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सुप्रीम कोर्ट में आधार की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए संवैधानिक पीठ के जस्टिस नाराज हो गए. संवैधानिक पीठ में शामिल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हम ना तो सरकार को बचा रहे हैं और ना ही एनजीओ के रुख का अनुसरण कर रहे हैं. दरअसल, आधार योजना और इसके कानून का विरोध कर रहे याचिकाकर्ता को जस्टिस से संतोषजनक जवाब ना मिलने के कारण जस्टिस चंद्रचूड़ नाराज हो गए.
कोर्ट में विश्व बैंक की रिपोर्ट का दिया गया हवाला
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दीवान ने इस मामले में दायर केन्द्र सरकार के हलफनामे का जिक्र किया जिसमें विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने विभिन्न योजनाओं में आधार के प्रयोग से हर साल 11 अरब डालर की अनुमानित बचत की है. अपना पक्ष रखते हुए वकील ने कहा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं है क्योंकि हाल में इसके प्रमुख पॉल रोमर ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि इसके डाटा में कोई ईमानदारी नहीं है. जिसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि याचिकाकर्ताओं के अनुसार कितनी राशि को बढ़ाया जाना चाहिए.
सवाल पूछने पर साधा जाता है निशाना
कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस ने कहा कि आवाज ऊंची करने का कोई फायदा नहीं है. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जैसे ही हम सवाल पूछते हैं, हम पर निशाना साधा जाता है क्योंकि हम प्रतिबद्ध हैं…अगर ऐसा है तो मैं गुनाह कबूल करता हूं. ‘हम न तो सरकार को बचा रहे हैं और ना ही एनजीओ के रुख का पालन कर रहे हैं. आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कोर्ट में जैसे ही सवाल पूछे जाते हैं, आरोप लगते हैं कि आप वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध हैं और आधार न्यायाधीश बताया जाएगा. उन्होंने कहा, ‘हम संविधान की अंतरआत्मा के लिए प्रतिबद्ध हैं.’ इसके तुरंत बाद वकील ने माफी मांगी जिसे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने स्वीकार कर लिया.
क्या है मामला?
– कर्नाटक के थॉमस मैथ्यू ने आधार की कानूनी वैधता को चुनौती दी है.
– उनका कहना है कि यह राइट टू प्राइवेसी का वॉयलेशन है और बायोमैट्रिक सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है.
– चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने 30 अक्टूबर को कहा था कि एक कॉन्स्टीट्यूशन बेंच बनाई जाएगी.
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