अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। सेकुलर होने का लबादा ओढ़े कांग्रेस, सपा व बसपा नेतृत्व ने पसमांदा मुसलमान को हाशिये पर रखकर ऐतिहासिक भूल की है। हैरत की बात तो यह मुस्लिम विरोधी होने की छवि में कैद कर दी गई भाजपा ने अलग ही राह पकड़ ली और अब वह पसमांदा मुस्लिम समाज को करीब लाने के भरसक प्रयास में जुटी है। अब पसमांदा मुसलमान के सामने विकल्प खुले हैं और वह अपनी पसंद चुनने को आजाद है। कथित सेकुलर दलों के गिरोह के चंगुल से भला कौन आजाद नही होना चाहेगा वो चाहे पसमांदा हो या अन्य उत्पीड़ित समुदाय।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही है। अपनी बात विस्तार से रखते हुए उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में करीब 225 ऐसी विधान सभाएं रिजर्व, सामान्य मिलाकर हैं, जिनमें 20 फीसदी से लेकर 53 फीसदी तक मुसलमान वोटर हैं और इन मुसलमानों में 80 से 85 फीसदी से ज्यादा वोटर पसमांदा मुसलमान हैं यानी उप्र के कुल वोटर्स में लगभग 16 फीसदी वोटर, लेकिन सभी सियासी पार्टियों के संगठन या विधान सभा टिकटों में इनकी हिस्सेदारी लगभग नहीं के बराबर है। 40 से 53 फीसदी तक मुस्लिम वोटर वाली विधान सभाएं जैसे रामपुर, स्वार, चमरव्वा, बिलासपुर, मिलक, मुरादाबाद नगर, मुरादाबाद ग्रामीण, कॉठ, धनौरा, ठाकुरद्वारा, कुन्दरकी, बिलारी,अमरोहा, हसनपुर, असमौली, चन्दौसी, संभल, नौगाँव सादात, बेहट, नकुड, पुरकाजी, सहारनपुर नगर, सहारनपुर, देवबंद, गंगोह, रामपुर मनिहारन, नजीबाबाद, नगीना, बूढ़ापुर, धामपुर, नहटौर, बिजनौर, चॉदपुर, नूरपुर, शामली, कैराना, थाना भवन, बुढाना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, मीरापुर, बहेडी, भोजीपुरा, कैसरगंज, तुलसीपुर, उतरौला, इटवा आदि। 30 से 40 फीसदी वाली सीटें जैसे सिवालखास, सरधना, हस्तिनापुर, किठौर, मेरठ कै़ंट, मेरठ, मेरठ दक्षिण, मीरगंज, भोजीपुरा, नबाबगंज, फरीदपुर, बरेली, आंवला, मटेरा, नानपारा, महसी, बहराइच, श्रावस्ती, भिनगा, बलहा, डुमरियागंज, बलरामपुर, शोहरतगढ, कपिलवस्तु, खलीलाबाद, मऊ,घोसी, गोरखपुर ग्रामीण, टांडा, मुबारकपुर आदि 20 से 30 फीसदी मुस्लिम वोटरों वाली सीटें जैसे छपरौली, बागपत, बडौत, लोनी, मुरादनगर, साहिबाबाद, गाजियाबाद, मोदीनगर, नोएडा, दादरी, जेवर, धौलाना, गढ मुक्तेश्वर, स्याना, सिकंदराबाद, बुलंदशहर, कोल, अलीगढ़, सिकंदरामऊ, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, पटियाली, सहसवान, बिल्सी, बदायूं, शेखूपुर, पीलीभीत, बरखेडा, विलासपुर, हापुड़, खुर्जा, इगलास, पूरनपुर, बिसौली, टुंडला, तिलहर लखीमपुर खीरी, सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी, गोंडा व सुल्तानपुर,आजमगढ़, बनारस, भदोही, इलाहाबाद, कन्नौज, अमेठी की लगभग सभी विस सीटें और तिलोई, फर्रूखाबाद, भोजपुर, फतेहपुर, हुसैनगंज, रूदौली, बीकापुर, फैजाबाद, बस्ती, महादेवा, बांसी, रूधौली, मेहदावल, जलालपुर, मोहम्मदाबाद, जहूराबाद, पडरौना, लार, पथरदेवा, रामपुर कारखाना वगैरह।
उन्होंने कहा कि ये बड़े अफसोस की बात है कि एक ओर जहां भाजपा की छवि सुनियोजित व तथाकथित रूप से पसमांदा या मुस्लिम विरोधी बना दी गई, वही भाजपा इन 16 फीसदी पसमांदा मुस्लिम वोटों की अहमियत समझकर, उनके लगातार कार्यक्रम, पसमांदा सम्मेलन कर और उन्हें अपने संगठन वा सरकार में हिस्सेदारी देने की बात कर उनको अपनी पार्टी से जोड़ने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। इसके उलट सपा, बसपा, कांग्रेस जैसी पार्टियां पसमांदा मुसलमानों को अपना मजबूर गुलाम समझ कर, इनको लगातार नजरअंदाज करती चली आ रहीं हैं।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने कहा कि अगर इन तथाकथित फर्जी सेकुलर पार्टियों का पसमांदा के साथ, यही बेअंदाजी वाला नकारात्मक रवैया आगे भी कायम रहा और भाजपा का पसमांदा कार्ड 10 से 15 फीसदी भी काम कर गया, तो कोई शक नही कि खासकर उप्र में, फिर कोई भी पार्टी या गठबंधन इस हैसियत में नहीं रहेगी कि वो तीसरी बार केंद्र में भाजपा सरकार से बनने से रोक सके। सोचने वाली बात है कि अगर किसी भी तरह 2024 में भाजपा केंद्र की सत्ता पर काबिज हो गई, तो फिर भाजपा जैसे 2022 के उपचुनाव में 55 फीसदी वाली मुस्लिम बाहुल्य सीट रामपुर से चुनाव जीत सकती है, तो वैसे फिर 2027 में उप्र के उपरोक्त सभी 225 मुस्लिम बाहुल्य विस सीटों पर क्यों नहीं ? हां, चुनाव बाद सपा, बसपा या कांग्रेस को सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर, तथाकथित लोकतंत्र की हत्या होने पर या ईवीएम पर विधवा विलाप करने और मातम मनाने की पूरी आजादी जरूर मिलेगी।01