आर्थिक सुधारों को लेकर जल्दबाजी में नहीं सरकार

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नई दिल्ली। विधानसभा चुनावों में विजय पताका लहराने के बाद भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को राजनीतिक मजबूती तो मिल गई है, लेकिन वह आर्थिक सुधारों को लेकर किसी तरह की जल्दबाजी में नहीं है। संक्षेप में कहें तो अगले आम चुनाव से पहले न तो सार्वजनिक उपक्रमों की सुस्त पड़ी विनिवेश प्रक्रिया में किसी तरह की तेजी दिखेगी और न ही सरकारी बैंकों व बीमा कंपनियों के निजीकरण को लेकर पूर्व में किए गए फैसलों को अमलीजामा पहनाने की कोशिश होगी।

हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से महिलाओं, युवाओं, किसानों और गरीबों को अपनी वरीयता में रखा है, उससे बहुत संभव है कि आगामी बजट में इन सभी वर्गों के लिए किसी न किसी योजना का एलान हो सकता है। उधर, वित्त मंत्रालय में अगले अंतरिम बजट को लेकर गतिविधियां तेज होने जा रही हैं।

आमतौर पर सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष का बजट सीमित होता है, जिसमें सिर्फ अगले कुछ महीनों के वैधानिक खर्चों के लिए संसद से लेखानुदान की मंजूरी ली जाती है लेकिन मोदी सरकार ने इस परंपरा में काफी बदलाव किया है। वर्ष 2019 के अंतरिम बजट में बहुत सारी घोषणाएं थीं, जिसे बाद में सत्ता में वापस आने के बाद अमल में लाया गया।

रविवार को राज्य विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद पीएम मोदी ने भाजपा मुख्यालय में कहा था कि उनकी सरकार युवाओं, महिलाओं, किसानों और गरीबों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी। इस बयान को आगामी बजट में इन चार वर्गों को दी जा रही राहत स्कीमों को आगे बढ़ाने और कुछ नई घोषणाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे इसी पखवाड़े केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गरीब वर्ग को मुफ्त में अनाज देने की पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को पांच वर्षों के लिए बढ़ाकर अपनी मंशा साफ कर दी है।

सरकार की तरफ से आम जनता को क्या दिया जाएगा, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इतना स्पष्ट है कि इस बारे में खजाने के स्तर पर कोई दिक्कत नहीं आने वाली है। जीएसटी संग्रह में लगातार वृद्धि, राजकोषीय घाटे का पूरी तरह से लक्ष्य के मुताबिक रहना और अर्थव्यवस्था में उम्मीद से ज्यादा तेजी की रफ्तार तीन ऐसे कारक हैं जिससे वित्त मंत्रालय कुछ वर्गों को अतिरिक्त संसाधन देने में सक्षम नजर आता है।

चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से नवंबर के दौरान जीएसटी संग्रह औसतन 1.66 लाख करोड़ रुपये रहा है। यह वर्ष 2022-23 के अप्रैल-नवंबर के मुकाबले 11.9 प्रतिशत ज्यादा है। वर्ष 2023-24 के शुरुआत में माना गया था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें खजाना प्रबंधन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ महीनों को छोड़ दें तो क्रूड 80-85 डालर प्रति बैरल या इससे भी नीचे रही हैं। प्रत्यक्ष कर संग्रह की स्थिति भी सरकार की उम्मीदों से बेहतर है। पहली छमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 7.7 प्रतिशत रहने के बाद उम्मीद है कि पूरे वित्त वर्ष राजस्व संग्रह की स्थिति भी उम्मीद से बेहतर रहेगी।

पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर सरकार क्या फैसला करती है, इस पर भी सभी की नजर रहेगी। पूर्व में हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू कर कांग्रेस ने इसे एक चुनावी मुद्दा बना दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) को और ज्यादा आकर्षक बनाने पर सुझाव देने के लिए एक समिति गठित की है। वित्त सचिव टीवी सोमानाथन की अध्यक्षता वाली इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की तरफ से पेंशन योजनाओं पर कुछ नई घोषणा होने की संभावना है।

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