प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान ओंकारेश्वर की 49वीं पंचकोशी यात्रा सोमवार से शुरू हो गई है। इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल हुए हैं। इस पंचकोशी यात्रा का महत्व हिंदू धार्मिक मान्यताओं में विशेष है, जिसमें नर्मदा नदी के तट पर ओंकार पर्वत की परिक्रमा करते हुए लाखों श्रद्धालु पांच दिनों में करीब 75 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हैं। ओंकारेश्वर में यह यात्रा देवउठनी एकादशी के अवसर पर शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन संपन्न होती है, लेकिन इस वर्ष पंचकोशी यात्रा की तिथियों में बदलाव के कारण यात्रा दशमी को ही शुरू हो गई।
दरअसल, इस बार दशमी और एकादशी तिथियों के एक साथ आने से हजारों श्रद्धालु एक दिन पहले ही ओंकारेश्वर से रवाना हो गए। यात्रा समिति के संयोजक राधेश्याम शर्मा ने बताया कि इस बार भी प्रशासन और नर्मदा भक्तों के सहयोग से यात्रा को अनुशासनपूर्वक संचालित किया जा रहा है। हर साल यात्रियों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है, और इस बार यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।
यात्रा का प्रारंभ ओंकारेश्वर मंदिर में नर्मदा स्नान और भगवान ओंकारेश्वर एवं ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से होता है। इसके बाद भक्तजन पांच दिनों की यात्रा में निकलते हैं, जिसमें ओंकार पर्वत के चारों ओर पैदल चलते हैं। यात्रा के पहले दिन सभी यात्री भगवान ओंकारेश्वर से आशीर्वाद प्राप्त कर यात्रा प्रारंभ करते हैं। यात्रा में छोटे बच्चों से लेकर वृद्ध महिलाएं और पुरुष शामिल होते हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या 80 प्रतिशत से अधिक है। महिलाओं की इस सहभागिता ने पंचकोशी यात्रा को नारी शक्ति का प्रतीक बना दिया है।
यात्रा का आयोजन नर्मदा अंचल पंचकोशी पदयात्रा केंद्रीय समिति द्वारा किया जाता है, जो इसे पूरी व्यवस्था और अनुशासन के साथ संचालित करती है। पांच दिनों तक यह यात्रा ओंकारेश्वर, खरगोन, सनावद, और बडवाह जैसे विभिन्न क्षेत्रों से होकर गुजरती है। हर रात्रि श्रद्धालु अलग-अलग स्थानों पर विश्राम करते हैं।
पहले दिन सभी श्रद्धालु ओंकारेश्वर से रवाना होकर सनावद पहुंचते हैं। दूसरे दिन सभी यात्री सनावद से खरगोन की ओर जाते हैं और वहां से टोकसर गांव के पास नर्मदा किनारे रात्रि विश्राम करते हैं। तीसरे दिन यात्रा में शामिल श्रद्धालु नावों से नर्मदा पार करके बडवाह कृषि मंडी में रात्रि विश्राम करते हैं। चौथे दिन बडवाह से सिधवरकुट पहुंचते हैं, जहां विश्राम के बाद पांचवे दिन कार्तिक पूर्णिमा पर ओंकारेश्वर वापस लौटते हैं। समापन के दिन श्रद्धालु ओंकार पर्वत की परिक्रमा कर पंचकोशी यात्रा का समापन करते हैं।
इस यात्रा की शुरुआत सन 1975 में स्व. डॉ. रविंद्र भारती चौरे ने अपने चार मित्रों के साथ की थी। पहले वर्ष में मात्र पांच लोगों से शुरू हुई यह यात्रा आज लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुकी है। डॉ. चौरे ने अपनी पूरी जिंदगी में नर्मदा तट पर 26 महत्वपूर्ण पंचकोशी यात्राओं का आयोजन किया था। 2008 में उनके निधन के बाद भी यह यात्रा लगातार बढ़ती रही है। श्रद्धालुओं की आस्था के कारण इस यात्रा को मध्यप्रदेश और आसपास के राज्यों में एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ है।
पंचकोशी यात्रा का महत्व केवल धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहन आध्यात्मिक अवधारणाएं भी हैं। नर्मदा के किनारे की यात्रा को मन को शांति और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम माना गया है। राधेश्याम शर्मा के अनुसार, यह यात्रा शरीर के पांच तत्वों की सिद्धि के लिए की जाती है, जो कि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश तत्व को दर्शाती है। यह भी माना जाता है कि नर्मदा तट पर चलने से व्यक्ति के मन को शांति और आत्मिक संतोष मिलता है।
इस यात्रा में विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु शामिल होते हैं, जिनमें मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, और राजस्थान के भक्त प्रमुखता से भाग लेते हैं। नर्मदा परिक्रमा करते हुए इस यात्रा में भक्तजन भजन-कीर्तन करते हैं, जिससे यात्रा का माहौल भक्तिमय बनता है। यात्रा की संपूर्ण व्यवस्था स्थानीय प्रशासन द्वारा की जाती है, जिससे श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।