अवधनामा ब्यूरो
नई दिल्ली. झारखंड के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में इन दिनों शिक्षा का चिराग जलाने का जो इंतजाम किया जा रहा है उससे देश के तमाम राज्यों को प्रेरणा लेने की ज़रूरत है. झारखंड में इन दिनों बड़ी संख्या में सरकारी और निजी स्कूलों में बच्चो के बीच शिक्षा की अलख जगाने का काम किया जा रहा है.
झारखंड में 26 स्कूल ऐसे हैं जिन्हें रात्रि पाठशाला के नाम से जाना जाता है. यह रात्रि पाठशालाएं एक तरफ ज्ञान की गंगा प्रवाहित करने का काम कर रही हैं तो दूसरी तरफ यह पाठशालाएं अनुशासन, लगन और समर्पण के संगम के रूप में भी नज़र आती हैं.
यह ऐसी पाठशालाएं हैं जो सूरज ढल जाने के बाद शुरू होती हैं. इन स्कूलों में न डेस्क है न बेंच है लेकिन इसके बावजूद ठंडी ज़मीन पर बैठकर आदिवासी परिवार के बच्चे पढ़ाई करते हैं ताकि उनका भी भविष्य संवर जाए. झारखंड के पूर्व आईपीएस अधिकारी अरुण उरांव ने एक रात्रिकालीन पाठशाला शुरू की थी जो शाम छह बजे से रात आठ बजे तक लगती है. उनके इस प्रयास को खूब सराहना मिली और अब झारखंड में ऐसी 26 रात्रिकालीन पाठशालाएं संचालित हो रही हैं.
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इन रात्रिकालीन पाठशालाओं की एक बड़ी खासियत यह है कि इनमें आसपास के पढ़े-लिखे नौजवान बगैर वेतन लिए पढ़ाते हैं. सामाजिक सहयोग से चल रही इन रात्रिकालीन पाठशालाओं को खूब जनसमर्थन मिल रहा है. गरीबों को इस बात की खुशी है कि उनके बच्चे बगैर खर्च के शिक्षा हासिल कर ले रहे हैं.