बुंदेलखंड में केमिकल खाद के इस्तेमाल से खेती की सेहत बिगड़ रही है। खेतीबाड़ी में हर साल सैकड़ों एमटी खाद की खपत से अब भूगर्भ जलस्तर पर बड़ा असर पड़ रहा है जिससे आने वाले समय में बुंदेलखंड पंजाब जैसे हालात के मुहाने आ सकता है। लगातार खेतों की उर्वरा शक्ति खराब होने से अब डिपार्टमेंट के बड़े अफसरों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गई हैं। भूगर्भ जल आयोग के एक अफसर का कहना है कि केमिकल खाद के इस्तेमाल पर लगाम नहीं लगाई गई तो यहां खेती बंजर हो जाएगी।
बुंदेलखंड के चित्रकूट धाम बांदा मंडल के हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट समेत आसपास के तमाम इलाकों में लाखों किसान खेतीबाड़ी करते हैं। लाखों हेक्टेयर क्षेत्रफल में हर साल खरीफ और रबी की फसलों में किसान घातक केमिकल खाद (उर्वरक) का इस्तेमाल करते है। पिछले कई दशकों से खेतों में धुआंधार खाद खेतों में डाले जाने से अब खेत की मिट्टी की सेहत ही बिगडऩे लगी है। हालत यह है कि बुंदेलखंड के तमाम इलाकों में बड़ा क्षेत्रफल बंजर हो गया है। खेतीबाड़ी में मोटा मुनाफा लेने के चक्कर में यहां के किसान खेतों के लिए खुद ही दुश्मन बन गए हैं।
खरीफ और रबी की फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए खाद की दुकानों में किसानों की भारी भीड़ उर्वरक लेने के लिए उमड़ती है। सरकारी खाद की दुकानों से ही हजारों एमटी खाद किसान उठाते है वहीं प्राइवेट दुकानों से भी यूरिया, नाइट्रोजन व अन्य खाद खरीदकर किसान खेतों में इसका इस्तेमाल करते हैं। लगातार केमिकल खाद खेतों में डाले जाने से अब इसके परिणाम भी भयावह दिखने लगे है। सहकारिता विभाग के सहायक रजिस्ट्रार सुरेन्द्र द्विवेदी ने बताया कि इस साल ढाई हजार एमटी यूरिया व दो हजार एमटी डीएपी खाद की खपत फसलों में हो चुकी है जबकि पिछले साल अठारह सौ एमटी यूरिया व डेढ़ हजार एमटी डीएपी खाद की खपत हुई थी। अभी तीन हजार एमटी यूरिया व बत्तीस सौ एमटी डीएपी खाद की डिमांड शासन से की गई है।
पचास फीसदी रसायनिक उर्वरकों की खपत होने से अब भूगर्भ जल भी होने लगा प्रदूषित
केमिकल खाद की मात्रा फसलों पर लगातार बढऩे से अब भूगर्भ जल भी प्रदूषित होने लगा है। जिसे लेकर डिपार्टमेंट के बड़े अफसरों में चिंताएं बढ़ गई है। भूगर्भ जल डिपार्टमेंट के अधिशाषी अभियंता एसके राय ने बताया कि बुंदेलखंड में जैविक खेती के साथ प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भारी बजट दे रही है लेकिन यहां के किसान मोटा मुनाफा के चक्कर में केमिकल खाद अभी भी खेतों में डाल रहे है। जिससे उर्वरक मिट्टी में मिलने के बाद जमीन के नीचे जाकर अब बुरा असर छोड़ रहा है। जिससे भूगर्भ जल के लाभदायक मिनरल नष्ट हो रहे है। यहीं पानी शरीर में तमाम बीमारियां पैदा कर रही है। यह जांच में भी सामने आ चुका है।
पंजाब जैसे हालात बनने के मुहाने अब आया बुंदेलखंड, भूगर्भ जल डिपार्टमेंट भी चिंतित
भूगर्भ जल डिपार्टमेंट के अधिशाषी अभियंता ने बताया कि पंजाब में किसान केमिकल खाद डालकर फसलों की पैदावार करते थे जिससे वहां की खेती अनुपजाऊ हो गई है। अब लोग पंजाब का चावल छोड़ यूपी के चावल की डिमांड कर रहे है। बताया कि यदि रसायनिक खाद के धुआंधार इस्तेमाल पर विराम नहीं लगा तो आने वाले समय में बुंदेलखंड भी पंजाब जैसे हालात के मुहाने आ जाएगा। उपनिदेशक कृषि हरीशंकर भार्गव ने बताया कि किसानों को खेती की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए रसायनिक खाद के बजाय गोबर की खाद फसलों में डालनी चाहिए। बताया कि केमिकल खाद से पहले जैविक खेती से ही खेत की मिट्टी की सेहत सुधरेगी।