महान वीरांगना एवं स्वतंत्रता सेनानी रानी अवंतीबाई लोधी की आज (शुक्रवार) को जयंती है। इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सोशल मीडिया के माध्यम से कहा कि ” भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली वीरांगना रानी अवंतीबाई लोधी जी की जयंती पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। आपकी वीरता और बलिदान की अमर गाथा युगों-युगों तक प्रत्येक भारतवासी, विशेष रूप से बालिकाओं को स्वाधीनता, आत्मबल और धर्म की रक्षा के लिए प्रेरणा देगी।”
उल्लेखनीय है कि रानी अवंती बाई लोधी भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम सन् 1857 में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना थीं। वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी का जन्म 16 अगस्त 1831 को ग्राम मनकेहणी जिला सिवनी मध्य प्रदेश में हुआ था। इनकी माता का नाम कृष्णा बाई व पिता का नाम राव जुझार सिंह था । इनके पिता जमींदार थे। बाल्यावस्था से ही वीर तथा साहसी अवंती बाई ने बचपन से ही तलवारबाजी और घुड़सवारी सीख लिया था। अवंती बाई का विवाह रामगढ़ रियासत के राजा लक्ष्मण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह के साथ हुआ। पिता के निधन के बाद विक्रमादित्य सिंह राजा बने। राजा विक्रमादित्य सिंह के अस्वस्थता के फलस्वरुप राज्य संचालन का उत्तरदायित्व राजकार्य में पारंगत उनकी पत्नी रानी अवंती बाई लोधी ने संभालाए इनके दो पुत्र हुए अमान सिंह और शेर सिंह।
गवर्नर जनरल डलहौजी के हड़प नीति के तहत विक्रमादित्य सिंह को अयोग्य और इनके दोनों पुत्रों को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ रियासत से कोर्ट आफ वार्ड्स के कब्जे में लेकर ब्रिटिश अधिकारी नियुक्त किए गए। रानी अवंती बाई लोधी ने इन अधिकारियों को रामगढ़ से बाहर निकाल दिए और शासन का संचालन स्वयं किए। रानी ने कृषकों को अंग्रेजों के कर संबंधी निर्देशों को ना मानने का आदेश दिया। इस सुधार कार्य से क्षेत्र में रानी की लोकप्रियता बढ़ी। मई 1857 में प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम प्रारंभ होने पर रानी अवंती बाई लोधी ने ब्रिटिश शासन के विरूद्ध संगठित होकर मातृभूमि को ब्रिटिश शासन को मुक्त करनेए क्रांति का संदेश देने तथा स्वाभिमान जागृत करने राजाओ जमींदारों और माल गुजारो को पत्र इस प्रकार लिखे मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहे या चूड़ियाँ पहनकर घरों में बैठे रहे, इसके बाद रानी ने मई 1857 में राजाओंए जमींदारों व माल गुजारों का क्षेत्रीय सम्मेलन रामगढ़ में आयोजित किया। रानी ने अपनी सेना के साथ गुजरी, रामनगर, बिछिया क्षेत्रों से ब्रिटिश नियंत्रण समाप्त किया। 23 नवंबर 1857 को खैरी के प्रसिद्ध युद्ध में रानी अवंती बाई लोधी व इनके फौज ने मंडला के डिप्टी कमिश्नर वडिंगटन के फौज को हराकर अद्भुत नेतृत्व कौशल और वीरता का परिचय दिया।
अंग्रेजों की कई गुना अधिक समृद्ध सैन्य ताकत के बावजूद रानी ने आत्मसमर्पण नहीं किया व संघर्ष करते हुए 20 मार्च 1858 को देवहारीगढ़ के युद्ध भूमि में स्वाभिमान, साहस, वीरता, स्वतंत्रता तथा मातृभूमिप्रेम का संदेश देते हुए अपने प्राणों की आहुति देकर रानी अवंती बाई लोधी इतिहास में अमर हो गई। रानी अवंती बाई लोधी ने मृत्यु के पूर्व एक पत्र ब्रिटिश शासन के लिए इस प्रकार लिखे थे । “ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मैंने ही इस विद्रोह के लिए उकसाया था ये सभी प्रजा बिल्कुल निर्दोष है” ऐसा पत्र लिखकर रानी अवंती बाई लोधी ने हजारों लोगों को फांसी और अंग्रेजों के अमानवीय व्यवहार से बचा लिया। रानी अवंती बाई लोधी जी का साहस, वीरता, प्रजावत्सल शासन, स्वाभिमान, नेतृत्व क्षमता तथा मातृभूमि प्रेम सदैव अनुकरणीय है। भारत सरकार के द्वारा रानी अवंती बाई लोधी के सम्मान में दो बार (वर्ष 1986 व वर्ष 2001 में) डाक टिकट जारी किए है।