भाजपा का ट्रम्प कार्ड है प्रणव की डायरी
एस. एन.वर्मा
कांग्रेस के महात्वपूर्ण नेता, प्रणव मुखर्जी जो केन्द्रीय मंत्री भी रहे है अपनी स्पष्टवादिता को लेकर काफी चर्चित रहे। उनकी योग्यता अपने आप छलकती रहती थी। बातचीत व्योहार में बहुत ही शालीन और विनम्र रहे। प्रधानमंत्री बनने की राह पर थे पर सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया। शालीन बने रहे इसे लेकर न तो बौखलाये और नहीं कोई कुन्ठा पाली। कांग्रेस ने बाद में उन्हें राष्ट्रपति बनाया। उनके राष्ट्रपति बनने के दो साल बाद भाजपा की सरकार आई मोदी की अगुआई में।
प्रणव मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा एक किताब लिख रही है। उन्होंने पिता के डायरी के कुछ पन्नों की बातें उजागर की। जिसे पढ़ कर प्रणव मुखर्जी और मोदी के स्वभाव और चरित्र की झलक मिलती है। प्रणव पुराने कांग्रेसी थे। अमुमन राष्ट्रपति दूसरे पार्टी से सम्बन्धित रहा हो और प्रधानमंत्री दूसरे पार्टी का हो तो आपस में खींच तान चलती रहती है। आज कल देखने को मिल रहा है गर्वनर दूसरी पार्टी से सम्बन्धित है सरकार दूसरी पार्टी की है। खीचतान का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के पास भी पहुचा है। कोर्ट ने संविधान में प्रदत अधिकारों के तहत काम करने का निर्देश दिया है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच कोई भी इस तरह का मुद्दा कभी नहीं रहा। दोनो के सम्बन्ध सौहार्दपूर्ण रहे, आत्मनीयता से भरे रहे।
शर्मिष्ठा ने जो पिता के डायरी में उल्लिखित पन्नों के बारे में बताया है वह प्रणव मुखर्जी और नरेन्द्र मोदी के आपसी व्योहार के बारे में है। दोनो तरफ क्या शालिनता, आत्मीयता और उदारता थी सुन कर दिल बाग बाग हो जाता है। प्रणव मुखर्जी नागपुर आरएसएस को सम्बोधित करने गये वह ऐसा करने वाले पहले राष्ट्रपति थे। संगठन के संस्थापक हेडगेवार को भारत माता का महान पुत्र बताया। आजकल देख रहे है हर पार्टी दूसरे पार्टी के नेता के लिये अपशब्द कहने में अपनी राजनैतिक जीत समझ रही है। पुत्री बताती है पिता नज़र में इन्द्रागांधी के बाद मोदी एक मात्र पीएम हुये है जो लोगो की नब्ज़ की इतनी तेजी से और सटीकता में महसूस करने की क्षमता रखते है। 2014 की दिवाली में मोदी सियाचीन में जवानों और श्रीनगर में बाढ़ से पीड़ित लोगो के साथ दिवाली मनाने गये थे। उसे प्रणव मुखर्जी मोदी के राजनीतिक समझ बूझ का कौशल मानते हुये कहते है यह समझ इन्द्रगांधी के अलावा किसी में भी नही है। इन्द्रागांधी प्रणव को पश्चिम बंगाल से कांग्रेस सांसद के रूप में राज्य सभा में लाई थी बाद में मंत्री भी बनाया था।
प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति की हैसियत से हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर बने रहे। 40 साल से ज्यादा समय से वह कांग्रेस से जुड़े रहे है। राष्ट्रपति का कर्त्तव्य निशपक्षता से निभाते रहे, राष्ट्रपति की सारी औपचारिकतायें तटस्थता से निबाहते रहे। 30-40 से वह कांग्रेस के सक्रिय सदस्य रहे है। 2014 में संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद मुखर्जी से मिलने आये मोदी ने विनम्रता पूर्वक प्रणव मुखर्जी के पांव छूये और कहा मै आप मुझे छोटा भाई मानकर मार्ग दर्शन और सलाह दें। प्रणव मुखर्जी ने उन्हें पूरा सहयोग देने का आश्वासन दिया। ये बाते किसी की कही नही है न तो किबदन्ती है, बल्कि प्रणव ने खुद अपनी डायरी में लिखी है। मोदी जब पहली बार मिले तो थोड़े घबराये हुये थे। प्रणव ने उन्हें अश्वस्त कराया। कहा आपको जनादेश मिला है। शासन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मन्त्री मन्डल का क्षेत्र है। यह आप का काम है मै हस्तक्षेप नहीं करूगा । संवैधानिक मामलों मेरे सलाह की जरूरत होगी तो मै आप की मदद जरूर करूगा।
इसमें प्रणव और मोदी के व्यक्त्वि की उदारता और मानवीयता साथ ही की झलक है। आज के ज्यातर नेताओं के बारे में जितना ही जानते जाते है उतनी ही वितृष्णा पैदा होती जाती है। मोदी प्रणव को लम्बे अर्से से जानते थे गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से भी पहले। शमिष्ठा का मोदी ने प्रणव के पाव छूने के संदर्भ में बताया था कि उन्हें पांव छूने से खुशी मिलती है। वजह क्या है मै खुद नहीं जानता। मोदी संगठनात्मक कर्तव्यो के लिये दिल्ली आया जाया करते थे बहुत पहले से इस दौरन कभी कभी प्रणव से सुबह की सैर के दौरान मिला करते थे। प्रणव हमेशा उनसे प्यार से बात करते थे मोदी हमेशा दादा के पाव छुकर अपना सम्मान प्रकट करते थे। प्रणव ने अपनी डायरी में लिखा है हमने विभिन्न मुद्दो पर चर्चा की उन्होंने मुझसे कहा वह मेदी सलाह को महत्व देते है और मैने कहा कि उन्हें मेरा पूरा सहयोग मिलेगा। प्रणव ने स्वीकार किया है मोदी के विचारो में स्पष्टता है। शासन कला वाला के प्रति उनका नज़रिया पेशेवर है। वह लोगो की नब्ज़ को बहुत मजबूती से महसूस करते है। वह सीखना चाहते है। दिखावा नहीं करते की सब कुछ जानते है। एक कट्टर आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में वह कट्टर देश भक्त और राष्ट्रवादी हो।
चुनाव के परिप्रेक्ष में भाजपा के लिये यह ट्रम्प कार्ड है। कट्टर कांग्रेसी का जिनकी प्रबुद्ध लोगो में गिनती होती है जो कांग्रेस के राष्ट्रपति और केन्द्रीय मंत्री रहे है उनकी प्रमाणिकता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस की मुश्किले दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। राहुल की बयानबाजी इन तथ्यो और बातों के आगे निष्प्रभावी लगती है। कांग्रेस को बयानबाजी और रणनीति में सुधार की जबरदस्त जरूरत है। अपना मद्दा खुद बनाये दूसरे का मुद्द ले कर लड़ने से कुछ खास हासिल नहीं होगा।