रमजान का महीना कुरान का महीना है: हिफजुर्रहमान

0
183

मौदहा हमीरपुर : रमजान का महीना इस्लामिक महीनों में सब से महत्वपूर्ण महीना है यह महीना बहुत ही बरकतों और नेकिओं का महीना है इसको अल्लाह और कुरान का महीना भी कहते हैं यह वह महीना है जिसमें ईश्वर का पवित्र ग्रंथ कुरान देवदूत हजरत जिब्राइल अमीन के जरिए हजरत मोहम्मद (सल0) पर नाजिल(उतारा ) किया गया था इसलिए इसे कुरान का महीना भी कहते हैं।अल्लाह ताला पवित्र ग्रंथ कुरान में खुद कहता है “रमजान का महीना वह महीना है जिस में कुरान नाजिल किया गया जो तुम इन्सानों के लिए हिदायत है और इस में मार्गदर्शन और सच व झूठ की खुली हुई निशानियां हैं जो इस महीनें को पाए तो वह रोजे रखे” रोजेदार कुरान की याद मनाने के लिए रोजे रखते हैं। रमजान में हर मुसलमान मर्द, औरत, आकिल और बालिग पर रोजा रखना अनिवार्य है यदि कोई बीमार है या सफर में है तो उन दिनों के रोजे छोड़कर बाद में उनको पूरा करे। रोजा बुराई से बचने का एक ढाल है।रमजान के महीनें मे जन्नत(स्वग) के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नम (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। जैसे ही रमजान का चांद नजर आता है शैतान को जंजीरों से बांध दिया जाता है जन्नत के तमाम दरवाजों में से एक दरवाजे का नाम है रयान यह वह दरवाजा है जिससे केवल रोजेदार ही दाखिल होंगे। रोजा रखने का मकसद सिर्फ भूख और प्यास से बचना नहीं है रोजा आंख, कान और जबान का भी जिस का अर्थ यह है कि रोजेदार न गलत चीज देखे न गलत बात सुने और न गलत बात करे आदि है यदि किसी रोजेदार के साथ कोई झगड़े तो उस से कहे कि मै रोजे से हूं। रमजान का महीना हर साल लगभग 720 घंटे की एक मोमिन के लिये ऐसी ट्रेनिंग है जिसमें मुसलमानों को अपनी आनेवाली जिंदगी को भी इसी तरीके से गुजरना चाहिए जिस तरह वह रमजान के महीनें में गुनाहों से बचने की कोशिश मे गुजारते हैं। रोजा इंसान को ईश्वर के करीब ले जाता है।रोजा ऐसी ईबादत है जो बन्दा और अल्लाह के अलावा कोई और नही जानता है। रमजान का महीना मोमिनों के लिये अल्ला का ऐसा इनाम है जिसमें एक ऐसी रात है जिसको लैलातुलकद्र यानी (कद्र वाली रात) कहते हैं इस रात में ईश्वर की ईबादत करने से 83 साल 4 महीने की इबादत से ज्यादा सवाब मिलता है। यह रात रमजान के आखिरी के10 दिनों में कोई एक रात होती है इन रातों को पाने के लिए मुसलमान रातभर ईश्वर की इबादत करते हैं उससे दुआएं मांगते हैं क्योंकि यह महीना दुआओं के कबूल होने का महीना है यह महीना हमे दूसरों के साथ हमदर्दी, सब्र, शुक्र व गरीबों की मदद करना सिखाता है। रमजान के महीने में अधिकांश मुसलमान गरीबों की मदद करते है क्योंकि इस्लाम के पांच सिद्धांतों मे से एक सिद्धांत जकात भी है जो हर मालदार को अदा करना अनिवार्य है। इस महीने में छोटे बच्चे बूढ़े जवान तमाम मुसलमान दिन-रात अल्लाह की इबादत करते हैं कुरान की तिलावत करते हैं दुआएं मांगते हैं अल्लाह उनकी दुआओं को कबूल करता है अल्लाह रोजेदार जीविका में बढ़ोतरी कर देता है। रमजान के महीने में हर मुसलमान के अन्दर ईश्वर की इबादत करने का जोश व जुनून पैदा होजाता है। ऐसे मुसलमान जो साल भर कभी नमाज नहीं पढ़ते लेकिन रमजान आते ही दिन में 5 नमाजों मे अनेको बार ईश्वर के सामने अपने सर को झुकाते हैं रात के वक्त ईशा की नमाज के साथ तरावी की अतिरिक्त 20 रकात नमाज कुल मिलाकर 37 रकात नमाज लगभग देढ से 2 घंटे तक रात में मस्जिद में गुजारते हैं।एक रोजदार सुबह 5 बजे से पहले सहरी करता है और शाम 6 बजे के बाद रोजा खोलता है अर्थात कुछ खातापीता है । इफ्तार अर्थात रोजा खोलने के समय रोजेदारों को एक अजीब सी खुशी महसूस होती है इस वक्त की मांगी गयी दुआ जरूर कुबूल होती है। इफ्तार के समय घरो व मस्जिदों मे सभी एक साथ बैठकर एक दसतरखान में रोजा खोलते है जो बहुत ही दर्शनीय दृश्य देखने को मिलता है।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here