाओ। अपने इसी विचार दर्शन का अमृत वे अपने माटी की गागर में करुणा के सागर के रूप में आजीवन छलकाते रहे और मानव एकता और भाईचारे की संजीवनी पिलाते रहे। वे सच्चे निष्काम कर्म योगी थे। उनके भजन और कीर्तन महाराष्ट्र की जनता के कंठहार हैं।
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