Wednesday, September 17, 2025
spot_img
HomeNationalक्रांतिकारी गिरीश लाल, अंग्रेजी ध्वज की जगह तिरंगा लहरा कर दी कुर्बानी

क्रांतिकारी गिरीश लाल, अंग्रेजी ध्वज की जगह तिरंगा लहरा कर दी कुर्बानी

जश्न आज़ादी का मुबारक हो देश वालों को, फंदे से मोहब्बत थी हम वतन के मतवालों को।

कवि की ये पंक्तियां मां भारती की आजादी के लिए सिर पर कफन बांध कर निकले उन लाखों क्रांतिकारियों के उद्गार हैं जिन्होंने वतन की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपना जीवन सुमन समर्पित कर दिया। अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में जकड़ी मां भारती को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर क्रांतिकारियों के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है। आजादी के उत्सव की तैयारियां पूरे देश में जोर-शोर से चल रही हैं और ऐसे में हम उन गुमनाम नायकों की कहानियां पाठकों के समक्ष लाने का प्रयास कर रहे हैं। आज हम बात करेंगे बंगाल के वीर सपूत गिरीश लाल महतो की, जिनका नाम शायद ही आपने कभी सुना होगा। अगस्त क्रांति के इस नायक ने अपने साहस और रणनीति से अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

गिरीश लाल महतो का जन्म पुरुलिया में हुआ था, जो अंग्रेजी शासन के दौरान बिहार प्रांत के मानभूम जिले के अंतर्गत आता था। आजादी के बाद नवंबर 1956 में इसे जिला बनाकर पश्चिम बंगाल में शामिल कर दिया गया। बिहार से अलग हुए झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित पुरुलिया, अंग्रेजी हुकूमत के समय क्रांतिकारियों का गढ़ था। यहां के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देशभक्ति की मिसाल कायम की थी।

गिरीश लाल महतो भी उन्हीं महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। 1942 की अगस्त क्रांति में, जहां कांग्रेस का नरम दल अहिंसक आंदोलन में जुटा था, वहीं गरम दल के क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। उस समय मानभूम में कांग्रेस के बड़े नेता विभूति भूषण दासगुप्ता थे, जो जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे। अंग्रेजी पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही थी, लेकिन विभूति भूषण लगातार अंग्रेजों को चकमा देते रहे। इससे नाराज होकर अंग्रेजी हुकूमत ने 16 अगस्त 1942 को मानभूम सदर अनुमंडल के सभी 11 कांग्रेस कार्यालयों पर कब्जा कर लिया था।

——

अंग्रेजों को सबक सिखाने का उठाया था जिम्मा

विभूति भूषण ने गिरीश लाल महतो को अंग्रेजों को सबक सिखाने की जिम्मेदारी सौंपी। अंग्रेजों ने विभूति भूषण के अलावा कांग्रेस के तीन और कार्यकर्ताओं – अशोक नाथ चौधरी, समरेंद्र मोहन रॉय और सुशील चंद्र दास गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया था। इनकी रिहाई के लिए क्रांतिकारियों ने योजना बनाई और “मुक्ति” नामक बांग्ला साप्ताहिक पत्र के संपादक वीर रंगाचार्य लगातार लेख लिखकर क्रांतिकारियों को उत्साहित करते रहे। इसके चलते उन्हें भी अंग्रेजों ने जेल भेज दिया।

गिरीश लाल महतो ने जिले के सभी क्रांतिकारियों को संगठित किया और 17 अगस्त 1942 को पुरुलिया नगर की सड़कों पर विशाल विरोध जुलूस निकाला। इसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए, जिससे अंग्रेजी हुकूमत घबरा गई और उपायुक्त ने कर्फ्यू लगा दिया। गिरीश लाल के नेतृत्व में क्रांतिकारियों का हौसला बुलंद रहा और विश्वविद्यालयों में छात्रों ने हड़ताल कर दी। ब्रिटिश शासन ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार शुरू कर दिए, लेकिन क्रांतिकारी डटे रहे।

30 सितंबर 1942 को गिरीश लाल महतो ने मान बाजार थाना, जो मानभूम का मुख्यालय था, पर कब्जा करने की योजना बनाई। सैकड़ों ग्रामीणों के साथ उन्होंने थाने पर हमला कर अंग्रेजी झंडा उतार कर तिरंगा लहरा दिया।

—-

यह देश हमारा है और हम इसे आजाद करा कर रहेंगे

अंग्रेजी पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें गिरीश लाल महतो बुरी तरह घायल हो गए। उन्होंने लहूलुहान हालत में अंग्रेज इंस्पेक्टर से कहा, “यह देश हमारा है और हम इसे आजाद कराकर रहेंगे।”

गिरीश लाल महतो को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अक्टूबर 1942 में अपने प्राण त्याग दिए। इतिहासकार नागेंद्र सिन्हा बताते हैं कि उनके बलिदान की सही तारीख का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन सितंबर में घायल होने के बाद अक्टूबर 1942 में उन्होंने मां भारती के चरणों में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके साथ हेम महतो भी घायल हुए थे, लेकिन वे बच निकले और क्रांति की मशाल जलाए रखी।

गिरीश लाल महतो के बलिदान ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया था और इसके बाद अंग्रेज अधिकारी इस थाने में तैनाती से कतराने लगे थे। उनकी वीरता और देशभक्ति की कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular