हमारे भविष्य की दिशा हमारे वर्तमान के निर्णयों पर: गेशे थुब्तेन शेरब

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अतीत के परिप्रेक्ष्य में भविष्य का निर्माण (पारम्परिक शिक्षा का समकालीन अनुप्रयोग) विषयक संगोष्ठी

कोपान मोनेस्टी काठमाण्डू, नेपाल के प्राचार्य गेशे थुब्तेन शेरब ने कहा कि हमारे भविष्य की दिशा हमारे वर्तमान के निर्णयों पर निर्भर करती है। अतीत में हमारे पास जो था, वह हमारे वर्तमान को आकार देता है, हमारे वर्तमान के निर्णय हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। इसलिए, अतीत को समझना और उससे सीखना महत्वपूर्ण है, ताकि हम अपने वर्तमान को बेहतर बना सकें। प्राचार्य गेशे थुब्तेन शेरब बुधवार को सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनि भवन सभागार में तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग की ओर से आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय परिचर्चा को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे।

“अतीत के परिपेक्ष्य में भविष्य का निर्माण” (पारंपरिक शिक्षा का समकालीन अनुप्रयोग) विषय के महत्व को रेखांकित करते हुए प्राचार्य गेशे थुब्तेन शेरब ने कहा कि हम देखेंगे कि कैसे पारंपरिक शिक्षा के सिद्धांत और मूल्य हमें आज की दुनिया में भी मार्गदर्शन दे सकते हैं और हमें बेहतर भविष्य के निर्माण में मदद कर सकते हैं।

गोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता संस्थापक, एलिस प्रोजेक्ट वेलेनस्टिनो जियाकोमिन ने कहा कि पारंपरिक शिक्षा के मूल्यों और सिद्धांतों को समकालीन समय में उपयोग किया जा सकता है। हम पारंपरिक शिक्षा के माध्यम से सीखे गए मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में लागू कर सकते हैं और बेहतर भविष्य के निर्माण में मदद कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, पारंपरिक शिक्षा में हमें सिखाया जाता है कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना है और पर्यावरण की रक्षा करनी है। हम इस मूल्य को समकालीन समय में लागू कर सकते हैं और पर्यावरण संरक्षण में मदद कर सकते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा और प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था के माध्यम से हम वास्तविक शिक्षा की गुणवत्ता को समझ सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

गोष्ठी की अध्यक्षता वेदांत शास्त्र के प्रोफेसर रामकिशोर त्रिपाठी ने की। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि हमें पारंपरिक शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए और इसके मूल्यों को अपने दैनिक जीवन में लागू करना चाहिए।

संगोष्ठी के संयोजक एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभागाध्यक्ष प्रो रजनीश कुमार शुक्ल ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत कर कहा कि ज्ञान परंपरा में शिक्षा को साधना के रूप में देखा जाता है, जहां गुरु और शिष्य के बीच एक गहरा संबंध होता है। हमे अपने जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। संचालन डॉ विशाखा शुक्ला,धन्यवाद ज्ञापन प्रो हरिप्रसाद अधिकारी ने किया। गोष्ठी में डॉ लूसी गेस्ट, डॉ माधवी तिवारी,डॉ विशाखा शुक्ला, वेलेनस्टिनो जियाकोमिन को अंग वस्त्र, माला एवं स्मृति चिन्ह देकर अभिनंदन किया गया।

गोष्ठी में प्रो. रामपूजन पाण्डेय, प्रो. जितेन्द्र कुमार, प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी, प्रो. सुधाकर मिश्र, प्रो. हीरक कांत, प्रो. महेंद्र पाण्डेय,प्रो. विधु द्विवेदी, प्रो. अमित कुमार शुक्ल आदि की मौजूदगी रही।

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